बांग्लादेश – भारतमें प्रवेश किया हुआ एक ज्वालामुखी !

फाल्गुन शुक्ल पक्ष नवमी, कलियुग वर्ष ५११५

समाचारोंकी भीडमें कुछ महत्त्वपूर्ण विषय पीछे रहते हैं । उनपर प्रकाश डालनेवाला यह सदर…


    दृढ नीतिका अभाव तथा बिना आधारवाले अर्थात पुरुषार्थहीन राजनेताओंके कारण भारतकी सहायतासे ही जन्मा हुआ बांग्लादेश आज पूरे बलके साथ भारतका शत्रु बनकर भारतभूमिमें अपना विस्तार करनेकी सिद्धता कर रहा है । यदि इस ज्वालामुखीसम समस्यापर त्वरित उपाययोजना की गई, तभी भविष्यमें यह उग्र रूप धारण करे इससे पूर्व ही उसपर पाबंदी डालना संभव हो पाएगा ।   

 

१.  राजनेताओंके शत्रुराष्ट्रके संदर्भमें पीछे हटनेवाली भूमिकाके कारण ही शत्रुराष्ट्रके सामने नाकर्ता राष्ट्रके रूपमें भारतकी प्रतिमा !

युद्ध टालनेका सबसे परिणामकारी उपाय है, युद्धकी सिद्धता करना । भारतकी नाकर्ता नीतिके कारण सर्व शत्रुराष्ट्रोंको पता चल गया है कि चेतावनी देनेके पश्चात भी दिल्लीका शासन स्वसंरक्षण हेतु कुछ भी कार्य नहीं करता । शिमलामें युद्धभूमिपर प्राप्त लाभ उठानेमें भारत असमर्थ रहा । भारतीय सेनाने बांग्लादेशको स्वतंत्रता प्राप्त करवाने हेतु जान हथेलीपर रखी । ऐसा होते हुए भी आज परिस्थिति यह है कि बांग्लादेशके नागरिक रावलपिंडीके अनेक बडे कठोर स्वामियोंके दास बनकर भारतको यातना दे रहे हैं । दुर्भाग्यसे स्टॉकहोम सिंड्रोम (पीडित होते हुए भी कष्ट देनेवालोंपर ही प्रेम करना) के नुसार यह सारी स्थिति है ! 

२. केवल भारतको पराजित करने हेतु बांग्लादेशको षडयंत्रकारी चीनद्वारा आण्विक शस्त्र, तो पाकद्वारा जिहादी कार्रवाईयोंके लिए उनकी भूमिका उपलब्ध कराना !

वर्ष २००५ में ढाका (बांग्लादेश)का शासन आइ.एस.आइ.का दलाल था । बांग्लादेशके तत्कालीन प्रधानमंत्री खालिदा बेगमने पाककी शरण जाकर बांग्लादेशकी सार्वभौमिकता तथा अभिमान बेचा एवं भारतको जिहादी कार्रवाई करनेके लिए अपने देशका उपयोग करनेकी अनुमति दी । दूसरी ओर चीनने पाकके अनुसार बांग्लादेशको आण्विक शस्त्र एवं क्षेपणास्त्र देनेकी सिद्धता प्रदर्शित की । ये सभी शस्त्र भारतको पराजित करने हेतु चीनके प्रधानमंत्री वेन जिआबोने बांग्लादेशके साथ पीसफूल `न्यूक्लियर को-ऑपरेशन ऐग्रीमेंट’ प्रस्तावके अनुसार प्रदान किए हैं । 

३. हिंदुविरोधी कार्रवाई एवं हिंदुओंके मंदिर गिरानेके संदर्भमें चुप रहनेवाले भारतके मानवाधिकार संगठन तथा अमेरिकाके विचारवान ! 

शिया एवं सुन्नी स्त्रियां तथा हिंदु स्त्रियोंमें बांग्लादेश मतभिन्नता नहीं करता । भारतकी कुछ घटनाओंके संदर्भमें हमला करनेवाले मानवाधिकार संगठन तथा अमेरिकाके विचारवान बांग्लादेश, पाक एवं कश्मीरमें मंदिर गिराए जाते हैं, उस समय इन विषयोंपर कुछ भी वक्तव्य नहीं देते । कश्मीरमें हिंदुओंके कुछ मंदिर गिराए गए, उस समय भी शासनको कुछ भी प्रतीत नहीं हुआ । कदाचित भारत शासनके साथ मैत्री होना यह बात कश्मीर स्टडी ग्रुपके फारूक कथवारीकी दृष्टिसे साधारण होनेके कारण उन्होंने शासनको इसपर विचार न करनेके लिए बाध्य किया होगा ! 

४. बांग्लादेशपुरस्कृत आतंकवादियोंद्वारा भारतीय सेनाकी हत्या कर तथा उनके शरीरके साथ अनादरयुक्त व्यवहार करनेके पश्चात भी, साथ ही ढाकाके आतंकवादियोंका केंद्र होनेपर भी शांतिसे केवल प्रेक्षककी भूमिकामें रहनेवाला कांग्रेस शासन अर्थात भारतके लिए प्राप्त शाप ही !

बांग्लादेशकी सेना तथा अन्य लश्कर दलोंपर अपना अधिकार प्रदर्शित करनेवाले आंतकवादियोंने कुछ दिन पूर्व भारतकी सीमा सुरक्षादलके सेनाकी हत्या कर उनके शरीरके साथ अनादरयुक्त व्यवहार किया । उस समय भी कांग्रेस शासन चुपचाप रहा । रावलपिंडी एवं काठमांडूके साथ ही ढाका भी भारतके विरोधमें जिहाद पुकारनेवाले आतंकवादका प्रमुख केंद्र है, इस बातका पता होते हुए भी भारतने कोई कृत्य नहीं किया । बांग्लादेशके इस प्रकारके आतंकवादी कृत्यको अन्य कोई भी देश स्वीकार नहीं करता । शेख मुजीबुर रहमानके तत्त्वानुसार जबतक बांग्लादेश निधर्मी राष्ट्र बनकर वहां शिया एवं हिंदुओंको सुन्नीके अनुसार समान व्यवहार नहीं करता, साथ ही वहां बींको प्रोत्साहन प्राप्त हो रहा है, तबतक भारतकी सुरक्षा धोखेमें है । 

  ५. ज्योति बसु एवं कांग्रेसद्वारा बांग्लादेशके घुसपैठियोंकी ओर अक्षम्य अनदेखा कर देशकी अपरिमित हानि एवं भारतकी भूमि बांग्लादेशके अधिकारमें जानेसे बचानेके लिए बांग्लादेशके साथ युद्धकी सिद्धता, भारतको पाकसे बचानेका यही एक मार्ग !

लक्षावधि बांग्लादेशी नागरिक खुले आम भारतीय सीमा पार कर भारतमें निवास करने हेतु आए हैं । भारतकी सीमारेखाके निकटवाले जनपदोंमें उनकी संख्या अधिक है । पश्चिम बंगालके भूतपूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु तथा कांग्रेसके नेताओंने इस समस्याकी ओर गंभीरतासे देखनेकी अपेक्षा अक्षम्य अनदेखा कर भारतकी अपरिमित हानि की है । पाकके अधिकारमें रहनेवाली बांग्लादेशकी सेना भारतके आसाम तथा निकटके राज्य अधिकारमें लेकर बांग्लादेशका विस्तार करनेकी भाषा बोल रही है । बांग्लादेशपर अधिकार प्रदर्शित करनेवाले पाकसे यदि भारतको बचाना है, तो भारतको बांग्लादेशके साथ भी युद्धकी सिद्धता रखनी चाहिए । 

६. प्रगति करनेवाले आस्थापनोंके विरोधमें षडयंत्र रचनेवाले आइ.एस.आइ. पुरस्कृत बांग्लादेशी नागरिकोंको भारतीय राजनेताओंद्वारा सहयोग प्राप्ति तथा यह कर्करोग नष्ट करनेके लिए अब युद्ध ही एकमात्र उपाय !

भारत विभिन्न अंतरराष्ट्रीय उत्पादकोंका प्रमुख केंद्र न हो, इसलिए आइ.एस.आइ. बांग्लादेशी नागरिकोंका उपयोग कर रही है । व्यवसायमें प्रगति करनेवाले गुडगांव, चेन्नई, पुणे, भाग्यनगर (हैदराबाद)के समान स्थानोंपर आस्थापनोंके विरोधमें अचानक लहरें उत्पन्न कर नया विनियोग (investment) करनेवालोंको डरानेका प्रयास किया जा रहा है । यह कार्रवाई करनेवाले कामगार आइ.एस.आइ.के सहयोगसे कार्य करनेवाले बांग्लादेशी नागरिक हैं । इस बातको प्रतिबंधित करनेकी अपेक्षा भारतीय राजनेता मत एवं मनुष्यबलका लाभ उठाने हेतु बांग्लादेशियोंको प्रोत्साहन दे रहे हैं । यह कर्करोग नष्ट करने हेतु भारतकी ओरसे युद्ध ही एकमात्र उपाय है । भारत तथा बांग्लादेशके संघर्षमें पाक तथा चीनका सहयोग नहीं होगा; क्योंकि इन देशोंको इस बातका पता है कि युद्धकी सिद्धता कर भारतके साथ शत्रुता करना महंगा पडेगा । 

७. बांग्लादेशपर नियंत्रण रखने हेतु युद्ध, इस अंतिम पर्यायका उपयोग करनेसे पूर्व आगेकी उपाययोजना करें !

७ अ. बांग्लादेशकी जिहादी कार्रवाई तथा हिंदुओंपर होनेवाले अत्याचारको निरंतर अंतरराष्ट्रीय स्तरपर प्रस्तुत करना : बांग्लादेश जिहादियोंका केंद्र हो गया है । वहां हिंदुओंपर अधिक मात्रामें अत्याचार हो रहे हैं । इस संदर्भकी जानकारी निरंतर प्रकाशित करें । आइ.एस.आइ.के अधिकारमें रहनेवाले बांग्लादेशद्वारा भारतके विरोधमें किए गए अवैध एवं आपत्तिजनक वक्तव्यको अंतरराष्ट्रीय स्तरपर गंभीर प्रश्नके रूपमें प्रस्तुत करें । 

७ आ. आतंकवादियोंकी सहायता करनेवाले बांग्लादेशी वहाबियोंको सहायता करनेवाले भारतीय व्यापारका अज्ञान दूर करना तथा बांग्लादेशपर आर्थिक निर्बंध डालना : भारतके कपडेके अधिकांश बडे व्यवसायी ढाकाके वहाबियोंकी सहायता कर रहे हैं । इस व्यवसायद्वारा प्राप्त लाभ आतंकवादियोंको प्रोत्साहित करने हेतु उपयोग किया जा सकता है, बांग्लादेशमें विनियोग करनेवाले भारतीय व्यवसायियोंको इस बातका भान कर देना चाहिए । भारतकी सुरक्षाके लिए धोखा सिद्ध हुए वहाबियोंको स्वयं अथवा अज्ञानसे सहायता करनेवालोेंका अज्ञान दूर करें एवं बांगलादेशपर आर्थिक निर्बंध डालें । 

७ इ. मुक्त वातावरणमें चुनावका आयोजन करने हेतु अन्य राष्ट्रोंके सहयोगसे बांग्लादेशपर दबाव डालें : बांग्लादेशमें निधर्मीवादका प्रसार करनेवाले तथा शेख मुजीबुर रहमानके लोकशाही तत्त्वको दबानेका प्रयास हो रहा है, इसे अंतरराष्ट्रीय स्तरपर निदर्शनमें लाना चाहिए । वहां वहाबियोंके दबावके नीचे न आकर मुक्त वातावरणमें चुनाव हो, इसलिए भारतको अन्य राष्ट्रोंकी सहायतासे प्रयास करने चाहिए । भारत, अमेरिका तथा अन्य राष्ट्रोंको इनमेंसे निरीक्षक भेजकर लोकशाहीके विरोधमें होनेवाले वहाबियोंके प्रयास विफल करने चाहिए । 

७ ई. पाक तथा चीनकी इस दोहरी भूमिकाके लिए उन्हें कडी भाषामें फटकार लगाएं : ढाकाके वहाबियोंको सहायता करनेवाले एवं अण्वस्त्र तथा क्षेपणास्त्रोंकी पूर्ति करनेवाले पाक एवं चीनके समान देशोंको भारतको यह कडे शब्दमें बताना चाहिए कि यह सब मैत्रीके विरुद्ध है । 

७ उ. युद्धकी सिद्धता कर बांग्लादेशपर निरंतर दबाव डालें तथा घुसपैठपर कडा निर्बंध डालें ! : नौसेना, हवाई सेना, भूसेना आदिकी सीमारेखापर युद्धकी सिद्धता कर बांग्लादेशपर दबाव डालना चाहिए । सीमापर होनेवाली घुसपैठ रोकने हेतु सीमारेखापर संरक्षक दीवारका निर्माणकार्य कर जिहादियोंकी घुसपैठपर निर्बंध डालने चाहिए । 

७ ऊ. घुसपैठी बांग्लादेशियोंको पुन: उनके देशमें भेजना चाहिए ! : भारतमें घुसपैठ किए वहाबी मुसलमानोंको ढूंढकर बांग्लादेशमें पुनः भेजना चाहिए । यदि बांग्लादेश शासनने उनको स्वीकार करनेसे अस्वीकार किया, तो भारतके नागरिकोंको कठोरतासे यह बताना चाहिए कि वे सीमारेखाके क्षेत्रमें रहकर बांग्लादेशी जिहादियोंको सहायता न करें । 

बांगलादेशके आइ.एस.आइ.की यह कार्यवाही सदाके लिए रोकने हेतु भारतको कुछ वर्ष उपर्युक्त नीति अपनाना अत्यावश्यक है । 

– प्रा. श्री. एम.डी. नालापत,

टाइम्स ऑफ इंडिया तथा मातृभूमि नियतकालिकके भूतपूर्व संपादक

(संदर्भ : मासिक ऑर्गेनाइजर) 
  
हिंदु राष्ट्रमें राजनेताए दृढ, राष्ट्र एवं धर्मप्रेमी होंगे । वे धर्माधिष्ठित राज्यकारभार करेंगे । उनमें राष्ट्रकी सुरक्षाका विषय प्रधान होगा । इस राज्यव्यवस्थामें घुसपैठको किसी भी प्रकारका सहारा नहीं दिया जाएगा । महारूप धारण करनेसे पूर्व ही इन समस्याओंको मूलसे उखाडकर फेंक दिया जाएगा । इसके लिए हिंदु राष्ट्रकी स्थापना अनिवार्य है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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