धर्मशास्त्रानुसार श्री महालक्ष्मीदेवी की प्रतिमा परिवर्तित करना ही हितकारक ! – श्री. रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति

हिन्दू जनजागृति समिति की पत्रकार परिषद

बायीं ओर से श्री. मधुकर नाजरे, श्री. रमेश शिंदे तथा श्री. राजन बुणगे

कोल्हापुर (महाराष्ट्र) : हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. रमेश शिंदे ने पत्रकार परिषद में अपना मत व्यक्त करते समय बताया, कि ‘यहां की सुविख्यात श्री महालक्ष्मीदेवी की प्रतिमा पर रासायनिक प्रक्रिया करने की पद्धति धर्मशास्त्रानुसार नहीं है।

इस संदर्भ का पत्र हमने मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री तथा पुरातत्त्व विभाग को प्रस्तुत किया था। तत्पश्चात शासन ने हमारे साथ किसी भी प्रकार का पत्रव्यवहार नहीं किया। पुरातत्त्व विभाग ने स्वयं ही इस प्रतिमा की रासायनिक प्रक्रिया पर पांबदी लगाने के आदेश दिए हैं। उसके साथ हमारा कुछ भी संबंध नहीं है। यह प्रक्रिया रोकने के लिए हम उत्तरदायी नहीं है। अतः यह कहना अनुचित है, की ‘हिन्दू जनजागृति समिति ने रासायनिक विलेपन के लिए प्रतिबंध लगाया।’ हमारा कहना केवल इतना है, कि यदि धर्मशास्त्रानुसार कृत्य किए जाएं, तो उसका लाभ सर्व भक्तोंको होगा।

१९५५ में जब वर्तमान की श्री महालक्ष्मीदेवी की प्रतिमा पर वज्रलेप किया गया, उस समय उस प्रतिमा हाथ टूट गया था। नया हाथ बिठाते समय वह अनुचित स्थान पर बिठाया गया। तदुपरांत हंगामा हुआ था। आज तक उसी प्रतिमा का पूजन किया जाता रहा है। ऐसी भंग प्रतिमा परिवर्तित करना समाजहित में है।’ उस अवसर पर हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. राजन बुणगे तथा श्री. मधुकर नाजरे उपस्थित थे।

श्री. शिंदे ने आगे यह भी बताया, कि ….

१. श्रद्धालुओंको विचार करना चाहिए, कि अब हमें श्री महालक्ष्मीदेवी चाहिए या प्रतिमा चाहिए ? रासायनिक विलेपन के कारण प्रतिमा का अनादर हो सकता है।

२. वर्तमान में रासायनिक विलेपन के लिए हड्डियों का चूरा/चूर्ण, अंडे का बलक ऐसे पदार्थोंका उपयोग किया जाता है। वर्तमान में रासायनिक विलेपन किस प्रकार किया जाएगा, उस में कौन से पदार्थ समाविष्ट होंगे, इस बात का पता किसी को भी नहीं है।

३. यदि भविष्य में इस प्रतिमा के संदर्भ में कुछ विपरीत हुआ, प्रतिमा भंग हुई, तो उसका दायित्व किस पर रहेगा ? यह बात भी आज निश्चित नहीं हुई है। पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान व्यवस्थापन समिति, श्रीपूजक एवं पुरातत्त्व विभाग की भूमिका अथवा दायित्व स्पष्ट नहीं है।

४. यदि प्रतिमा के ऊपर रासायनिक कवच निर्माण किया गया, तो प्रतिमा से सात्त्विकता प्रक्षेपित होने की क्षमता अल्प हो जाएगी। धर्मशास्त्रानुसार भंग हुई प्रतिमा का विसर्जन कर नई प्रतिमा की प्रतिष्ठापना करना आवश्यक रहता है। इस विषय के कुछ संदर्भ प्रस्तुत किए हैं।

५. अभी भी समय है। २४ जुलाई को प्रातः विधि होगी। तब तक शास्त्र ज्ञात करना आवश्यक है।

