फाल्गुन शुक्ल पक्ष चतुर्थी, कलियुग वर्ष ५११५
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नई दिल्ली: यूपीए-२ सरकार ने रविवार को कैबिनेट की विशेष बैठक बुलाई थी। एजेंडा राहुल गांधी के दबाव में भ्रष्टाचार-विरोधी बिलों को अध्यादेश के तौर पर मंजूरी देने का था। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। विपक्षी पार्टियों के विरोधी रुख को देखते हुए कैबिनेट ने सिर्फ जाट समुदाय को पिछड़ा वर्ग की केंद्रीय सूची में शामिल किया। इससे उन्हें केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिल सकेगा।
इसके अलावा कैबिनेट ने दिल्ली में १२३ वक्फ संपत्तियों को डी-नोटिफाई करने को भी मंजूरी दे दी। इन संपत्तियों का कब्जा अब दिल्ली वक्फ बोर्ड को मिल सकेगा। फिलहाल इन पर डीडीए और एलएनडीए का कब्जा है। कैबिनेट ने एससी/एसटी (प्रिवेंशन ऑफ एट्रोसिटीज) अमेंडमेंट एक्ट और संसद में पारित तेलंगाना बिल में बदलावों को मंजूरी दी। साथ ही योजना आयोग को निर्देश दिए कि १३ जिलों वाले आंध्रप्रदेश को पांच साल के लिए विशेष दर्जा दिया जाए। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि जाटों को अब बिहार, गुजरात, मध्यप्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल, उत्तरप्रदेश और राजस्थान में लाभ मिलेगा। इन राज्यों में करीब नौ करोड़ जाट हैं। माना जा रहा है कि इस फैसले का कांग्रेस को चुनावों में फायदा मिलेगा। खासकर हरियाणा में।
करात के 'पत्र' के बाद अटके अध्यादेश
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का दबाव था। भ्रष्टाचार-विरोधी बिलों को अध्यादेश के जरिए लागू करना था। केंद्रीय कैबिनेट ने इसके लिए रविवार शाम को विशेष बैठक भी बुलाई थी। लेकिन फिर तय हुआ कि इन बिलों को अध्यादेश के रास्ते मंजूर नहीं किया जाएगा। बताया जा रहा है कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी इन अध्यादेश को मंजूरी देने के पक्ष में नहीं थे। विपक्षी पार्टियां विरोध में थी। माकपा नेता प्रकाश करात ने भी मुखर्जी को इस संबंध में पत्र लिखकर विरोध किया है। केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे और कपिल सिब्बल ने दो दिन में दो बार राष्ट्रपति से मुलाकात की। सिर्फ यह जानने के लिए इस मुद्दे पर उनकी राय क्या है। लेकिन जब पॉजिटिव सिग्नल नहीं मिला, तो तय किया कि अध्यादेशों पर फैसला टाल दिया जाए।
स्त्रोत : दैनिक भास्कर