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भारतरत्न (या भारतद्रोही) सी.एन.आर. रावको प्रश्न : प्राचीन वैदिक विज्ञान कितने दिनोंतक छुपाकर रखें

फाल्गुन कृष्ण पक्ष पंचमी, कलियुग वर्ष ५११५

वैदिक विज्ञान अस्वीकार करनेवाले आधुनिक वैज्ञानिकोंको सतीश कुलकर्णीका प्रश्न

पुणे (महाराष्ट्र) : भारतरत्न प्राप्त शास्त्रज्ञ सी.एन.आर. रावने ‘इंडियन एक्स्प्रेस’ इस अंग्रेजी दैनिकको दिए साक्षात्कारमें ‘गोअर्क’पर संशोधन करना, समय व्यर्थ गंवाने जैसा है, ऐसा वक्तव्य दिया था; किंतु अपना वैदिक तंत्रज्ञान अत्यंत प्रगत है, आधुनिक वैज्ञानिक यह बात नित्य ध्यानमें रखें ! गोअर्कके संदर्भमें भारतके पास ११ ‘पेटेंट’ हैं । बृहद्विमानशास्त्र (Aeronautics), धातुविज्ञान (Metallurgy), वस्त्रोद्योग (Textile industry), पूर्व कालके मंदिर, नगरव्यवस्था (Town planning), जलाशय व्यवस्था (Irrigation), जहाजनिर्माण (Ship-building) तथा इन सबकी निर्मिति करनेवाले कारीगर आदि सभी ही अभूतपूर्व हैं । भारतके आधुनिक वैज्ञानिक प्राचीन वैदिक विज्ञानकी मुर्गी कितने दिनोंतक छुपाकर रख सकते हैं ?, प्रज्ञा विकास संशोधन शिक्षा संस्थाके संस्थापक श्री. सतीश कुलकर्णीने ऐसा प्रश्न उपस्थित किया । विश्वकर्मा जयंतीके दिन ज्ञानप्रबोधिनी संत्रिका, वास्तु वैदिक रिसर्च फाऊंडेशनकी ओरसे ज्ञानप्रबोधिनीमें ‘प्राचीन भारतका तंत्रज्ञान’, इस विषयपर उनका व्याख्यान आयोजित किया गया था । उस अवसरपर वे बोल रहे थे ।

यज्ञयागादि विधिसे भूमिकी उत्पादकता (Productivity) ४० से ४०० गुना अधिक बढती है !

उन्होंने आगे कहा कि आधुनिक विज्ञानकी विचारपद्धति निसर्गपर विजय प्राप्त करनेका प्रयास करनेवाली, किंतु वैदिक विज्ञानकी विचारपद्धति मानव निसर्गका ही एक हिस्सा है, तथा वह निसर्गसे अलग नहीं हो सकता, ऐसी है । प्रगतिशील तथा आधुनिक विज्ञानवादियोंद्वारा यज्ञयागादि परंपराओंकी उपेक्षा हो रही है, किंतु यज्ञविधि अत्यंत महत्त्वपूर्ण हिस्सा है । कुछ वर्ष पूर्वसे इस विषयपर संशोधन हो रहा है तथा यज्ञयागादि विधिसे भूमिकी उत्पादकता ४० से ४०० गुना अधिक बढनेके निष्कर्ष भी प्राप्त हुए हैं । प्राचीन वैदिक तंत्रज्ञान कितना प्रगत था, श्री. कुलकर्णीने इस अवसरपर इसके अनेक उदाहरण दिए ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

 

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