फाल्गुन कृष्ण पक्ष तृतीया, कलियुग वर्ष ५११५
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बैजनाथ : ऐतिहासिक शिव मंदिर बैजनाथ खतरे में है। जिस पहाड़ी पर मंदिर बना है वह कमजोर होती जा रही है। पठानकोट-मंडी हाईवे के किनारे आई दरारें इसकी गवाही दे रहे हैं, लेकिन जहां मुख्यमंत्री की बात की भी अनदेखी की जा रही हो वहां उम्मीद भी क्या हो?
बिनवा खड्ड की ओर से बिनवा खड्ड का हिस्सा गहरा हो रहा है तथा पानी की धार भी इस ढांक (करार) के आधार से टकरा कर इसे कमजोर कर रही है। करीब एक दशक पहले बिनवा खड्ड में काफी खनन हुआ था, तब से यह ढांक कमजोर हो रही है। हालांकि कुछ दशक पहले बिनवा के पानी की मार से मंदिर की पहाड़ी को सुरक्षा देने के लिए कथोग चश्मे के पास बड़े-बड़े क्रेट गए थे, लेकिन २००१ में बादल फटने से आई बाढ़ में ये क्रेट भी बह गए। उस समय इन क्रेट को लगवाने के लिए कुछ नहीं किया गया, जबकि प्रदेश सरकार ने नुकसान के लिए पांच करोड़ की राशि मुहैया करवाई थी। जिस ढांक पर मंदिर बना है, उससे लगातार कूड़ा कर्कट भी नीचे फेंका जाता है। कस्बे के शौचालयों की गंदगी भी ढांक पर छोड़ी जा रही है। इससे भी ढांक कमजोर हुई है। मंदिर की सुरक्षा के लिए जल्द कोई कदम नहीं उठाए गए तो मामला गंभीर हो सकता है।
मंदिर का इतिहास
बैजनाथ शिव मंदिर का निर्माण नौवीं शताब्दी में हुआ माना जाता है। इसका निर्माण मयूक और अहूक नाम के दो भाइयों ने करवाया था, जबकि यहां स्थापित शिव लिंग इससे भी पुराना है। इसे रावण के साथ भी जोड़ा जाता है। मंदिर में इसके बाद काफी कार्य हुआ है। कांगड़ा के अंतिम शासक राजा संसार चंद के समय में भी मंदिर का बहुत विकास हुआ। मंदिर के चारों ओर बनाई सुरक्षा दीवार उसी समय बनी है।
स्त्रोत : दैनिक जागरण