फाल्गुन अमावास्या, कलियुग वर्ष ५११५
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मुंबई – बॉम्बे हाईकोर्ट ने अभिनेता संजय दत्त की पैरोल की अवधि बार-बार बढ़ाने पर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से वे दस्तावेज मांगे हैं, जिनके आधार पर ऐसा किया गया। चार सप्ताह का वक्त दिया है। संजय दत्त को आम्र्स एक्ट के तहत पांच साल की जेल हुई है। वे 21 दिसंबर 2013 से पैरोल पर जेल से बाहर हैं। हाईकोर्ट ने मंगलवार को इस पैरोल को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने कहा कि जैसी राहत संजय दत्त को दी गई, वैसी किसी और को नहीं दी जाती। कई बार तो इसकी कार्रवाई में ही महीनों लग जाते हैं।
राज्य में कितने पैरोल लंबित हैं: कोर्ट
कोर्ट ने कहा कि दत्त की पैरोल जिस मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर बढ़ाई गई, उसके मुताबिक दत्त की पत्नी मान्यता को टीबी है। उन्हें भविष्य में सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है। लेकिन ऐसे कई कैदी हैं, जिन्हें कैंसर या अन्य जानलेवा बीमारियां हैं। पर उनकी पैरोल मंजूर नहीं हुई। कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव को पैरोल संबंधी नियमों में बदलाव के लिए कमेटी गठित करने को कहा है। यह भी पूछा है कि राज्य में पैरोल के कितने आवेदन लंबित हैं।
46 महीने काटनी है सजा
संजय को करीब 46 महीने की सजा काटनी है। वे पुणे की येरवडा जेल में बंद थे। लेकिन अब तक तीन बार उनकी पैरोल बढ़ाई जा चुकी है। संजय ने हर बार पत्नी मान्यता की बीमारी का हवाला देते हुए पैरोल की अर्जी दी थी।
इस बीच, महाराष्ट्र के गृह मंत्री आरआर पाटिल ने कहा है कि राज्य सरकार पैरोल के नियमों में बदलाव करने पर विचार कर रही है। संजय दत्त को 1993 के मुंबई के सिलसिलेवार बम धमाकों से जुड़े अवैध हथियार मामले में सजा सुनाई गई है।
यह होगा बदलाव
इस मसले पर पाटिल ने बताया कि राज्य सरकार पैरोल नियमों में बदलाव करना चाहती है। इसकी जानकारी भी केंद्र को दी जाएगी। यदि पैरोल के नियम में बदलाव होता है, तो कोई भी कैदी जितने दिन पैरोल पर बाहर रहेगा, उतने दिन की अतिरिक्त सजा उसे हर हाल में पूरी करनी होगी।
जेल प्रशासन से इस संबंध में बातचीत हो गई है। अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) को रिपोर्ट देने का कहा गया है। अभी राज्य और केंद्र सरकार के पैरोल नियम समान हैं। लेकिन राज्य को नियमों में संशोधन का अधिकार है।
क्या होती है पैरोल ?
पैरोलः पैरोल भी कैदियों से जुड़ा एक टर्म है। इसमें कैदी को जेल से बाहर जाने के लिए एक संतोषजनक/आधार कारण बताना होता है। प्रशासन, कैदी की अर्जी को मानने के लिए बाध्य नहीं होता। प्रशासन कैदी को एक समय विशेष के लिए जेल से रिहा करने से पहले समाज पर इसके असर को भी ध्यान में रखता है। पैरोल एक तरह की अनुमति लेने जैसा है। इसे खारिज भी किया जा सकता है।
पैरोल दो तरह के होते हैं। पहला कस्टडी पैरोल और दूसरा रेग्युलर पैरोल।
कस्टडी पैरोलः जब कैदी के परिवार में किसी की मौत हो गई हो या फिर परिवार में किसी की शादी हो या फिर परिवार में कोई सख्त बीमार हो, उस वक्त उसे कस्टडी पैरोल दिया जाता है। इस दौरान आरोपी को जब जेल से बाहर लाया जाता है तो उसके साथ पुलिसकर्मी होते हैं और इसकी अधिकतम अवधि 6 घंटे के लिए ही होती है।
रेग्युलर पैरोलः रेग्युलर पैरोल दोषी को ही दिया जा सकता है, अंडर ट्रायल को नहीं। अगर दोषी ने एक साल की सजा काट ली हो तो उसे रेग्युलर पैरोल दिया जा सकता है।
क्या होता है फरलो ?
फरलोः फरलो एक डच शब्द है। इसके तहत कैदी को अपनी सामाजिक या व्यक्तिगत जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए कुछ समय के लिए रिहा किया जाता है। इसे कैदी के सुधार से जोड़कर भी देखा जाता है। दरअसल, तकनीकी तौर पर फरलो कैदी का मूलभूत अधिकार माना जाता है।
पैरोल मिलने के कानूनी नियम
1. पूर्ण और असाध्य अंधापन।
2. कोई कैदी जेल में गंभीर रूप से बीमार है और वो जेल के बाहर उसकी सेहत में सुधार होता है।
3. फेफड़े के गंभीर क्षयरोग से पीड़ित रोगी को भी पैरोल प्रदान की जाती है। यह रोग कैदी को उसके द्वारा किए अपराध को आगे कर पाने के लिए अक्षम बना देता है। या इस रोग से पीड़ित वह कैदी उस तरह का अपराध दोबारा नहीं कर सकता, जिसके लिए उसे सजा मिली है।
4. यदि कैदी मानसिक रूप से अस्थिर है और उसे अस्पताल में इलाज की जरूरत है।
साथ ही भारत के अंदर कई असाधारण मामलों में भी कैदी को पैरोल दी जा सकती है।
1. अंतिम संस्कार के लिए।
2. कैदी के परिवार का कोई सदस्य बीमार हो या मर जाए।
3. किसी कैदी को बेटे, बेटी, भाई और बहन की शादी के लिए।
4. घर का निर्माण करने या फिर क्षतिग्रस्त घर की मरम्मत के लिए।
स्त्रोत : दैनिक भास्कर