फाल्गुन शुक्ल पक्ष दशमी, कलियुग वर्ष ५११५
पू. रघुनंदनगिरी महाराजके देहत्यागके संदर्भमें वृत्त
क्या वनविभागने इस प्रकार मस्जिदपर कार्रवाई करनेका वक्तव्य दिया होता ? एवं ऐसा किया होता, तो उसके क्या परिणाम भुगतने पडते, इसका वनविभागको पता है ?
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दाइं ओरसे श्री. मनोज गोर्हाडको निवेदन प्रस्तुत करते हुए सर्वश्री
चंद्रसेन समेळ, चंद्रकांत मोरे, प्रकाश बाराई तथा विश्वास साळवी
ठाणे (महाराष्ट्र) : ६ मार्चको हिंदू जनजागृति समिति तथा पू. रघुनंदनगिरी महाराजके भक्तोंद्वारा निवासी जनपदाधिकारी मनोज गोर्हाड एवं शिवसेना विधायक श्री. एकनाथ शिंदेको निवेदन प्रस्तुत किया गया । उसमें यह मांग की गई कि श्री गंगेश्वर महादेव शिवमंदिर गिरानेके संदर्भमें वनविभागद्वारा आततायीपन तथा अवैधानिक ऐसी किसी भी प्रकारकी कार्रवाई न हो । मंदिरकी देखभाल करनेवाले पू. रघुनंदनगिरी महाराजके देहत्यागके लिए उत्तरदायी वनविभागके अधिकारियोंपर कार्रवाई होनी चाहिए ।
उस समय समितिके श्री. अभिजीत भोजणे एवं महाराजके भक्त सर्वश्री चंद्रसेन समेळ, प्रकाश बाराई, चंद्रकांत मोरे, विश्वास साळवी उपस्थित थे ।
इस निवेदनमें प्रस्तुत किया गया है कि महाराजके देहत्यागका निमित्त होकर भी वनविभाग इस मंदिरका नया निर्माणकार्य गिरानेकी भाषा बोल रहा है । येऊरके वनमें आज भी कुछ राजनेताओंके अवैध बंगले, साथ ही अन्य धर्मियोंके प्रार्थनास्थल हैं । उसपर किसी भी प्रकारकी कार्रवाई न कर तथा आचारसंहिता होते हुए भी वनविभागद्वारा केवल मंदिरपर कार्रवाई करनेकी भूमिकाके कारण अनेक प्रश्न उत्पन्न हुए हैं । अतः धाराओंकी ओर अनदेखा कर किसी भी प्रकारकी पूर्वसूचनाके बिना मंदिरपर कार्रवाई करनेका पाप न करें ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात