श्री महालक्ष्मीदेवी की मूर्ति के वज्रलेप के संदर्भ में कोल्हापूर में आयोजित पत्रकार परिषद
कोल्हापुर (महाराष्ट्र) : श्री महालक्ष्मीदेवी की मूर्ति के वज्रलेप के संदर्भ में अभियोग चालू रहते में पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति एवं श्रीपूजक वादी-प्रतिवादी थे।
उस समय देवस्थान समिति ने लिखकर दिया है कि श्री महालक्ष्मीदेवी की मूर्ति का हाथ एक पुजारी की पत्नी के हाथ से भंग हो गया है; परंतु उसके लिए किसी को अपराधी नहीं माना गया है। आज बताया जा रहा है कि न्यायालय ने ३१ अगस्त तक मूर्ति के रासायनिक विलेपन का आदेश दिया है; परंतु वास्तविकता ऐसी नहीं है।
प्रत्यक्ष में यह वाद न्यायालय के बाहर श्रीपूजक एवं देवस्थान समिति ने समन्वय कर मिटा दिया है। उन्होंने न्यायालय से कहा कि वे सौहार्द से यह रासायनिक विलेपन कर लेंगे एवं न्यायालय ने इसे स्वीकार किया। दस्तावेज से तो ऐसी जानकारी प्राप्त है। अतः यह स्पष्ट है कि मूर्ति का रासायनिक विलेपन शीघ्रता से करने के पीछे परदे के बाहर एवं परदे के अंदर कुछ पृथक ही सूत्र चल रहे हैं। इस कारण संदेह के लिए पर्याप्त सूत्र मिलते हैं, कि कहीं ऐसा तो नहीं कि इस शीघ्रता के पीछे कोई अन्य कारण हो।
हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे ने २५ जुलाई को आयोजित पत्रकार परिषद में ऐसे विचार व्यक्त किए। इस पत्रकार परिषद में हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता श्री. वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने भी महत्त्वपूर्ण सूत्र प्रस्तुत किए।
श्री. रमेश शिंदे ने आगे कहा कि…
१. न्यायालय ने श्रीराम मंदिर के संदर्भ में निर्णय देते हुए कोई समय मर्यादा नहीं दी थी। इस लिए न्यायालय ने केवल इस वाद को मिटाने के लिए कहा था।
२. श्री महालक्ष्मीदेवी के संदर्भ में हमारे धर्मशास्त्र के विषय में सूत्र प्रस्तुत करने पर जिलाधिकारी ने हमारे साथ ६ अगस्त के पश्चात विचार-विमर्श करने के लिए सम्मति दी है।
३. इस चर्चा में हम इस मंदिर में ध्यान में आए अन्य त्रुटियोंके सूत्र प्रस्तुत करेंगे।
४. आज श्रीपूजक ऐसा बता रहे हैं कि देवी की मूर्ति टूटी नहीं है, परंतु उनकेद्वारा न्यायालय में लिखकर दिए उत्तर एवं जानकारी विसंगत है। इस लिए ध्यान में आता है कि इस प्रकरण में अवश्य कोई अन्य कारण है/दाल में कुछ काला है।
५. श्रीपूजकोंने शृंगेरी पीठ के शंकराचार्यजी का मत मंगवाया था उस समय वर्ष २००२ में उन्हीं शंकराचार्यजी ने बताया कि वज्रलेप करना चूक है।
६. छायाचित्र में सुस्पष्ट दिखाई देता है कि वर्ष १९५५ में भग्नावस्था की मूर्ति को कमरपट्टा लगाया गया है। (छायाचित्र दिखाया) देवी की साडी ठीक से दिखाई नहीं देती। उस पर वज्रलेप किया गया। अब पुनः यदि श्री महालक्ष्मीदेवी की मूर्ति को काटकर कर रासायनिक लेपन किया जाता है, तो वह चूक है। हमने ऐसा कभी नहीं कहा कि हम मार्ग पर आकर आंदोलन करेंगे।
७. जिलाधिकारी ने कहा कि यदि पुरातत्व विभाग मूर्ति का संपूर्ण दायित्व लेने के लिए सिद्ध है, तो ठीक है; परंतु धर्मशास्त्र के लिए हमारा आग्रह रहेगा।
अधिवक्ता श्री. वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने कहा कि…
१. पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान व्यवस्थापन समिति के घोटाले श्रीपूजकोंके समक्ष ही हो रहे थे; परंतु इस के विरुद्ध आजतक किसी ने कोई भाष्य क्यों नहीं किया ?
२. वज्रलेप क्या है, लोगोंको यह समझना आवश्यक है। भंग हुए क्षेत्र में क्या आप बेलपत्र डालेंगे अथवा अन्य कुछ, यह जनता के समक्ष आना चाहिए। आप कहते हो कि देवी की मूर्ति को इंजेक्शन देंगे अर्थात ठीक क्या करेंगे ? इंजेक्शन मनुष्य को देना संभव है, इसका अर्थ निश्चित ही मूर्ति को काटकर गिराया जाएगा ?
३. वे सदैव कहते हैं कि हम देर से आए। अब क्यों आपत्ति उठाई; परंतु जब इतने वर्षोंसे आप पर देवी का दायित्व था, तो आपने उसे ठीक से क्यों नहीं संभाला ?
४. छायाचित्र में दर्शाए अनुसार वर्ष १९५५ में मूर्ति की इतनी दुरवस्था रही होगी, तो आज ६० वर्षोंके पश्चात उसकी अवस्था क्या होती, इसका विचार भी न करें, तो अच्छा !
५. कुछ समय पूर्व इस मूर्ति को पीछे की ओर सहारा/आलंब दिया गया था। इस मूर्ति के टुकडे गिरेंगे, इसी लिए रासायनिक संवर्धनद्वारा छिन्न-भिन्न मूर्ति संलग्न की जाएगा !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात