वनविभागद्वारा ठाणेके शिवमंदिरका मंडप उद्धवस्त किया जानेके कारण अन्नत्याग करनेवाले पू. रघुनंदन

फाल्गुन शुक्ल पक्ष सप्तमी, कलियुग वर्ष ५११५

हिंदु संतोंकी जानपर उठे सेक्यूलर (धर्मनिरपेक्ष) राजनेता, पुलिस एवं प्रशासनके विरुद्ध हिंदुओेंद्वारा यदि कानून हाथमें लिया गया, तो आश्चर्य नहीं प्रतीत होना चाहिए ।


ठाणे (महाराष्ट्र), ५ मार्च (वार्ता.) – यहांके वागले इस्टेट क्षेत्रके पहाडीपर स्थित गंगेश्वर शिवमंदिर एवं परिसरकी देखभाल ‘जुना आखाडा’के पू. रघुनंदनगिरी महाराज उपाख्य फक्कडबाबा करते थे । महाशिवरात्रिके निमित्त इस मंदिरके पास खडा किया मंडप एवं एक कक्ष वनविभाग द्वारा उद्धव्स्त किया गया । इसके प्रति निषेध दर्शाने हेतु अन्नत्याग करनेवाले पू. रघुनंदनगिरी महाराजने २ मार्चको सवेरे ७.०० बजे देहत्याग किया । इसलिए हिंदुओंमें दुःख व्यक्त किया जा रहा है । ( पू. रघुनंदनगिरी महाराज हिंदु होनेके कारण ही वनविभागद्वारा उनका मंडप उद्धव्स्त किया गया । क्या इसप्रकारसे किसी मुल्ला-मौलवी अथवा पादरिको राजनेताओंने उसकी मांगके लिए मरने दिया होता ? धर्मांध मुसलमानोंको मांगनेसे पूर्व ही सुविधा देनेवाले राजनेता हिंदु संतोंपर अन्याय कर उन्हें मरने देते हैं । इस स्थितिमें परिवर्तन करने हेतु ‘हिंदु राष्ट्र’ स्थापित करना अनिवार्य है । – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
१. छत्रपति शिवाजी महाराजद्वारा इस शिवलिंगकी पूजा की गई है एवं इसकी देखभाल वर्ष १९६५ से उत्तरप्रदेशसे आए पू. नंदनगिरी महाराज करते थे ।
२. इससे पूर्व मई २०१३ में वनविभागद्वारा ५०० लोगोंकी टुकडीको आमंत्रित कर पू. रघुनंदनगिरी महाराजद्वारा निर्माण की गई कुटिया, गोशाला तथा चारा रखनेका कक्ष आदि तोडा गया था । (ऐसा यदि अहिंदुओंके संतोंके विषयमें हुआ होता, तो अबतक संपूर्ण विश्वमें उसकी प्रतिक्रिया उभरी होती; परंतु हिंदुओंका क्षात्रतेज लुप्त होनेके कारण ऐसी बातोंसे हिंदु अनभिज्ञ रहते हैं । – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
३. यहां प्रतिवर्ष महाशिवरात्रिका उत्सव मनाया जाता है । २०-२५ सहस्र श्रद्धालु यहां दर्शनके लिए आते हैं ।
४. इस वर्ष महाशिवरात्रिके निमित्त इस मंदिरके पास मंडप खडा किया गया था; परंतु वनविभागद्वारा अनधिकृत बताते हुए इस मंडपको उद्धवस्त किया गया । (वनमें चलनेवाली अनधिकृत तस्करी तथा जंगलतोडके समय निद्रिस्त वनविभाग हिंदुओंके मंडपपर मात्र त्वरित कार्यवाही करता है, यह ध्यानमें लें । – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात  )
५. इस आक्रमणका निषेध करने हेतु पू.रघुनंदन महाराजने अन्नत्याग किया था; परंतु इसपर वनविभाग अथवा किसी भी राजनेताने ध्यान नहीं दिया । फलस्वरूप उन्हें देहत्याग करना पडा । (आज गंगा नदीके शुदि्धकरण तथा गोहत्याबंदी तथा अब हिंदुओंके नैमित्तिक महोत्सवके लिए हिंदु संतोंको देहत्याग करना पडता है; परंतु निर्लज्ज राजनेता उनपर ध्यान नहीं देते । हिंदु बहुसंख्यक देशमें यह बात हिंदुओंके लिए लज्जाजनक है । क्या यह जानकर धर्मके लिए हिंदु सक्रिय होंगे ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)

 

पू. रघुनंदनगिरी महाराजका संक्षेपमें परिचय

 

कुछ अवधितक सेनामें सेवा कर एक युद्धमें पराक्रम दिखानेके पश्चात अध्यात्मकी ओर मुडे          पू. रघुनंदनगिरी महाराज मूलतः उत्तरप्रदेशके हैं । उन्होंने इस गंगेश्वर मंदिरके समीप कालिकामंदिर तथा गोशाला आदिका निर्माण कार्य किया था । इस मंदिर परिसरमें राज्यसरकारने उन्हें कोई सुविधाएं नहीं दी थीं । किसी श्रद्धालुद्वारा दिया गया सौर दिया प्रयुक्त कर उन्होंने अत्यधिक वैराग्यपूर्ण जीवन व्यतीत किया । उन्होंने ४५ गायोंका पालन कर निरंतर गोपालन किया ।

 

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

 

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