आतंक की दुनिया में आईएस ज्यादा पुराना नाम नहीं है। लेकिन इससे जुड़ने वालों की फेहरिस्त लगातार लंबी होती जा रही है। कभी इंजीनियर, कभी डॉक्टर, कभी बिजनेस प्रोफेशनल्स, तो कभी पत्रकार। ८१ देशों के १२,००० से ज्यादा युवा अब तक सीरिया और इराक जा चुके हैं। इनमें सबसे ज्यादा अरब देशों के हैं और इनमें भी २० फीसदी पश्चिमी देशों के। पिछले महीने ही फ्रांस से १७३३ युवाओं ने सीमा लांघी है।
लेकिन इस सवाल का सटीक जवाब अब तक सामने नहीं आ पाया कि आखिर आईएस युवा पीढ़ी को लुभा कैसे रहा है । हाल ही में अमेरिका की एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी ने भी एक स्टडी की है। लेकिन ठीक-ठीक कारण नहीं मिला, आंकड़े जरूर मिले। ऐसे ही आंकड़ों से निकलते ये पांच कारण:
1. अरब मुल्कों में बेरोजगारी: रिसर्च फर्म वाइडर की रिपोर्ट के मुताबिक २०२० तक अरब मुल्कों में साढ़े दस करोड़ नौकरियों की जरूरत होगी। अभी बेरोजगारी दर ४२ प्रतिशत है। और हर साल बेरोजगारी दर १ प्रतिशत भी बढ़ी तो डीजीपी को ढाई पर्सेंट नुकसान होगा।
2. आउटडेटेड शिक्षा ढांचा: दो साल पहले इंटरनेशनल फाइनेंस कॉर्पोरेशन ने सर्वे किया था। १५०० युवाओं और इतनी ही कंपनियों के बीच। यह कहता है कि अरब स्कूलों का सिलेबस बाजार की जरूरतें पूरी नहीं करता। यानी न मौके हैं, न स्किल और न ही नॉलेज।
3. ब्रांड आईएस: आईएस एक ब्रांड बनने की फिराक में भी है। मंसूबा है- ग्लोबल इस्लामिक काउंसिल का परचम लहराना। इसने इंडोनेशियाई ऑनलाइन स्टोर से २५० रुपए में अपनी टी-शर्ट बेचनी शुरू की और पिछले साल हमारे तमिलनाडु तक पहुंच गया।
4. मुस्लिम अधिकार: पश्चिमी देशों के युवाओं को खींचने का सबसे कारगर हथकंडा। आईएस ने अमेरिका को दोगला साबित कर दिया। इराक, लीबिया और सीरिया में अमेरिकी हमलों को मुस्लिम अधिकारों का मुद्दा बनाकर पश्चिम के युवाओं को खींच लाया।
5. स्ट्रैटजी: आईएस ने पिछले साल ८ जून से ३१ दिसंबर तक अपने खिलाफ लड़ रही सीरिया और अमेरिकी सेना पर २२०० हमले किए। दुनियाभर में दहशत और आतंक की दुकानें फैलाई। समय-समय पर बाकायदा वैकेंसी निकालकर अच्छे पैकेज पर भर्ती की।
स्त्रोत : आज तक