हिन्दुओ, मंदिर सरकारीकरण के दुष्परिणाम को जानें एवं मंदिरोंको भक्तोंके नियंत्रण में देने हेतु सरकार को विवश करें !
पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान व्यवस्थापन समिति के भ्रष्टाचार के प्रमाण देने हेतु लोगोंको आगे आने का आवाहन !
कोल्हापुर (महाराष्ट्र) : श्री महालक्ष्मी देवस्थान भ्रष्टाचारविरोधी कृति समिति ने २५ जुलाई को पत्रकार परिषद आयोजित कर और भी कुछ प्रमाण प्रस्तुत किए हैं।
वर्तमान में देवस्थान समिति के प्रभारी अध्यक्ष जिलाधिकारी ही हैं। इस लिए उनको इस भ्रष्टाचार के प्रकरण पर ध्यान देना चाहिए, अन्यथा इस प्रकरण में भक्तोंको आंदोलन छेडना पडेगा, हिन्दू जनजाग़ृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे ने ऐसी चेतावनी दी।
देवस्थान व्यवस्थापन समिति ने मणिकर्णिका कुंड समान देवस्थान के अविभाज्य भाग वाले तीर्थ को बंद कर वहां शौचालय चालू किया है। जिलाधिकारीद्वारा १५ अप्रैल २०१३ को शौचालय हटा कर वहां पुनः कुंड चालू करने के आदेश देने पर भी देवस्थान समिति ने कार्यवाही नहीं की है। इस अवसर पर मणिकर्णिका कुंड पर बनाया अवैधानिक शौचालय तोड कर उस कुंड को भक्तोंके लिए चालू करने का आवाहन भी किया जा रहा है। इस अवसर पर कृति समिति के कानूनी परामर्शदाता एवं हिन्दू विधिज्ञ परिषद के अध्यक्ष अधिवक्ता श्री. वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने भक्तोंको ऐसा आवाहन किया है कि यदि उन्हें प्रमाण मिले तो वे समिति को दें।
इसके लिए उन्होंने श्री. मधुकर नाजरे से ९७६६३९३९२० क्रमांक पर संपर्क करने के लिए कहा।
इस अवसर पर वाडी रत्नागिरी (जोतिबा) के श्री. कृष्णात शिंगे ने देवस्थान समिति के कुकृत्य प्रस्तुत किए। हिन्दू विधिज्ञ परिषद ने जनवरी २०१५ में इस से पूर्व देवस्थान व्यवस्थापन समितिद्वारा किए गए भूमि खनन, अलंकार तथा प्रसाद के लड्डू इत्यादि घोटाले उजागर किए हैं।
श्री. कृष्णात शिंगेद्वारा प्राप्त सूचना अधिकार की जानकारी के अनुसार श्री. अजित दादर्णे को केदारलिंग देवस्थान को (जोतिबा) आवश्यक माला, पुष्प इत्यादि की पूर्ति हेतु वर्ष १९९१ में तीन एकड भूमि दी गई थी। तत्पश्चात वर्ष २००९ में हार एवं पुष्प की पूर्ति हेतु पुनः पांच एकड भूमि दी गई। प्रत्यक्ष में देवस्थान को पुष्प देने का उत्तरदायित्व जोतिबा टेकडी फुलारी (निकम) पर पूर्व में ही निश्चित किया गया था। इस के लिए उन्हें मनपाडळे (तहसील हातकणंगले), जाखले (तहसील पन्हाला) की भूमि भी देवस्थान समितिद्वारा दी गई है। पश्चात दादर्णे की भूमि क्यों दी गई ? देवस्थान समितिद्वारा दी गई जानकारी के अनुसार इस से भयंकर बात यह कि दादर्णे की भूमि देने के विषय में देवस्थान समिति के न्यासियोंकी बैठक में विचार-विमर्श ही नहीं हुआ। इस संदर्भ में श्री. शिंगे ने जिलाधिकारी को नवंबर २०१४ में परिवाद भी किया था एवं ३ स्मरणपत्र भी भेजे; परंतु आज तक इस विषय में कोई कार्यवाही नहीं की गई। इसी दादर्णे को अवैधानिक रूप से वाडी रत्नागिरी की धर्मशाला चलाने हेतु दी गई है।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात