श्री महालक्ष्मीदेवी के वज्रलेप के संदर्भ में ‘एबीपी माजा’ पर प्रसारित चर्चासत्र में स्पष्ट हुआ धर्मशास्त्र
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हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा धर्मशास्त्र पालन का आग्रह
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महंत सुधीरदास द्वारा भी प्राप्त हुई धर्मशास्त्र की उपयुक्त जानकारी
मुंबई – धर्मशास्त्रानुसार देवता की प्रतिमा यदि अल्प मात्रा में भी भंग हुई है, तो उसका पूजन न करे; क्योंकि उनमें स्थित देवत्व विसर्जित हो जाता है । स्वयंभू, निर्गुण, निराकार देवस्थान जहां होगा, वहीं पर वज्रलेप कर सकते हैं । यदि प्रतिमा भंग हुई या घिसी हुई है, तो उसे परिवर्तित करना ही उचित है । साथ ही धर्मशास्त्र में यह बताया है, कि जहां केदारनाथ के समान स्वयंभू देवस्थान हो, वहां वज्रलेप कर सकते हैं परंतु यदि श्री महालक्ष्मीदेवी की प्रतिमा है, तो उसे परिवर्तित करना ही उचित होगा; क्योंकि कोई भी प्रतिमा घिस जाती ही है । १५-२० वर्ष पूर्व सारसबाग के पास एक देवस्थान है, उसका विवाद न्यायालय में प्रविष्ट होने के पश्चात् न्यायालय ने भी प्रतिमा परिवर्तित करने का निर्णय दिया । साथ ही बहुभाषा संबंधी ब्राह्मण न्यास के अध्यक्ष वेदाचार्य मोरेश्वर घैसास गुरुजी ने यह मार्गदर्शन किया, कि वज्रलेप के लिए रासायनिक प्रक्रिया का उपयोग करना अशास्त्रीय है, उसके लिए प्राकृतिक एवं आयुर्वेदिक प्रक्रिया से भी लेपन कर सकते हैं ।
वे ‘एबीपी माजा’ समाचारप्रणाल पर २३ जुलाई की रात्रि ‘एबीपी माजा विशेष’ कार्यक्रम के ‘श्री महालक्ष्मी प्रतिमा की रासायनिक संवर्धन प्रक्रिया का विरोध क्यों’ ?, इस विचारविमर्श में अपने मनोगत व्यक्त कर रहे थे । केंद्रीय पुरातत्व विभाग को हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा यह पत्र प्रस्तुत किया गया था, कि कोल्हापुर के श्री महालक्ष्मीदेवी की प्रतिमा पर की गई रासायनिक विलेपन प्रक्रिया धर्मशास्त्रानुसार नहीं है । इस संदर्भ में यह चर्चा आयोजित की गई थी । इस चर्चा में नासिक के श्री काळाराम मंदिर के महंत सुधीरदासजी महाराज, हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे, श्रीमहालक्ष्मीदेवी के श्रीपूजक श्री. अजीत ठाणेकर, राष्ट्रीय प्रवचनकार डॉ. सच्चिदानंद शेवडे तथा मूर्तिशास्त्र के अभ्यासी श्री. गो.ब. देगलुरकर सम्मिलित हुए थे । इस कार्यक्रम का सूत्रसंचालन नम्रता वागळे ने किया ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात