फाल्गुन शुक्ल पक्ष एकादशी, कलियुग वर्ष ५११५
संगठित धर्मांधोंके तलवे चाटनेवाले राजकीय पक्ष एवं असंगठित हिंदुओंके आजकी वर्समान स्थितिको इस लेखमें देखेंगे ।
१. सद्गुणोंके विकृत रूप धारण करनेसे हिंदुओंके विवेकका समाप्त होना एवं उसका परिणाम धर्मांधोंद्वारा उनके संगठितपनके कारण सत्ताके लालची राजनेताओंको नचाया जाना
हिंदु समाजको जन्मसे ही सिखाया जाता है कि सभी लोग अच्छे हैं; परंतु इस अच्छाईके कारण हिंदुओंमें विद्यमान सद्गुणोंने विकृत रूप धारण कर लिया है । हिंदुओंमें शत्रु-मित्र अथवा हानि-लाभका विवेक ही नहीं रहा । परिणामस्वरूप कट्टरवादी अराष्ट्रीय विचारोंसे ग्रस्त धर्मांधोंका एक समूह मूल पकडने लगा है । आज देशके धर्मांध राजकीय दृष्टिसे संगठित होनेके कारण समर्थ हैं तथा वे सत्तालोलुप राजकीय नेताओंको नचा रहे हैं । वे भारतके संविधान, नियम-व्यवस्था एवं बहुसंख्य समाजपर अपरिमित अत्याचार कर रहे हैं ।
२. पायोनियर नामक अंग्रेजी समाचारपत्रने धर्मांध संगठन सिमीके विषयमें एन.आइ.ए.द्वारा केंद्रशासनको दी संकटकी चेतावनी !
अंग्रेजी समाचारपत्र पायोनियरने १६.२.२०१२ के अंकके माध्यमसे राष्ट्रीय अन्वेषण तंत्रद्वारा (एन.आइ.ए.द्वारा) केंद्रशासनको सूचनाके रूपमें चेतावनी दी है कि धर्मांधोंके सिमी संगठन भारतकी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्थामें बडी मात्रामें संकट उत्पन्न कर रहा है । सिमीका उद्देश्य भारतीय सीमाके राज्योंको धर्मांध राज्य बनाना है । इसके लिए दलित समाजका हाथ पकडकर उत्तर प्रदेश, केरल एवं कर्नाटक राज्योंके अनेक जिलोंको धर्मांधोंबहुल बनाकर धर्मांध राज्यका आधारसतंभ बनानेका प्रयत्न किया जा रहा है ।
राजकीय स्वहित साधनेके लिए धर्मांधोंद्वारा उठाए जा रहे पगोंको देखकर एवं उनके एकगुट मतोंके लिए लालायित राजकीय नेताओंके षड्यंत्रके कारण जातीयवाद उत्पन्न होनेसे हिंदुओंके विभाजित होनेकी प्रक्रिया तीव्र गतिसे हो रही है ।
३. सर्वोच्च न्यायालयद्वारा बताया जाना कि हिंदु समाज विविध जातियोंमें विभक्त होनेके कारण वे बहुसंख्यक न होकर अल्पसंख्यक ही हैं ।
सर्वोच्च न्यायालयने बाल पाटिलके विरुद्ध भारत सरकार (२००५), इस केसके विषयपर आगे बताए अनुसार विचारपूर्वक टिप्पणी की है । हिंदु, इस शब्दसे भारतमें रहनेवाले विविध समुदाय ऐसा अर्थबोध होता है । आपको यदि हिंदु नामके किसी व्यक्तिको ढूंढना हो, तो वो मिलनेवाला नहीं है । ऐसा व्यक्ति किसी जातिके आधारपर ही पहचाना जा सकता है । हिंदु समाज अनेक जातियोंपर आधारित होनेके कारण अल्पसंख्यकोंके अनेक गुटोंमें विभक्त है । प्रत्येक जातिसमूह दूसरे जातिसमूहसे स्वयंको भिन्न होनेके विषयमें बताता है । भारतीय हिंदु समाज विविध जातियोंमें विभक्त होनेके कारण कोई भी समूह बहुसंख्यक होनेके विषयमें दृढतासे नहीं कह सकता । हिंदुओंमें सभी ही अल्पसंख्यक हैं !
(गीता स्वाध्याय, अप्रैल २०१२)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात