काबुल : हक्कानी नेटवर्क का चीफ जलालुद्दीन हक्कानी मारा जा चुका है। अफगान तालिबान ने उसकी मौत को कन्फर्म किया है। तालिबान के मुताबिक, हक्कानी की मौत एक साल पहले बीमारी की वजह से हो गई थी। यह आतंकी नेटवर्क अफगानिस्तान में तालिबान का सबसे खतरनाक आतंकी गुट माना जाता था।
तालिबान के मुताबिक, जलालुद्दीन के बीमार होने के बाद उसका बेटा सिराजुद्दीन हक्कानी बीते एक साल से आतंकी नेटवर्क की बागडोर संभाल रहा है। वह ऑपरेशन कमांडर के तौर पर काम कर रहा है।
गौरतलब है कि जलालुद्दीन हक्कानी अमेरिकी की मोस्ट वॉन्टेड आतंकियोंकी सूची में शामिल था। उस पर १० मिलियन डॉलर यानी ६३ करोड़ रुपए का ईनाम था। उसके दस बेटों में से तीन की मौत ड्रोन हमले में हो चुकी है। वहीं, चौथे बेटे की इस्लामाबाद में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
क्या है हक्कानी नेटवर्क ?
पाकिस्तान-अफगानिस्तान की सीमा के दोनों ओर का कबायली क्षेत्र मौलवी जलालुद्दीन हक्कानी नेटवर्क का गढ़ माना जाता है। कई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसके पास १२००० प्रशिक्षित लड़ाके का समूह है। यह छापामार विद्रोही ग्रुप है और तालिबान का प्रमुख सहयोगी है। नेटवर्क की शुरुआत १९८० में अफगान वॉर में सोवियत संघ के खिलाफ लड़ने से हुई थी। सोवियत संघ के खिलाफ लड़ते हुए इस आतंकी समूह को अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए का समर्थन प्राप्त था। लेकिन बाद में यह वेस्ट कंट्रीज के सबसे बड़े विरोधी के रूप में उभरा। उसने अफगानिस्तान में सरकारी, भारतीय और पश्चिमी देशोंके ठिकानोंपर कई बड़े हमले किए। हक्कानी नेटवर्क पर पूर्वी अफगानिस्तान और राजधानी काबुल में कई बम धमाके करने का आरोप है। पाकिस्तान सरकार हक्कानी नेटवर्क को अफगान चरमपंथी गुट बताती है। लेकिन इसकी जड़ें पाकिस्तान तक फैली हैं।
कौन था मौलवी जलालुद्दीन
मौलवी जलालुद्दीन हक्कानी के नाम पर संगठन का नाम हक्कानी नेटवर्क रखा गया है। जलालुद्दीन हक्कानी कबायली जनजाति ‘जदरान’ से आता है। उसका जन्म अफगानिस्तान के पाकतिया प्रांत के गर्दा त्सेरे जिले के श्रानी में हुआ था। कहा जाता है उसकी दो पत्नियां थीं। पहली पत्नी खोस्त की जदरान कबायली है, जबकि दूसरी अरब की है। इस वजह से उसका अरब और पश्तून के आंतकवादियों में अच्छी पैठ है। पश्तून में उसे लोगों का समर्थन मिलता है तो अरब से पैसा।
जंग में मारे गए परिवार के कई मेंबर
सोवियत रूसद्वारा अफगानिस्तान पर कब्जा जमाने के दौर में हक्कानी जिहाद से जुड़ा और ९० के दशक में वह अलकायदा के बेहद करीब आ गया। १९९० में मुल्ला उमर के नेतृत्व वाला तालिबान उभरा तो हक्कानी ने पहले तो उससे दूरी बनाई, लेकिन बाद में उसने उसका दामन थाम लिया। साल २००१ में अमेरिकी हमले के बाद जब मुल्ला उमर की सरकार का पतन हो गया। तब हक्कानी फिर से उत्तरी वजीरिस्तान पहुंचा और उसने फिर से अपने लोगोंको साथ जोड़ा और नाटो के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। नाटो के खिलाफ जंग में हक्कानी ने अपने परिवार के कई सदस्योंकी जान गंवाई। उसने अपने तीन बेटों, एक पत्नी, कम से कम आठ पोतों, एक बहन और बहनोई को ड्रोन हमलों में खोया है।
समर्थकोंके बीच खलीफा नाम से मशहूर
बीते तीन-चार सालोंसे हक्कानी अपने नेटवर्क के आध्यात्मिक नेता की भूमिका में आ गया था। वह लोगोंको जिहाद के लिए संगठन से जुड़ने के लिए प्रेरित करता था, जबकि हक्कानी नेटवर्क की कमान उसके बेटे सिराजुद्दीन हक्कानी ने सम्भाल ली थी। वह अपने लोगोंके बीच खलीफा के नाम से मशहूर था।
परिवार ने संभाला आतंकी नेटवर्क
आतंकवादी गतिविधियोंको अंजाम देने की कमान सिराजुद्दीन के भाई बदरूद्दीन ने सम्भाली हुई है। अमेरिका ने उसे ग्लोबल टेररिस्ट की लिस्ट में रखा है। वहीं, जलालुद्दीन हक्कानी का छोटा भई खलील हक्कानी संगठन के वित्तीय विभाग का मुखिया है।
स्त्रोत : दैनिक भास्कर