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‘शंकराचार्य पहाडी’का नाम बदलकर ‘तख्त-ए-सुलेमान’ रखनेके निर्णयके विरोधमें राजधानी देहलीके जंतर

अद्ययावत


‘शंकराचार्य पहाडी’का नाम बदलकर ‘तख्त-ए-सुलेमान’ रखनेके निर्णयके विरोधमें राजधानी देहलीके जंतरमंतरपर आंदोलन !

१७ मार्च २०१४


पुरातत्व सर्वेक्षण विभागद्वारा श्रीनगरके प्रसिद्ध दाल पुष्करिणीके समीप स्थित ‘शंकराचार्य पहाडी’का नाम बदलकर ‘तख्त-ए-सुलेमान’ रखनेका निर्णय लिया गया एवं तत्परतासे उसकी पूर्ति की गई । ‘शंकराचार्य पहाडी’ पाटी निकाल कर उस स्थानपर ‘तख्त-ए-सुलेमान’ नामकी पाटी लगाकर उसपर विपर्यस्त लेखन किया गया है । हिन्दुओंके स्वाभाविक विरोधकी उपेक्षा कर पुरातत्व विभागद्वारा हिंदुविरोधी कृत्य किया गया है । इसलिए इसका निषेध प्रविष्ट करने हेतु कश्मीरी हिंदुओंकी ओरसे आज १६ मार्चको राजधानी देहलीके जंतरमंतरपर आंदोलन किया जाएगा । इस आंदोलनमें पूरे देशके हिंदुओंको सम्मिलित होनेका आवाहन किया गया है । हिंदु इस चुनौतीका सामना किस प्रकार करते हैं, यह देखनेका समय आ गया है ।   
‘शंकराचार्य पहाडी’ हिंदुओंका दो-ढाई सहस्र वर्ष पुराना तीर्थस्थल है । मुसलमानोंका भारतमें आगमन होनेसे १३ शतक पूर्व राजा लालितादित्यने इस मंदिरका जीर्णोद्धार किया था, ऐसा उल्लेख मिलता है । ऐसे अतिप्राचीन तीर्थस्थलका एकाएक नामांतर होनेका आघात समस्त हिंदुओंके हदयको चुभनेवाली घटना है । अंतःकरणमें खदबदानेवाला(?,दहेलता) असंतोष व्यक्त करने हेतु हिंदुओंका देहलीके जंतरमंतरपर एकत्र आना स्वाभाविक तो है ही, परंतु इस आंदोलनमें उनका आवेशके साथ सम्मिलित होना भी नियतीको अपेक्षित है । प्राचीन इतिहासतज्ञ श्री.प्रेधुमान धारने इस नामांतरके विषयमें आश्चर्य व्यक्त किया, जबकि यूरोपसे कश्मीरभ्रमणपर आए एक इतिहासतज्ञको भी इस नामांतरका कारण समझमें नहीं आया । पुरातत्व विभागके स्थानीय सहायक कहते हैं, ‘’ऐतिहासिक संशोधनके निष्कर्षके अनुसार यह नामांतर किया गया है ।’’ कश्मीरमें किया गया संशोधन हिंदुओंका समाधान करनेवाला अथवा हिंदुओंसे संबंधित सत्य होनेकी कोई संभावना नहीं है । यह संशोधन अर्थात स्पष्ट रूपसे ‘घोटाला’ है, यह ध्यानमें रखकर हिंदुओंको अपने संगठनोंका सामथ्र्य(संगठनकी शक्ती ?) दिखाना अनिवार्य हो गया है । प्रत्येक हिंदुको ध्यानमें लेना चाहिए कि मानचित्रसे एक हिंदु तीर्थस्थलका नाम हटाया जाना हिंदु संस्कृतिके लिए एक जबरदस्त धक्का है । कश्मीरमें हिंदु नहीं चाहिए (कश्मीरसे हिंदुको भगाया गया  ?) । उन्हें अपने सब साधन-संपत्तिका त्याग कर पलायन करना पडा । अब हिंदुओंके आस्थास्रोत भी वहां नहीं चाहिए, ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होना आरंभ हो गया है । लोकसभा चुनावके पाश्र्वभूमिपर भाजपाके प्रधानमंत्रीपदके उम्मीदवार नरेंद्र मोदीको कश्मीरके फूटीरतावादी संगठन एवं विपक्ष समर्थन देते हैं, इस बातके पीछेका रहस्य क्या है ? कश्मीरमें हिंदुओंपर होनेवाले आघाती कृत्योंकी ओर हिंदु दुर्लक्ष करें, यही ना ?

हिंदुओंद्वारा प्रत्यक्ष कृत्य

कश्मीरकी सरकार हिंदुओंको कश्मीर वापस आकर रहनेका आवाहन करती है । इसकी क्या शाश्वती है कि वहां लौटकर जानेवाले हिंदु ‘हिंदु’ रहेंगे ? वहां उन्हें कोई मंदिर है ना कोई ‘शंकराचार्य पहाडी’ । वे उनकी धर्मभावनाओंको कहां व्यक्त करेंगे ? कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्हें वैसा अवसर न होनेके कारण उनका इस्लामीकरण किया जाए ? संशोधन किया गया तथा उसके निष्कर्षके अनुसार ‘शंकराचार्य पहाडी’का नामांतर किया गया । अयोध्याके राममंदिरके विषयमें भी संशोधन किया गया तथा वह रामजन्मभूमि है, ऐसा सिद्ध हुआ । तब भी वहां राममंदिरके निर्माणकार्यके लिए मुसलमानोंका विरोध किस लिए ? हिंदुओंके मंदिरोंको उद्धस्त कर वहां मस्जिदोंका निर्माणकार्य किया गया । यह भी संशोधनका ही भाग है । इस संशोधनका सम्मान कर क्या हिंदुओंके मंदिर वापस मिलेंगे ? जंतरमंतरपर किए जानेवाले आंदोलनमें पूरे देशके हिंदुओंका सहभाग प्रत्यक्ष कृत्यका छोटासा संस्मरण होगा । वर्तमान समयमें लोकसभा चुनावकी हवा चल रही है । विविध पक्षोंके विविध उम्मीदवार मतदान मांगने हेतु अवश्य आएंगे । उनसे पूछे, ‘’क्या आपको ज्ञात है कि श्रीनगरमें ‘शंकराचार्य पहाडी’का नामांतर हुआ है ? हमारी धर्मभावनाओंको कुचल डाला, हमें मरणप्राय कष्ट दिए । इस विषयमें आप क्या करेंगे ? हमें दिखाई दे रहा है कि हम हिंदुओंका अस्तित्व ही मिटानेका षडयंत्र चल रहा है । ऐसे समयमें जो हमें हमारा त्राता प्रतीत होता है, वही हमारा प्रतिनिधि है ।’’ हिंदुओ, आपके लिए यह एक भाग्यका अवसर है, ऐसा कहनेमें कोई अडचन नहीं है, क्योंकि प्रत्यक्ष कृत्यके(?) स्तरपर उतरनेके लिए प्राप्त यह एक अवसर है । अब लोकसभापर जाकर शांतिसे पांच वर्ष व्यतीत करनेका व्यसन(?लत) लगे लोकप्रतिनिधिको वैसा करनेका अवसर न दें । उन्हें संसद भवनमें निरंतर शंकराचार्य पहाडीके नामांतरका सूत्र उपस्थित करनेपर विवश करें । संसद भवनमें सदैव हिंदु लोकप्रतिनिधियोंका वर्चस्व होता है; परंतु हिंदुओंको उसका कोई लाभ नहीं होता । मानो वे सभी वैचारिक धर्मांतरण कर / वैचारिक रूपसे सुन्नत होकर बैठते हैं । प्रत्यक्ष कृत्यके आरंभके रूपमें केवल जंतरमंतर (जंतरमंतर की प्रेरणा) आंखोंके समक्ष रहे  ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात


पुरातत्व विभाग हिंदुद्वेषी होनेके कारण सत्यका विपर्यास कर रहा है !

१२ मार्च २०१४


भारतीय पुरातत्व विभाग हिंदुद्वेषी होनेके कारण उसके द्वारा देशके हिंदुओंके असंख्य भवन एवं मंदिर जैसे प्राचीन स्थलोंका इस्लामीकरण करनेका प्रयास किया जा रहा है । सनातनद्वारा ऐसे विभागके अधिकारियोंपर ध्यान केंद्रित किया गया है तथा उन्हें ‘हिंदु राष्ट्र’में आजन्म कठोर साधना करनेका दंड दिया जाएगा !

श्रीनगर : कश्मीरी हिंदुओंद्वारा आरोप लगाया गया है कि श्रीनगरके प्रसिद्ध दाल पुष्करणीके समीपवाली ‘शंकराचार्य’ पहाडीका नाम बदलकर उसे तख्त-ए-सुलेमान नाम देने हेतु पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ए.एस.आय.- Archaeological Survey of India) सत्यका विपर्यास कर रहा है ।  (सर्वेक्षणके अनुसार देशमें नरेंद्र मोदीकी सरकार आनेकी संभावना होनेके कारण अब हिंदु अपनी सभी मांगें मोदीके पास प्रस्तुत करनेकी सिद्धता करें एवं वे मांगें पूरी होनेतक उनका अनुवर्ती प्रयास करें ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )

१. ऐतिहासिक सत्य बदलकर इस स्थानकी ‘शंकराचार्य पहाडी’ नामककी पाटी निकालकर वहां तख्त-ए-सुलेमान नामक नया तक्ता एवं उसपर नया सार लिखनेके पुरातत्व विभागके कृत्यका निषेध कर कश्मीरी हिंदुओंने पुरातत्व सर्वेक्षण विभागको एक  विस्तृत निवेदन दिया है ।

२. प्राचीन कश्मीरी इतिहासतज्ञ श्री. प्रेधुमान के. जोसेफ धारने इस नामांतरके विषयमें आश्चर्य व्यक्त किया । हाल-हीमें युरोपके एक इतिहासतज्ञने कश्मीरका भ्रमण किया तो उसे भी इस नामांतरका कारण समझमें नहीं आया । 

३. नए पाटी / तक्तेपर लिखे सारके अनुसार इस मंदिरका कलश मुगल बादशहा शाहजहांद्वारा वर्ष १६४४ में बांधनेका उल्लेख है; परंतु यह मंदिर बांधनेवाले राजा गोपाधारीका उलेख नहीं है । 

४. उसीप्रकार इस्लामका भारतमें आगमन होनेसे पूर्व १३ शतक राजा लालितादित्यने इस मंदिरका जीर्णोद्धार किया था । वह भी दिखाई नहीं देता ।

५. तत्पश्चात डोग्रा राजनेताओंने मंदिरमें शिवलिंगकी स्थापना की, जिसका जहांगीर राजाकी पत्नी नूरजहांकी आज्ञासे विध्वंस किया गया । यह इतिहास श्री. धारने बताया ।

६. इस संबंधमें पुरातत्व विभागके अधिकारियोंसे संपर्क करनेपर उनके स्थानीय सहायक फयाज अहमदने कहा कि इस संदर्भमें ऐतिहासिक संशोधन किया गया एवं उस संशोधनके निष्कर्षके अनुसार उपरोक्त परिवर्तन किया गया । इस संबंधमें उन्होंने अधिक जानकारी देने मना किया एवं वरिष्ठ अधिकारियोंसे संपर्क करने कहा; परंतु वैसा संपर्क नहीं संभव हुआ ।

७. अमेरिकाके इतिहासतज्ञ सुजान ओसलोनने बताया कि एक समय कश्मीरमें हिब्रू (ज्यू) लोगोंका वर्चस्व था । उनका राजा था सोलोमन । उसके ही नामसे उपरोक्त पहाडीका नाम रखा होगा; परंतु इस स्थानको ‘शंकराचार्य पहाडी’के नामसे जाना जाता है ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात 

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