६. जिस प्रकार निधन हुए व्यक्ति की देह का हम विसर्जन करते हैं, उसी प्रकार प्रतिमा में देवताओंका तत्त्व रहता है। तत्त्व समाप्त होने के पश्चात प्रतिमा परिवर्तित कर सकते हैं।

७. वर्तमान में पुरी, ओडिशा में श्री जगन्नाथ देव, श्री बळभद्र, देवी सुभद्रा एवं सुदर्शन इन देवताओंकी काष्ठ प्रतिमाएं प्रत्येक १२ वर्षोंके पश्चात् नई बनाकर उनकी प्राणप्रतिष्ठा की जाती है। इसके पीछे धर्मशास्त्रीय दृष्टिकोण यह है, कि ‘घिसी हुई प्रतिमा का पूजन नहीं कर सकते।’

८. आज श्री महालक्ष्मी मंदिर में इस संदर्भ में विधि आरंभ हैं, उसके लिए कुछ धर्माचार्य भी उपस्थित हैं। इस संदर्भ में हमें कुछ भी कहना नहीं है। धर्मशास्त्र का पालन होना चाहिए, केवल यही हमारा आग्रह है।

९. पुरातत्त्व विभाग गढ-किलोंके संवर्धन हेतु कार्य करता है। उनका धर्मशास्त्र के साथ अधिक संबंध नहीं है। अतः धर्मशास्त्र की जानकारी देने के कर्तव्य के रूप में हम ने यह पत्र उन्हें भेजा था।

१०. वस्तु के अनुसार जतन करना, यह भावना हेतु किया गया कृत्य है। अध्यात्म में धर्मशास्त्र के प्रति (ईश्वर के प्रति) श्रेष्ठ भाव रहता है। अतः ‘किसी को क्या प्रतीत होता है, इस की अपेक्षा प्रत्यक्ष में धर्म को (ईश्वर को) क्या अपेक्षित है,’ श्रद्धालुओंको इस बात का विचार कर धर्मानुसार आचरण करने के लिए संबंधित लोगोंको बाध्य करना चाहिए।

११. हमें इस बात का पता चलते ही हम ने धर्मशास्त्र पालन की दृष्टि से आवश्यक सर्व प्रयास किए। ‘हम ने धर्मशास्त्र की जानकारी देर से दी’ ऐसा कहने की अपेक्षा यदि इस संदर्भ में न्यायालयीन प्रक्रिया आरंभ थी, तो उस समय इतने वर्षोंसे पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान व्यवस्थापन समिति अथवा उस में सम्मिलित अन्य लोगोंने धर्मशास्त्र ज्ञात क्यों नहीं किया, ऐसा पत्रकारोंने पूछना चाहिए।

हिन्दू जनजागृति समिति के पत्र का परिणाम !

श्री महालक्ष्मीदेवी का अशास्त्रीय रासायनिक विलेपन प्रतिबंधित किया गया !

hjs-logo3कोल्हापुर : यहां के सुविख्यात श्री महालक्ष्मीदेवी की प्रतिमा पर रासायनिक संवर्धन प्रक्रिया की जानेवाली थी; किंतु वह अशास्त्रीय कृत्य है, हिन्दू जनजागृति समिति ने केंद्रीय पुरातत्व विभाग, प्रधानमंत्री कार्यालय तथा मुख्यमंत्री को ऐसा पत्र प्रस्तुत किया था।

अतः २२ जुलाई से किए जानेवाले रासायनिक विलेपन पर पुरातत्त्व विभाग ने पाबंदी लगाने के आदेश दिए हैं।

पुरातत्त्व विभाग ने संभाजीनगर के अधिकारियोंको आगे के आदेश प्राप्त होने तक कोल्हापुर में न जाने का सुझाव दिया है; इसलिए संवर्धन की प्रक्रिया का प्रत्यक्ष आरंभ नहीं हुआ है। पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति, श्रीपूजक, केंद्रशासन के पुरातत्त्व विभाग की ओर से यह प्रक्रिया आरंभ होनेवाली थी।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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