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कहां प्रकृतिके प्रत्येक घटकमें ईश्वरका तत्त्व देखनेवाला महान हिंदु धर्म तथा कहां प्रकृति पूजा

फाल्गुन शुक्ल पक्ष दशमी, कलियुग वर्ष ५११५


गिरिजाघरने अनेक शतकोंतक प्रकृतिसे निकटता रखनेवालोंको कृतज्ञता भावसे वंचित रखा था ।

पूजापाठ जैसे सभी कर्मकांड प्रकृतिसे दूर बंद कक्षमें होते थे । ईसाई लोग खुले स्थान अथवा खुलेमें स्थापित मंदिर नष्ट कर उस स्थानपर छतवाला गिरिजाघर स्थापित करते थे । गिरिजाघरने वृक्ष तथा ऋतुओंकी पूजा करनेपर बंधन लगा दिए । प्राकृतिक स्थानपर मोमबत्ती जलाना तथा सजानेकी आलोचना की ।

छठी सदीमें ब्रगके बिशप मार्टिनने पूछा था, पत्थर, वृक्ष, कुआं तथा चौक आदि स्थानोंपर मोमबत्ती जलाना, सैतानकी पूजा नहीं, तो और क्या है ? ख्रिस्ताब्द ७८९ में चार्ल्ले मैन्नके जेनरल कैपीचूलरीजने आदेश दिया कि वृक्ष, पत्थर, पेड-पौधे, झरने आदि स्थानोंपर दीए जलाना अथवा आदर व्यक्त करना, सबसे हीन कृत्य है । यह ईश्वरका अपमान है ।

हम सूचना अर्थात आज्ञा दे रहे हैं कि जो लोग ऐसा करते पाए जाएंगे, उन सभीको जानसे मार दिया जाएगा ।
(साप्ताहिक हिन्दवी, १४ से २१ मार्च २०१०)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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