आतंकवादियोंको दंड देते समय यदि न्यायाधीश को इतने दबाव का सामना करना पडेगा, तो निर्दोष नागरिकोंको न्याय कैसे मिलेगा ?
मुंबई : पिछले सप्ताहभर इस देश के कुछ लोग एवं माध्यम एक देशद्रोही को बचाने हेतु वार्तालाप कर रहे थे। यह अत्यधिक क्रोधजनक घटना थी। अंततः देशद्रोही सिद्ध याकूब को फांसी पर लटकाते समय याकूब के समर्थक देशद्रोहियोंके समक्ष भारतीय न्यायव्यवस्था नहीं झुकी।
याकूब को फांसी हो गई, तो भी जानबूझकर इस विषय में लगाई गई आग त्वरित शांत नहीं होगी। इस से एक बात ध्यान में आती है कि अल्पसंख्यकोंकी चापलूसी की राजनीति करनेवालोंने स्वार्थ के लिए प्रथम ही न्यायव्यवस्था के विरुद्ध अन्याय की भावना उत्पन्न की है। भविष्य में यह निश्चित रूप से घातक सिद्ध होगा।
इस लिए यदि इसे रोकना है, तो समय रहते ही देशद्रोही कृत्य करनेवालोंका समर्थन करनेवाले, याकूब को फांसी न हो इसलिए निरंतर प्रयास करनेवाले, तथा उसका पक्ष लेकर न्यायव्यवस्था पर भी आलोचना करनेवालोंको देशद्रोही घोषित करें।
उन पर समर्थ रामदास स्वामी के (‘देशद्रोही तितुके कुत्ते। मारोनी घालावे परते।।’) इस उपदेश के अनुसार हिन्दू जनजागृति समिति ने एक पत्रकद्वारा सभी देशद्रोहियोंपर कठोर कार्यवाही करने की मांग है।
एक आतंकवादी को सर्वोच्च न्यायालयद्वारा दी गई फांसी को वैधानिक एवं राजनीतिक मार्ग से निरस्त करने का इतना प्रयास होना लोकतंत्र की हंसी उडाना ही है। वास्तव में याकूब को २२ वर्षोंके पश्चात दी गई फांसी ही उन आतंकवादी कृत्योंपर बलि चढनेवालोंपर अन्याय है। पूरे विश्व में एकमात्र देश भारतद्वारा देशद्रोहियोंको इतना सामाजिक, राजनीतिक, घटनात्मक एवं धार्मिक आश्रय दिया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है।
इसी लिए इस पत्रक में आगे कहा गया है कि, यदि आतंकवाद संपूर्ण रूपसे नष्ट करना है, तो उसके समर्थकोंपर धाक जमानी चाहिए। इस के लिए सर्वोच्च न्यायालय एवं केंद्र शासन को दायित्व लेना चाहिए।
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स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात