कोल्हापूर की श्री महालक्ष्मीदेवी की मूर्तिपर रासायनिक लेपन नहीं, अपितु धर्मशास्त्र के अनुसार नई मूर्ति की आवश्यकता है ! – राजन बुणगे, हिन्दू जनजागृति समिति
शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध एवं संबंधित शक्तियां एकत्र रहती हैं, इस अध्यात्मशास्त्रीय सिद्धांत के अनुसार देवी-देवताओंकी मूर्ति (रूप) अर्थात प्रत्यक्ष देवता ही है। इसीलिए टूटी हुई मूर्ति का विधिवत विसर्जन न करना उस देवता का अपमान है तथा उस को कारणभूत देवस्थान समिति उस पाप की धनी होती है !
कोल्हापुर (महाराष्ट्र) : शाहू स्मारक में आयोजित पत्रकार परिषद में वार्तालाप करते समय हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. राजन बुणगे ने ऐसा मत व्यक्त किया कि यहां के सुप्रसिद्ध श्री महालक्ष्मीदेवी की मूर्तिपर रासायनिक प्रक्रिया करने का निर्णय लिया गया है। मूर्ति पर रासायनिक प्रक्रिया करने की यह पद्धति धर्मविरोधी है तथा मूर्ति के आसपास रासायनिक कवच उत्पन्न किया गया तो, उस मूर्ति की सात्त्विकता प्रक्षेपित होने की क्षमता न्यून होगी।
धर्मशास्त्र के अनुसार टूटी मूर्ति का विसर्जन कर नई मूर्ति की प्रतिष्ठापना करना आवश्यक होता है। इस के संदर्भ ‘प्रतिष्ठा मौक्तिकम्’ एवं ‘निर्णयसिंधु’ ग्रंथों में दिए गए हैं। इस लिए धर्मशास्त्र में कहा गया तत्त्वोत्तारण विधि कर उस मूर्ति से देवता का तत्व निकाल कर उस के स्थान पर नई मूर्ति रख उस की प्राणप्रतिष्ठा करना उचित होगा। इस अवसर पर हिन्दू विधिज्ञ परिषद के अध्यक्ष अधिवक्ता श्री. वीरेंद्र इचलकरंजीकर एवं हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. मधुकर नाजरे उपस्थित थे।
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आज की मूर्ति की स्थिति को घोषित कर उस का छायाचित्र जालस्थल पर रखें ! – अधिवक्ता श्री. वीरेंद्र इचलकरंजीकर
अधिवक्ता श्री. वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने कहा कि, यदि पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान व्यवस्थापन समिति को यह उचित प्रतीत होता है, तो मंदिर समिति को आज की मूर्ति की स्थिति को घोषित करना चाहिए। मूर्ति का आगा-पीछा एवं सभी ओर से छायाचित्र निकाल कर उसे जालस्थल पर रखना चाहिए, जिस से मूर्ति की स्थिति जनता के भी समझ में आएगी तथा वे यह भी घोषित करें कि उन्होंने किस धर्मशास्त्र का आधार लिया है। धर्मभावना से संबंधित होने से इस सूत्र को हम अब जनता के न्यायालय में ले जा रहे हैं।
पुरातत्त्व विभाग केवल पुरातन वस्तुओंको संजोने की दृष्टि रखता है। उसके पास आध्यात्मिक दृष्टि नहीं होती। इसलिए अन्य किन्हीं बातोंका विचार न कर वे केवल पुरानी मूर्ति संजोए रखने का ही विचार करते हैं। श्री महालक्ष्मीदेवी की मूर्ति पर रासायनिक प्रक्रिया करने के संदर्भ में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय सांस्कृतिक विभाग के सचिव, भारतीय पुरातत्त्व विभाग के महासंचालक एवं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को निवेदन भेजा गया है।
पुरातत्व विभाग केवल ५०० वर्षों पूर्व की मूर्ति और ५०० वर्ष कैसे टिकेगी, इतना ही (अ)विचार करता है। पुरातत्व विभाग को मूर्ति की सात्त्विकता से कुछ देन-लेन नहीं होता। हमें धर्मशास्त्र किसीपर जबरदस्ती सौंपना नहीं है, अपितु उस से समन्वय कर उचित निर्णय हो, ऐसा प्रतीत होता है। वर्ष १९६१ में केरल के अल्लपुजा के श्री भगवतीदेवी के मंदिर का सुधार कार्य चालू रहते में एक सिरफिरे व्यक्ति ने मंदिर में घुस कर देवी को आलिंगन देने के कारण देवी की मूर्ति टूट गई थी। देवी को कौल लगाने पर देवी ने भी नई मूर्ति स्थापित करने का आदेश दिया। उस प्रकार वर्ष १९६२ में नई मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठापना की गई। टीपू सुलतानद्वारा आक्रमण होकर भंग की गई मूर्ति की पुनर्स्थापना नहीं की गई, अपितु नई मूर्ति की ही प्रतिष्ठापना की गई।
हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. बुणगे द्वारा प्रस्तावित अन्य सूत्र
१. मंदिर समिति, केंद्रशासन का पुरातत्व विभाग एवं प्रशासन की एकत्रित बैठक के पश्चात सुप्रसिद्ध श्री महालक्ष्मीदेवी की मूर्ति पर रासायनिक प्रक्रिया करने का निर्णय लिया गया है। इस प्रक्रिया हेतु २३ जुलाई से ६ अगस्त २०१५ की कालावधि में गर्भगृह का दर्शन बंद किया जाएगा।
२. उत्पति, स्थिति एवं लय अर्थात उत्पन्न होनेवाली प्रत्येक वस्तु का अंत होता है, यह निसर्गनियम है। मूर्ति पर अनेक वर्षोतक संस्कार किए जाते हैं। इस लिए अनेक बार उस पाषाण की घिसाई होना प्राकृतिक है। इसी लिए सर्वज्ञ ऋषिमुनियोंने धर्मग्रंथों में मूर्ति की पुनःप्राणप्रतिष्ठापना का विधि बताया है।
३. वर्तमान समय में पुरी तथा ओडिशा में श्री जगन्नाथदेव की यात्रा चालू है। यहां पर स्थित मंदिर में श्री जगन्नाथ, श्री बलभद्र, देवी सुभद्रा एवं सुदर्शन इत्यादि देवी-देवताओंकी काष्ठमूर्तियोंको प्रत्येक १२ वर्षोंसे पुन:प्राणप्रतिष्ठापना कर परिवर्तित किया जाता है। इस के पीछे भी घिसी मूर्ति का पूजन न करने का धर्मशास्त्रीय दृष्टिकोण है।
४. शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध एवं संबंधित शक्तियां एकत्र रहती हैं, इस अध्यात्मशास्त्रीय सिद्धांत के अनुसार देवी-देवताओंकी मूर्ति (रूप) अर्थात प्रत्यक्ष देवता ही है। इस लिए टूटी हुई मूर्ति का विधिवत विसर्जन न करना उस देवता का अपमान है तथा उस को कारणभूत देवस्थान समिति उस पाप की धनी होती है।
५. देवी-देवताओंकी मूर्ति प्रत्यक्ष देवता ही होने से प्राचीन वस्तु के रूप में उसे संजोए रखना भावनावश किया गया कृत्य है। अध्यात्म में धर्मशास्त्र के प्रति (ईश्वर के प्रति का) भाव श्रेष्ठ होता है। इस लिए किसी को क्या प्रतीत होगा, इस की अपेक्षा प्रत्यक्ष में धर्म (ईश्वर) को क्या अपेक्षित है, इस का विचार श्रद्धालुओंको करना चाहिए तथा मंदिर समिति को धर्म के अनुसार आचरण करने पर विवश करना चाहिए।
६. जिसप्रकार शरीर पर अनेक घाव रहनेवाले व्यक्ति की ओर देख अथवा इजिप्त में अनेक वर्षों से संजोकर रखे ममी को (मृतदेह को) देख कर कष्टदायी स्पंदनोंका भान होता है, उसी प्रकार भग्न मूर्ति से भी कष्टदायी स्पंदन उत्पन्न होकर श्रद्धालुओंको उस से कष्ट होने की संभावना है। उसी प्रकार ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होने को कारणभूत व्यक्तियोंको देवी-देवताओंका श्राप लगता है।
७ . धर्मशिक्षा का अभाव रहने से आज धार्मिक क्षेत्र में पुरातत्व विभाग हस्तक्षप कर रहा है। धर्मशास्त्र के अनुसार कृत्य न कर श्री महालक्ष्मीदेवी की विडंबना करनेवाली पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान व्यवस्थापन समिति पर देवी की अवकृपा निश्चित है। अतः श्री महालक्ष्मीदेवी की मूर्ति पर रासायनिक प्रक्रिया न कर उसकी पुनः प्राणप्रतिष्ठापना करने हेतु श्रद्धालुओंको अपने धर्मकर्तव्य के रूप में आग्रही भूमिका में रहना चाहिए।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात