बलात्कार मामले में पिडिता का बयान अगर विश्वसनीय और संतुष्टिदायक हो तो बिना किसी पूरक साक्ष्य के उसी बयान के आधार पर ही आरोपी को दोषी करार दिया जा सकता है। बलात्कार मामले में ३ आरोपियों की १० साल कैद की सजा बरकरार रखते हुए उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी की।
उच्च न्यायालय ने कहा कि लडकी ने मैजिस्ट्रेट के सामने जो बयान दिए हैं और निचली अदालत में सुनवाई के दौरान जो बयान दिए हैं वह तारतम्यता लिए हुए है। लडकी के बयान से साफ है कि आरोपी वारदात में संलिप्त थे। ऐसा कोई कारण नहीं दिखता जिससे यह दिखे कि लड़की ने किसी निर्दोष को फंसाया है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि जब कोई नाबालिक विटनेस होता है तो यह देखना जरूरी होता है कि कहीं उसे किसी ने बयान देने के लिए सिखाया-पढ़ाया तो नहीं है। लड़की १० साल की थी। इस मामले में यह देखना जरूरी है कि लडकी किसी दबाव में तो नहीं थी। कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई संकेत नहीं है कि लडकी को किसी ने बहकाया हो।
इस बात का कोई कारण नहीं दिखता कि लडकी ने आरोपियों को फंसाया है। सिर्फ इसलिए की लडकी ने शोर नहीं मचाया उसके बयान को अविश्वसनीय नहीं करार दिया जा सकता। उच्च न्यायालय ने कहा कि बयान विश्वसनीय और संतुष्टिदायक है और ऐसे में आरोपियों को दोषी करार देने के लिए किसी पूरक साक्ष्य की जरूरत नहीं है।
इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने तमाम साक्ष्यों व बयान को बरीकी से अध्ययन किया है और ऐसे में सजा में दखल देने की जरूरत नहीं है। उच्च न्यायालय ने लोअर अदालत की सजा को बरकरार रखा है। निचली अदालत ने तीनों दोषियों को १०-१० साल कैद की सजा सुनाई थी।
मामला कंझावला इलाके का है। पुलिस के मुताबिक ९ सितंबर २०११ को उन्हें सूचना मिली कि १० साल की लडकी के साथ उसके तीन रिश्तेदार ने बलात्कार किया है। पुलिस मौके पर पहुंची और पिडिता का बयान लिया गया। साथ ही तीनों आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। लड़की का मैजिस्ट्रेट के सामने भी बयान दर्ज किया गया। आरोपियों ने खुद को निर्दोष बताया था।
निचली अदालत ने २० मार्च २०१३ को तीनों को बलात्कार मामले में १०-१० साल कैद की सजा सुनाई। इस फैसले को तीनों ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी। तीनों की ओर से दलील दी गई कि लड़की के बयान के आधार पर ही इस मामले में दोषी करार दिया गया है और बयान में विरोधाभास है और उन्हें फंसाया गया है।