फाल्गुन शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, कलियुग वर्ष ५११५
कांग्रेस के युग के अंत की शुरूआत होने जा रही है !!!
भविष्यवाणी-१९६७ – ईपीडब्लीय डि कोस्टा
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१९६२-कांग्रेस के किले में दरार की शुरूआत
क्या खास था – यूं तो कांग्रेस को सफलता मिली, पर उसका वोटर शेयर घटा। कांग्रेस को ५५ फीसद वोटों के साथ ३६१ सीटों पर सफलता मिली। अपनी चुनावी सभाओं में पंडित नेहरू दावा कर रहे थे कांग्रेस की नीतियों के चलते देश विज्ञान और प्रौद्योगिकी, औद्योगिक और संचार क्षेत्रों में आगे बढ़ा। वे कह रहे थे कि हमने कई स्टील मिल और बांध आधुनिक भारत के मंदिरों के रूप में स्थापित किये।
क्या मुद्दे थे – इस लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के कुछ नेता नेहरु जी से आग्रह कर रहे थे कि पार्टी को स्वतंत्र पार्टी से तालमेल कर लेनी चाहिए। पर नेहरु जी ने सलाह नहीं मानी। वे चुनावी सभाओं में कह रहे थे कि विपक्ष के पास ना कोई नीति है और ना ही कार्यक्रम। उधर, जनसंघ से लेकर कम्युनिस्ट पार्टी के नेता कांग्रेस पर बढ़ती महंगाई तथा बेरोजगारी की समस्या से निबटने में नाकामयाब रहने के आरोप लगा रहे थे।क्या आप जानते है – इस चुनाव से पहली बार आकाशवाणी से राजनीतिक दलों को अपना प्रचार करने की अनुमति मिली।
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१९६७-अनेक प्रदेशों में कांग्रेस की हार
क्या खास था – चौथे लोकसभा चुनाव के आते-आते देश बदलने लगा था। देश के चोटी के चुनाव चुनाव सर्वेक्षण विशेषज्ञ ईपीडब्लीय डि कोस्टा ने पहले ही भविष्य़वाणी कर दी थी कि कांग्रेस के युग के अंत की शुरूआत होने जा रही है। भविष्यवाणी सही साबित हुई। चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले रहे। पहली बार लगा कि देश में कांग्रेस की जमीन खिसकी। कांग्रेस को २८३ ही सीटें मिलीं। हालांकि आज के आलोक में देखेंगे तो २८३ का आंकड़ा भी काफी लगता है।
क्या मुद्दे थे – इस चुनाव के केंद्र में चीन के साथ युद्ध में पराजय और पाकिस्तान से विजय रहे। चीन से हार को देश भुला नहीं था। कांग्रेस की लोकप्रियता जनता के बीच घटती जा रही थी। बढ़ती बेरोजगारी,गरीबी, भ्रष्टाचार जैसे चिर चुनावी मुद्धे थे ही। स्वंतत्र पार्टी ईमानदार सरकार देने का वादा कर रही थी। जनसंघ गौ-हत्या पर रोक लगाने का वादा कर रही थी। अर्थव्यवस्था में गुणात्मक सुधार करने का वादा कर रही थी। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी बैंकों के राष्ट्रीयकरण का वादा कर रही थी।
क्या आप जानते हैं – लोकसभा के साथ बिहार, केरल, उड़ीसा, मद्रास, पंजाब और पश्चिम बंगाल में हुए विधान सभा चुनावों में गैर-कांग्रेसी सरकारें स्थापित हुईं।१९७१-इंदिरा गांधी के गरीबी हटाओं के नारे की आँधीक्या खास था – इंदिरा गांधी ने कालजयी नारा दिया गरीबी हटाओ। ‘गरीबी हटाओ’ के चुनावी नारे के साथ प्रचार करते हुए कांग्रेस ३५२ सीटों के साथ संसद में वापस आईं। पिछले चुनावों की २८३ सीटों के मुकाबले यह उल्लेखनीय सुधार था। १९६७-७१ के बीच राजनीतिक माहौल बेहद गर्म रहा। कांग्रेस में दो फाड़ हो गया। राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मौत हो गई। कांग्रेस (ओ),एसएसपी, स्वतंत्र पार्टी और जनसंघ ने मिलकर कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ा, पर जनता इन्हें धिक्कार दिया। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और माकर्सवादी कमुनिस्ट पार्टी ने चुनावों में कांग्रेस का साथ दिया।
क्या मुद्दे थे – चिर मुद्धों के अलावा गरीबी हटाओं का असर सिर चढ़कर बोला। विपक्ष कांग्रेस की आँधी में उड़ गया। वरिष्ठ पत्रकार एम.के.धर कहते हैं कि ये बेहद एकतरफा चुनाव था।
क्या आप जानते है – संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के नेता आरोप लगा रहे थे कि कांग्रेस ने उनका नारा चुरा लिया। भाकपा के महासचिव एम.ओ. फारूकी ने एक बार कहा था रोटी,कपड़ा और मकान तो हमारे मुद्धे हैं,जिन्हें चुरा लिया कांग्रेस ने।
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१९७७-इमरजेंसी की छाया
क्या खास था – पहली बार लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को शिकस्त मिली। कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई। विपक्षी दल जनता पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़े। लोकनायक जयप्रकाश नारायण का इन्हें आर्शीवाद हासिल था। जनता पार्टी गठबंधन में किसान नेता चरण सिंह और दलितों के नेता जगजीवन राम भी थे। इनकी मोरारजी देसाई से अदावत पुरानी थी। जनता पार्टी को २७० सीटें मिलीं। इंदिरा गांधी और उनके पुत्र संजय गांधी समेत कांग्रेस के अनेक दिग्गज चुनाव हार गए। पर जनता पार्टी आंतरिक विरोधाभासों के चलते बिखर गई। जनता पार्टी में समाजवादियों से लेकर हिन्दुत्व मन के नेता थे। इनमें आपसी तनातनी लगी रहती थी। बहरहाल, ये १९७९ में टूट गई।
क्या मुद्दे थे – कांग्रेस सरकार द्वारा आपातकाल की घोषणा १९७७ के चुनावों का मुख्य मुद्दा था। आपातकाल के दौरान २५ जून १९७५ से २१ मार्च १९७७ तक नागरिक अधिकारों को समाप्त कर दिया गया था और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने व्यापक शक्तियां अपने हाथ में ले ली थीं। तमाम बड़े विपक्षी नेताओं को जेलों में ठूंस दिया गया। विपक्ष दलों ने आपातकाल के दौर में हुई ज्यादतियों को चुनावों में उठाया। कांग्रेस ने एक मजबूत सरकार की जरूरत होने की बात कहकर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की लेकिन लहर इसके खिलाफ चल रही थी।
क्या आप जानते हैं – चुनावों में इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी चुनाव हार गए। विपक्ष के नारे इंदिरा हटाओं-देश बचाओ का खूब असर हुआ।
स्त्रोत : निती सेन्ट्रल