फाल्गुन कृष्ण पक्ष अष्टमी, कलियुग वर्ष ५११५
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वर्तमानमें चुनाव निकट आनेसे हर तरफ विविध राजनैतिक पक्षोंकी सभाओंकी बाढ आ गई है । प्रत्येक नेता एवं पक्ष, ‘हम ही कैसे अच्छे हैं तथा अन्य कैसे बुरे अथवा कुछ कामके नहीं’, समाजमनपर यह अंकित करनेका पूरा प्रयास कर रहे हैं । यह करते समय उनका उद्देश्य केवल स्वयंका स्वार्थ पूरा करने हेतु सत्ता संपादन करना तथा राजनैतिक लाभ उठाना है ।
इसके विपरीत हिंदू जनजागृति समिति आयोजित हिंदु धर्मजागृति सभा राष्ट्र-धर्मपर हो रहे आघातोंके विषयमें हिंदु समाजको जागृत कर उसमें राष्ट्र-धर्मके विषयमें प्रेम उत्पन्न कर रही है । साथ ही समाजको राष्ट्र-धर्मके प्रति कर्तव्योंकी याद दिलाकर उसे क्रियाशील बना रही है । इन सभाओंमें बोलनेवाले वक्ता राष्ट्र-धर्मप्रेमी हैं, तथा वे साधना भी करते हैं, अत: उनकी वाणीमें चैतन्य होता है । उन्हें कोई भी राजनैतिक लाभ नहीं उठाना है, अत: वे निःस्वार्थ होकर समाजप्रबोधनका कार्य कर रहे हैं । इन सभी सूत्रोंके कारण इन सभाओंको धर्माभिमानियोंका प्रचुर प्रतिसाद प्राप्त होनेसे अनेक धर्माभिमानी समितिके राष्ट्र-धर्मविषयक कार्यमें सम्मिलित हो रहे हैं । यही इन सभाओंकी फलनिष्पत्ति है ।
राजकीय सभा तथा हिंदु धर्मजागृति सभा
सूत्र | राजकीय सभा | हिंदु धर्मजागृति सभा |
१. नियोजन | कुशलतापूर्वक न होना | कुशलतापूर्वक होना |
२. चंदा अ. होनेवाला व्यय |
जबरदस्ती इकट्ठा करना प्रचुर |
अर्पणके रूपमें प्राप्त करना आवश्यक उतना ही व्यय करना । ‘गुरुका धन है’, इस भावसे हाथ तंग रखना |
३.ईश्वरका अधिष्ठान | न होना | होना |
४. व्यासपीठ रचना | असात्त्विक | सात्त्विक |
५. व्यासपीठ स्थित परदा अ.परदेका होनेवाला परिणाम |
राजनैतिक पक्षका
रज-तम प्रक्षेपित होना |
धर्मसंस्थापक श्रीकृष्ण तथा अर्जुनका चैतन्य प्रक्षेपित होना चित्र |
६.वक्ताओंका चेहरा | अहंकारी | सात्त्विक |
७. बोलना अ. बोलनेका परिणाम |
अहंकारयुक्त सुननेकी इच्छा न होना |
अंत:करणसे तथा क्षात्रवृत्तियुक्त सुननेको अच्छा लगना |
८. बोलनेका विषय | राजनैतिक ‘तू तू-मैं मैं’ करना | हिंदु धर्म एवं राष्ट्रविषयक |
९. श्रोता | अधिकतर पैसा देकर एकत्रित किए जाना | धर्माभिमानी स्व-व्ययसे आना |
१०. आरंभ | कर्णकर्कश संगीतसे | मंत्रोच्चारसे |
११. दीपप्रज्ज्वलन | मोमबत्तीसे | कयपंजीसे (दियेसे) |
१२. कर्तापन | स्वयं लेना | ईश्वरको देना |
१३. सभा समाप्त होनेपर | तुरंत घर जानेकी इच्छा होना | वातावरणके चैतन्यसे वहांपर रुकनेकी इच्छा होना |
१४. प्रेरणा | कुछ करनेकी प्रेरणा प्राप्त न होना | धर्म हेतु कुछ करनेकी इच्छा होना |
१५. पुलिसकी भूमिका | राजनैतिक सभाओंको सुरक्षा | ‘आतंकवादी है’, इस दृष्टिसे |
१६. श्रोताओंपर हुआ परिणाम | दिशा प्राप्त न होना, रज-तम बढना | राष्ट्र-धर्मकार्य हेतु दिशा प्राप्त, सात्त्विकता बढना |
– श्री. अरुण खोल्लम
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात