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हिंदुओ, भगवान शंकरकी विडंबना रोकने हेतु क्रियाशील बनें !

फाल्गुन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी, कलियुग वर्ष ५११५

शिवके विडंबनात्मक चित्र देखकर जिनका रक्त उबलता नहीं, वह हिंदु है ही नहीं !
 


प्रसिद्ध किए गए इन चित्रोंद्वारा धार्मिक भावनाओंपर आघात करनेका उद्देश्य न होकर, समाजमें हिंदु देवी-देवताओंकी विडंबनाके विरुद्ध जागृति हो; इस हेतु दिए गए हैं !

वर्तमान समयमें विज्ञापन, नाटक, चलचित्र (फिल्म) इन माध्यमोंद्वारा हिंदुओंके देवताओंकी विडंबना की जाती है; किंतु हिंदुओंके निष्क्रिय होनेके कारण इसके विरुद्ध कोई भी आवाज नहीं उठाता, यह दुर्भाग्यपूर्ण है ! इससे विडंबनाकी शृंखला चालू ही रहती है । ‘शिवरात्रिके दिन शिवजी पार्वती एवं बैलका मैथुन देख रहे हैं’, ‘बिना सिरके तथा हाथ-पांव कटे शिवजीके निकट अर्धनग्न तथा पांव कटी हुई पार्वती हैं तथा उनकी गोदमें श्री गणेशजी बैठे हैं’, हिंदुद्वेषी चित्रकार म.फि. हुसेनने ऐसे विकृत चित्र बनाकर पूरे विश्वमें खुलकर उनका विक्रय किया । ऊपर निर्देशित एक चित्रमें भगवान शंकरके नेत्रोंपर धूपका चश्मा दिखाया गया है, तो एक चित्रमें भगवान शंकरको बिल्लीके रूपमें चित्रित किया गया है ।
 

देवताओंकी विडंबना रोकना, समष्टि स्तरकी उपासना है : देवताओंकी उपासनाके मूलमें श्रद्धा होती है । किसी भी प्रकारसे की गई देवताओंकी विडंबना श्रद्धापर आघात ही करती है । अत: यह धर्महानि है । धर्महानि रोकना, कालानुसार आवश्यक धर्मपालन है, वह समष्टि स्तरपर देवताकी उपासना ही है । यह उपासना किए बिना देवताकी उपासना पूरी हो ही नहीं सकती । इसी कारण शिवभक्तोंको भी इस विषयमें जागरूक होकर धर्महानिको रोकना आवश्यक है । 'सनातन संस्था' एवं 'हिंदू जनजागृति समिति' इस संदर्भमें वैध पद्धतिसे कार्य कर रही हैं ।

 

देवताओंकी विडंबना रोकने हेतु ये करें !

१. देवताओंके अश्लील चित्र बनाकर उनका खुले आम विक्रय करनेवाले हिंदुद्वेषी तथा ऐसी चित्र-प्रदर्शनियोंका निषेध करें !
२. देवताओंकी विडंबना करनेवाले विज्ञापनवाले उत्पादन, वृत्तपत्र तथा कार्यक्रम, उदा. नाटक आदिका बहिष्कार करें !
३. देवताओंका पहनावा कर भीख मांगनेवालें ‘बहिरुपियों’को रोकें !
४. देवताओंकी विडंबनासे धार्मिक भावनाओंपर आघात होनेके कारण पुलिसमें परिवाद प्रविष्ट करें !
 

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

 

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