फाल्गुन शुक्ल पक्ष षष्ठी, कलियुग वर्ष ५११५
शासनकर्ताओंको संतोंके मार्गदर्शनानुसार प्रशासन चलाना आवश्यक क्यों है, इसका उदाहरण !
राजिम कुंभमेलेके समापन समारोहमें जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वतीजीने शासनकर्ताओंको फटकारा !
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रायपुर (छत्तीसगढ) – छत्तीसगढ राज्यमें निर्धनोंको एक रुपया किलो मूल्यसे चावल देनेका आश्वासन भाजपाने निभाया; किंतु उसका परिणाम उलटा ही हआ । इस योजनाके कारण श्रमशक्ति महंगी हुई, विकास ठप्प हुआ तथा लोग मद्यपी बन गए, पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर श्रीमद्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वतीजीने यहां ऐसी आलोचना की । वर्तमानमें वे छत्तीसगढ राज्यके भ्रमणपर हैं । सांसद सदस्य धनेंद्र साहूके गांव अभनपुर में शंकराचार्य बोल रहे थे ।
शंकराचार्यने आगे कहा,
१. रामजन्मभूमि, देशकी रक्षा, आर्थिक न्यूनता दूर करनेके अश्वासन, पानीका प्रश्न जैसे सूत्रोंके आधारपर मंत्री चुनकर आते हैं, तत्पश्चात वे लोग यह सब भूल जाते हैं ।
२. राजनैतिक पक्षोंको किसी विषयकी राजनीति करनेसे पूर्व वह विषय सभी अंगोंसे ठीकसे समझ लेना चाहिए । विशेष कर कांग्रेस तथा भाजपा जैसे पक्षोंको इस ओर विशेष ध्यान देना चाहिए ।
३. सुरक्षा तथा आर्थिक शक्तिके बलपर भारत संपूर्ण विश्वपर प्रभाव डाल सकता है; किंतु भारतीय शासनकर्ताओंमें भारतकी सभी अच्छी शक्तियोंको संगठित कर विश्वमें भारतकी प्रतिमा ऊंची उठाने हेतु आवश्यक नेतृत्वक्षमता नहीं है ।
चार ही कुंभ मेलोंके होते, प्रशासनने राजिम नामका पांचवा कुंभ कैसे बनाया ? सत्ता है, इस कारण आप ५ वां कुंभ तथा २५ वें शंकराचार्य भी उत्पन्न कर सकते हैं !
वेद-पुराणोंमें केवल चार कुंभ निर्देशित होते हुए प्रशासनने राजिमका यह पांचवा कुंभ कैसे बनाया ? सत्ता है, इस कारण आप ५ वां कुंभ तथा २५ वें शंकराचार्य भी उत्पन्न कर सकते हैं ! राजिम महोत्सव हो सकता है; किंतु कुंभ नहीं । आपके निमंत्रणानुसार मैं कल्प कुंभ समझकर यहां आया हूं । यदि आपकेद्वारा इसे ‘राजिम कुंभ’ नाम देनेकी बात मेरी समझमें आती(पहले पता चलती), तो मैं यहां कदापि नहीं आता, जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वतीजीने उपस्थित राज्यपाल, मंत्री तथा लोकप्रतिनिधियोंके सामने इन शब्दोंमें प्रशासनको फटकारा । २८ फरवरीको राजिम कुंभके समापन समारोहमें जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वतीजी मार्गदर्शन कर रहे थे ।
शंकराचार्यद्वारा प्रस्तुत अन्य सूत्र
१. कुंभ पुराण-वेदोंकेअनुसार देशमें केवल चार कुंभ हैं, हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन एवं नासिक ; जहां स्नानका महत्त्व है ।
२. पंडित चंद्रशेखर दत्त त्रिपाठीके कथनानुसार कल्प कुंभ कुछ विशेष धार्मिक महत्त्व रखनेवाले स्थानपर तथा कुछ कालांतरसे आयोजित कुंभको कहा जाता है । यह कुंभ जैसा ही होता है; किंतु पुराणोंकेअनुसार इसे कुंभका स्थान नहीं दे सकते । वास्तवमें इसे ‘काल्पनिक कुंभ’, कहा जा सकता है ।
३. अनेक स्थानोंपर संगम है; क्या वहां भी कुंभ आयोजित करेंगे ?
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात