६ पुलिस अफसरों की मौजूदगी में फांसी पर लटकाया गया मुंबई धमाकों का गुनहगार याकूब

नागपुर/मुंबई/नई दिल्ली – १९९३ के मुंबई सीरियल ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन को नागपुर के सेंट्रल जेल में सुबह ७ बजे फांसी पर लटका दिया गया। कुल १० मिनट में फांसी की प्रक्रिया पूरी हो गई। हालांकि कुछ टीवी चैनलों ने पहले ये खबर दी थी कि उसे तय वक्त से २६ मिनट पहले ही फांसी दी गई। लेकिन बाद में जेल प्रशासन ने पुष्टि की कि उसे सुबह सात बजे ही फांसी पर ही लटकाया गया। फांसी के वक्त कुल ६ पुलिस अफसर मौजूद थे। इनमें डीआईजी, दो कॉन्सटेबल, सीएमओ और जेल सुपरिंडेंटेंट शामिल हैं। इस दौरान ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट और डॉक्टरों की एक टीम भी मौजूद थी। बताया जाता है कि महाराष्ट्र के सीएम १०.३० बजे इसकी पूरी जानकारी देंगे।

पोस्टमॉर्टम जेल में ही

जानकारी के मुताबिक याकूब की डेड बॉडी को तख्ते से उतार कर उसका पोस्टमॉर्टम जेल में ही किया गया। याकूब के परिवार को फांसी की इन्फॉरमेशन दी जा चुकी है। बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि याकूब ने हर उस मौके का इस्तेमाल बड़ी चालाकी से किया जो उसे फांसी से बचा सकता था। उसे फांसी में देर तो हुई लेकिन लोगों को इंसाफ जरूर मिला।

स्त्रोत : दैनिक भास्कर


२९ जुलार्इ २०१५

सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याकूब मेमन की याचिका, कल हो सकती है फासी

नई दिल्ली –  मुंबई विस्फोट मामले में मौत की सजा पाने वाले याकूब मेमन की अर्जी सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दी है। कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि याकूब की क्यूरेटिव याचिका पर आगे सुनवाई नहीं होगी। तीन जजों की बेंच ने कहा कि याकूब मेमन की याचिका पर सुनवाई में किसी तरह की त्रुटी नहीं रही है। इस पर दोबारा सुनवाई नहीं होगी। इसके अलावा कोर्ट ने याकूब की दूसरी याचिका भी खारिज करते हुए डेथ वारंट को सही करार दिया है। कोर्ट ने कहा कि डेथ वारंट में कोई चूक नहीं हुई है।

उधर, महाराष्ट्र के राज्यपाल ने भी याकूब की दया याचिका खारिज कर दी है। महाराष्ट्र के डीजीपी विधानसभा में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मिलने पहुंचे। इसके अलावा मुंबई के पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया भी फडणवीस से मुलाकात कर रहे हैं। यानि अब याकूब की आखिरी उम्मीद राष्ट्रपति पर ही टिकी है जिनके समक्ष याकूब ने दया याचिका दाखिल की है। वहीं याकूब के भाई ने मीडिया से बातचीत में सिर्फ इतना ही कहा कि मुझे भारतीय न्याय व्यवस्था और उपर वाले पर पूरा भरोसा है।

आज याकूब ने राष्ट्रपति के समक्ष भी दया याचिका दाखिल की। याकूब मेमन की तरफ से राजू रामचंद्रन ने जिरह करते दलील दी, १. क्यूरेटिव पिटीशन को नियमानुसार नहीं सुना गया।

२. डेथ वारंट जारी होने से पहले ट्रायल कोर्ट ने उसे नहीं सुना।

३. याकूब की दया याचिका लंबित होने के बावजूद डेथ वारंट जारी कर दिया गया।

४. डेथ वारंट की जानकारी उसे १७ दिन पहले दी गई जबकि वो ९० दिन पहले जारी हुआ था। एनजीओ की तरफ से आनंद ग्रोवर ने जिरह की और कहा कि याकूब के साथ नाइंसाफी हो रही है।  अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी सरकार की तरफ से जिरह की।

इससे पहले कल दो न्यायाधीशों की पीठ ३० जुलाई को प्रस्तावित सजा पर अमल पर रोक की मांग वाली मेमन की याचिका पर बंट गई थी। जस्टिस एआर दवे और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ के बीच असहमति के बीच, यह मामला चीफ जस्टिस एच एल दत्तू को भेजा गया जिन्होंने  न्यायमूर्ति दीपक मिश्र, न्यायमूर्ति प्रफुल्ल सी पंत और न्यायमूर्ति अमिताव राय की बड़ी पीठ का गठन किया।

मेमन ने दावा किया था कि अदालत के सामने सभी कानूनी उपचार खत्म होने से पहले ही वारंट जारी कर दिया गया।न्यायमूर्ति एआर दवे ने मौत के वारंट पर रोक लगाए बगैर उसकी याचिका खारिज कर दी, वहीं न्यायमूर्ति कुरियन की राय अलग रही और उन्होंने रोक का समर्थन किया।

दोनों न्यायाधीशों के बीच किसी विषय पर अलग अलग राय होने पर पैदा कानूनी स्थिति के बारे में पूछे जाने पर पीठ को बताया गया कि अगर एक न्यायाधीश इस पर रोक लगाता है और दूसरा नहीं, तो फिर कानून में कोई व्यवस्था नहीं रहेगी। अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी और मेमन की ओर से पेश हुए राजू रामचंद्रन सहित वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने इस बात पर सहमति जताई कि इस विषय को गौर करने के लिए प्रधान न्यायाधीश के हस्तक्षेप के साथ बड़ी पीठ को भेजा जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति दवे का नजरिया था कि 21 जुलाई को मेमन की उपचारात्मक याचिका को खारिज करने में कुछ खामी नहीं थी और महाराष्ट्र के राज्यपाल उसकी दया याचिका पर फैसला कर सकते हैं क्योंकि दोषी कैदी अपनी सभी कानूनी उपचारों का प्रयोग कर चुका है। शीर्ष अदालत द्वारा मेमन की उपचारात्मक याचिका पर फैसले में सही प्रक्रिया का पालन नहीं करने की बात कहने वाले न्यायमूर्ति कुरियन ने कहा कि इस खामी को दूर किया जाना चाहिए और उपचारात्मक याचिका पर नए सिरे से सुनवाई होनी चाहिए।

न्यायाधीश ने कहा कि ऐसी परिस्थिति में मौत के वारंट पर रोक लगाई जानी चाहिए। न्यायमूर्ति दवे ने इस मसले पर मनु स्मृति का एक श्लोक उद्धृत करते हुए कहा कि खेद है, मैं मौत के फरमान पर रोक लगाने का हिस्सा नहीं बनूंगा। प्रधान न्यायाधीश को निर्णय लेने दीजिए।

स्त्रोत : आइबीएन लाइव्ह

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