चैत्र कृष्ण पक्ष द्वितिया, कलियुग वर्ष ५११५
यह हिंदुओंको धर्मशिक्षाकी अत्यंत आवश्यकता होनेका एक उदाहरण !
अलाप्पुजा (केरल) – आजतक देवताको पुष्प, चंदन एवं फलोंका प्रसाद अर्पण करनेकी प्रथा अस्तित्वमें थी; किंतु अब ठेक्कल पलानी सुब्रह्मण्यपुरम् गांवके श्री मुरुगा देवताके मंदिरमें दर्शन हेतु आनेवाले श्रद्धालु देवताके लिए चॉकलेटका प्रसाद अर्पण करते हैं ।
सुब्रह्मण्यपुरम् गांवकी सीमापर मंच मुरुगा देवताका मंदिर है । श्री मुरुगा शिवपुत्र कार्तिकेयका एक नाम है । इस मंदिरमें बालमुरुगा अर्थात श्री मुरुगाका बालरूप ही मुख्य उपास्य देवताके रूपमें है । छोटे बच्चोंको चॉकलेट पंसद हैं, यह एक श्रद्धालुके मनमें आया; इसलिए उसने प्रथम बार ही देवताको चॉकलेटका प्रसाद अर्पण किया । सर्व श्रद्धालुओंने इस प्रथाका पालन करना आरंभ किया । अधिकांश श्रद्धालु विख्यात आस्थापनोंके बडे आकारके चॉकलेट प्रसादके रूपमें अर्पण करते हैं । इस मंदिरमें श्रद्धालुओंके साथ-साथ पासके पाठशालाके छात्र भी दर्शन हेतु आते हैं ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात