सिंहस्थ विधीद्वारा पुण्यसंचय प्राप्त होने के कारण ही रावण का पराजय संभव ! – वेदमूर्ती यजुषशास्त्री दीक्षित गुरुजी
त्र्यंबकेश्वर (नासिक) : त्र्यंबकेश्वर नाम का उच्चार करने से हमारी आंखों के सामने आता है, वह नारायण नागबली एवं त्रिपिंडी श्राद्ध ! अपितु इसी त्र्यंबकेश्वर की एक अत्यंत प्राचीन एवं विशेषतापूर्ण घटना के संदर्भ में हिन्दू समाज अनभिज्ञ है।
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रावण ने सीतामाता का अपहरण करने के पश्चात रावण पर विजय प्राप्त करने हेतु प्रभु रामचंद्र ने इसी त्र्यंबकेश्वर के कुशावर्त तीर्थ पर सिंहस्थ विधी कर पुण्यसंचय प्राप्त किया था। इस पुण्यसंचय के कारण ही प्रभु श्रीरामचंद्र को रावण का पराजय करना संभव हुआ है। स्कंद पुराण में इस घटना का उल्लेख है। वर्तमान में नासिक एवं त्र्यंबकेश्वर में आरंभ सिंहस्थ पर्व के निमित्त कुशावर्त तीर्थ पर किए जानेवाले सिंहस्थ विधी की जानकारी त्र्यंबकेश्वर के वेदमूर्ति यजुषशास्त्री दीक्षित गुरुजी ने दैनिक सनातन प्रभात के प्रतिनिधी को दी।
‘सिंहस्थ विधी’ की महानता एवं जानकारी इस प्रकार है…
रावण ने सीतामाता का अपहरण करने के पश्चात उसे ढूंढते ढूंढते प्रभु श्रीरामचंद्र पंचवटी में आए। उस समय कश्यप तथा वसिष्ठ ऋषि ने प्रभु श्रीरामचंद्र को सिंहस्थ नामक विधी के संदर्भ में बताया। साथ ही बलशाली रावण के विरोध में युद्ध करने के लिए तथा उसे पराजित करने के लिए यह विधी करने के लिए बताया। साथ ही यह भी ऋषि ने श्रीराम को बताया कि, यह विधी करने से ही महातपस्वी एवं भगवान शिव का परमभक्त रावण को पराजित करना संभव है। गुरु वसिष्ठ की आज्ञा के कारण प्रभु रामचंद्र ने त्र्यंबकेश्वर के कुशावर्त तीर्थ पर सिंहस्थ विधी किया। इस विधी का फलद्रुप अर्थात श्रीरामचंद्र को उनके पिताजी दशरथ का दर्शन हुआ तथा इस विधीद्वारा पुण्यसंचय प्राप्त कर उन्होंने रावण के साथ युद्ध कर उसे पराजित किया।
उस समय से सिंहस्थ विधी अधिक प्रचलित हुआ। यह विधी पुण्यसंचय करने के लिए तथा अपने वंशजोंके ऋण से मुक्त होने के लिए किया जाता है। इस विधी के अंतर्गत कुशावर्त तीर्थ पर गंगापूजन, तीर्थश्राद्ध तथा कुंभदान ये तीन विधी करने का अनन्य साधारण महत्त्व है।
सिंहस्थपर्व में प्रत्येक हिन्दू को यह विधी करना चाहिए ! – वेदमूर्ति यजुषशास्त्री दीक्षित गुरुजी
अनन्य साधारण महत्त्ववाले इस सिंहस्थ विधी की जानकारी अधिकांश हिन्दुओंतक पहुंचाने के लिए वेदमुर्ति यजुषशास्त्री दीक्षित गुरुजी प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि, ‘सिंहस्थ पर्व में प्रत्येक हिन्दू को यह विधी करना चाहिए।’ साथ उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि, ‘यह विधी सिंहस्थ पर्व की कालावधी में कभी भी कर सकते हैं।’
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात