आषाढ शु ११, कलियुग वर्ष ५११४
बर्लिन – पश्चिम जर्मनीमें स्थित कलोनके न्यायालयने बुधवारको ऐसा निर्णय दिया है कि धार्मिक परंपरास्वरूप युवकोंकी सुंता नहीं करनी चाहिए । इस प्रकारसे धार्मिक विधि करना अर्थात् मानवीय शरीरको कष्ट पहुंचाना ही है । ज्यू धर्मियोंने इस निर्णयके विरोधमें तीव्र रोष दर्शाते हुए आलोचना की है कि यह अभिभावकोंका धार्मिक अधिकार कुचलनेका प्रयास है । पश्चिम न्यायालयद्वारा इस संदर्भमें निर्णय किया गया है । न्यायालयद्वारा यह भी कहा गया है कि अभिभावकोंके मूलभूत एवं धार्मिक अधिकारकी अपेक्षा बच्चोंका अपने शरीरपर सर्वाधिक अधिकार है । इसलिए अभिभावक स्वयं अपना निर्णय न लेकर बच्चोंको इस विषयमें विस्तृत मार्गदर्शन करें । बच्चोंके सज्ञान होनेपर सुंता करनेके संदर्भमें स्वयं अपना निर्णय लेना ही उनके लिए सर्वोत्तम है । अभिभावकोंकी चाहके अनुसार कलोनके एक वैद्यद्वारा चार वर्षके बच्चेकी सुंता की गई थी; परंतु सुंता करनेके उपरांत कुछ दिनों पश्चात् ही घावसे निरंतर रक्त बहने लगा । इसलिए अभिभावक बच्चेको रुग्णालयमें लेकर गए । इस घटनापर ध्यान देकर संबंधित वैद्यके विरोधमें न्यायालयमें परिवाद प्रविष्ट किया गया था । वैद्यने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि अभिभावकोंकी इच्छाके अनुसार हमने सुंता की है । इसलिए न्यायालयद्वारा उसकी निर्दोष मुक्तता की गई एवं अभिभावकोंको तीव्र शब्दोंमें फटकारा गया । न्यायालयके निर्णयके पश्चात ज्यू धर्मियोंमें खलबली मच गई एवं इस निर्णयपर आलोचना की गई है । ‘सेंट्रल कमिटी ऑफ ज्यू’ के डिएटर ग्राऊमनद्वारा आलोचना की गई कि नागरिक एवं अभिभावकोंके धार्मिक अधिकारोपर न्यायालयद्वारा अतिक्रमण किया गया है, जो निषेध करने योग्य है ।
तीस प्रतिशत पुरुषोंकी सुंता
इजिप्तकी प्राचीन गुफा एवं गुंबजोंमें चित्र तथा कलाकृतियोंमें सुंता करनेके दृश्य दिखाई देते हैं । ज्यू धर्ममें ‘ईश्वरकेआदेश’ स्वरूप सुंता की जाती है । इस्लाम पंथी भी सुंता करते हैं; परंतु वैसा कोई उल्लेख कुरानमें नहीं है ।
स्त्रोत – दैनिक सनातन प्रभात