Menu Close

भारतको नेतृत्व करना है, अनुकरण नहीं !

फाल्गुन शुक्ल पक्ष एकादशी, कलियुग वर्ष ५११५


 हमारा समाज एवं राष्ट्र चातुर्वर्ण्यपर अधिष्ठित है । वसिष्ठ-राम, शंकराचार्य-सुधन्वा, चाणक्य-चंद्रगुप्त, विद्यारण्य-हरिहरबुक्क, समर्थ रामदास-शिवप्रभु ( शिवाजी), सिद्धेश्वर -करवीरके शाहू, जैसा ब्राह्मतेज तथा क्षात्रतेजका समन्वय साधनेवाला है । भारतीय राजनीति तथा राजधर्म संपूर्ण लोकजीवन ही राष्ट्रोन्मुख एवं समाजोन्मुख बनानेवाला है । सभी सत्पुरुष सर्वगुणसंपन्न तथा ब्राह्मतेजसे युक्त संन्यासियोंका जीवन जिए !

१. भगवान परशुराम
परशुराम सरसेनापति बने । संपूर्ण पृथ्वीके प्रशासनके सूत्र स्वाधीन होते हुए भी उनका पर्णकुटी स्थित जीवन वैसा ही अखंड था । 

२. आद्य शंकराचार्य
भारत स्थित सभी साम्राज्य धर्मनियंत्रणमें लानेवाले आद्य शंकराचार्यने सुतलीके धागेकी भी अपेक्षा नहीं रखी । 
३. आर्य चाणक्य
जिसने ‘अर्थशास्त्र’ नामका पृथ्वीमोलका ग्रंथ लिखा, उस सम्राट चंद्रगुप्तके गुरु तथा महामंत्री चाणक्य एक पर्णकुटीमें अकिंचन अवस्थामें रहते थे । पर्णकुटी स्थित उनकी संपत्ति थी छतपर सुखाए गोमयके उपले, आग्निमंथनकी अरणी, यज्ञ हेतु इंधन तथा समिधा-दर्भ एवं बाहर सूखते हुए उनके वस्त्र ! इस परमनिःस्पृह चाणक्यने चंद्रगुप्तके राज्यकी व्यवस्था कर चंद्रगुप्तको भारतके सम्राटपदका राज्याभिषेक कर वैदिक धर्मराज्यकी प्रतिस्थापना की । तत्पश्चात आत्मचिंतन हेतु वे कैलाशपर निकल गए । 

४. राजा हरिहर बुक्क
विजयनगरका वैदिक साम्राज्य राजा हरिहर बुक्कके हाथों स्थापित करनेवाले संन्यासी विद्यारण्य संन्यासधर्मका कठोर पालन करते थे । 

५. समर्थ रामदासस्वामी
छत्रपति शिवाजी महाराजको महाराष्ट्र राज्यका स्वामी बनाकर, राज्याभिषेक करवाकर तथा वैदिक धर्मकी प्रतिस्थापना कर समर्थ रामदासस्वामी लंगोटी पहनकर ही निवृत्त हुए । 

(साप्ताहिक सनातन चिंतन, २०.९.२०१२) 

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *