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भगवान विट्ठल की महापूजा ५ घंटे की अपेक्षा डेढ घंटे में ही समाप्त होगी !

प्रभारी श्री विट्ठल-रुक्मिणी मंदिर समिति द्वारा पुनः विट्ठलपूजा में हस्तक्षेप !

सोलापुर – आषाढ एकादशी की महापूजा पांच घंटे की अपेक्षा डेढ घंटे में ही समाप्त की जाएगी ।  इस प्रस्ताव को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा सम्मति देने का कारण आगे करते हुए श्री विट्ठल-रुक्मिणी मंदिर समिति के प्रभारी अध्यक्ष तथा जिलाधिकारी तुकाराम मुंढे ने मंदिर के पूजोपचार में हस्तक्षेप चालू ही रखा है । (महापूजा के लिए कितना समय देना, यह राजनेता कब से निश्चित करने  लगे ? धर्म के विषय में उनका क्या अभ्यास है ? ५ घंटे की पूजा डेढ घंटे में समाप्त करना, यह विट्ठल की महापूजा की पवित्रता न्यून करने का ही प्रकरण है । इस संदर्भ में जिलाधिकारी नहीं, अपितु हिन्दुओं के धर्माचार्य ही निर्णय ले सकते हैं ! क्या ये राजनेता एवं प्रशासन कभी इस बात का निर्णय ले सकेंगे कि चर्च में प्रार्थना कितने समय करें तथा नमाजपठन कितना समय करें ? हिन्दुओ, संक्षेप में समाप्त होनेवाली महापूजा का हमें कोई लाभ नहीं है, यह ध्यान में लेकर सरकार को वैधानिक मार्ग से फटकारें ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात ) पूजा कालावधि न्यून होने से ८० सहस्र से अधिक वारकरियों को अब श्री विट्ठल के पददर्शन-मुखदर्शन लेना संभव होगा ऐसा कहना वे न भूलें ।

१. अब तक पांच घंटे की कालावधि में तीन पूजाएं अलग-अलग पद्धति से की जाती थीं । विधिमंत्र एक ही, परंतु पूजा करनेवाले लोग अलग होते थे ।

२. पूजा हेतु रात्रि १२ बजे ही मंदिर बंद किया जाता था ।

३. रात्रि १ से २.३० खाजगीवालों की पूजा, २.३० बजे शासकीय पूजा एवं ४ बजे दो श्रद्धालुओं द्वारा पूजा होती थी । इस वर्ष समय का कारण बताकर मंदिर समिति ने खाजगीवालों की पूजा बंद करवा दी है । अब शेष दोनों हीr पूजा एकत्र की जाएगी ।

यदि श्रद्धालुआें की चिंता है, तो इस शासकीय महापूजा को बंद करें ! – भागवताचार्य वा.ना. उत्पात

जिलाधिकारी के निर्णय के विषय में भागवताचार्य वा.ना. उत्पात ने कहा कि खाजगीवाले पेशवों के सरदार थे । उनके द्वारा आरंभ की गई पूजा की परंपरा सैकडों वर्ष पुरानी है, जबकि मुुख्यमंत्री द्वारा पूजा करने की परंपरा भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्री. मनोहर जोशी के कार्यकाल से आरंभ हुई है । इसलिए जिलाधिकारी को यदि श्रद्धालुओं से इतना ही प्यार है, तो उनको चाहिए कि वे खाजगीवालों की नहीं, अपितु मुख्यमंत्री की पूजा बंद करें । मुख्यमंत्री द्वारा पूजा करते समय वहां सुरक्षा हेतु श्वानपथक, पुलिस की फौज इत्यादि भारी मात्रा में इकट्ठी होती है । इसलिए श्रद्धालुओं को प्रतीक्षा करते बैठे रहना पडता है । यदि यह पूजा निरस्त की गई, तो सच्चे अर्थ में श्रद्धालुओं के लिए सुविधा होगी । मूलतः मंदिर के पूजन-अर्चन में इस प्रकार का बदल करना पंढरपुर अधिनियम १९७१ के कानून का भंग है ।  ऐसा होते हुए भी जिलाधिकारी अकारण विवाद उत्पन्न कर रहे हैं ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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