चैत्र कृष्ण पक्ष तृतीया, कलियुग वर्ष ५११५
मतदारोंके लिए कानमंत्र
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१. मतदान करनेवालो, अपने मतका महत्त्व जानकर मतदानके अधिकारका उचित उपयोग करें !
मतदार भाईयों एवं बहनों, हिंदुस्थान गणतंत्र राष्ट्र है एवं हम इस राष्ट्रके नागरिक हैं । पिछले ६६ वर्षोंसे हम मतदान कर रहे हैं । तबसे आजतक हमें हमारे एक मतका क्या मूल्य है, यह समझमें नहीं आया है । गणतंत्र राष्ट्रमें नागरिकको जनप्रतिनिधि स्वयं चयन कर शासन स्थापित करने एवं शासनपर नियंत्रण रखनेका अधिकार है, साथ ही राजनीतिज्ञोंके चूके करनेपर उन्हें सत्ताच्युत करनेका अधिकार है । चुनाव आते ही हम मतदान केंद्रपर जाकर केवल मतदान कर आ जाते हैं ! आगे क्या होता है, इस विषयमें हम विचार भी नहीं करते ।
२. गुंडे, खुनी एवं अनाजका कालाबाजार करनेवाले उम्मीदवारको मत प्रदान करते समय विचार करें !
स्वतंत्रता प्राप्तिसे राजनीतिज्ञ हमें कहते आए हैं कि आपका मत अमूल्य है । उसे व्यर्थ न जाने दें; परंतु आपका अमूल्य मत उचित उम्मीदवारको ही दें, ऐसा किसीने नहीं सिखाया । इसलिए वर्तमान समयमें नागरिकोंके अमूल्य मत व्यर्थ जा रहे हैं । आज चुनाव लडनेवाले अधिकांश उम्मीदवार अपात्र ही हैं । उनमें अत्यधिक गुंडे, खुनी एवं अनाजका कालाबाजार करनेवाले हैं । कारागृहमें दंड भुगतनेवाले खुनीको भी हम चुनकर दे सकते हैं !
३. समाजसेवकका मुखौटा धारण कर मतयाचनाके लिए आए राजनीतिज्ञोंके छलकपटपर बलि चढकर उन्हें मत न दें !
चुनावसे पूर्व ये चतुर राजनीतिज्ञ समाजसेवकका मुखौटा धारण कर मतयाचना करने हेतु हमारे दरवाजेपर आते हैं । हम उनकी बातोंमें आ जाते हैं । हम सभी मतदार मतदानके संदर्भमें मूर्ख रह गए हैं । मतदान केंद्रमें जाकर भ्रष्ट एवं धूर्त राजनीतिज्ञोंको हम भेडके समूहसमान मतदान करते हैं । ये धूर्त राजनीतिज्ञ चुनकर आनेपर उनका मुखौटा बदल जाता है । वे अपने सबके आंखोंमें धूल फेंककर स्वार्थ साधते हैं एवं भ्रष्टाचार कर देशकी संपत्तिको लूटते हैं । इतनाही नहीं, अपितु जबरदस्ती भी करते हैं ।
४. पद एवं मान देकर भ्रष्ट राजनीतिज्ञोंको बडे करनेवाले हम ही हैं, यह ध्यानमें लें !
हमें ऐसा प्रतीत होता है कि मंत्री, शासक एवं संसद सदस्यके पास अधिकार होनेके कारण वे कुछ भी कर सकते हैं । यदि उनके विरुद्ध बोलना पडा, तो हमें तनाव आता है; परंतु पद एवं मान देकर उन्हें बडे करनेवाले हम ही है, यह हमारे ध्यानमें ही नहीं आता ।
५. एक चुनावमें विजयी होकर दूसरा चुनाव आनेतक १ करोड रुपयोंसे ११ करोड रुपएतक संपत्ति जमा करनेवाले राजनीतिज्ञ क्या समाजसेवक होनेके योग्य हैं ? इसका विचार करें !
मतदार भाई – बहनो, मुखौटा धारण कर अपने पास मतयाचनाके लिए आए उम्मीदवारकी संपत्ति एक चुनाव जीतकर दूसरी आनेतक १ करोड रुपयोंसे एकाएक ११ करोड कैसे होती है ? इसका हमें विचार करना चाहिए । कहते हैं, राजनीतिज्ञ सेवा करते हैं ! क्या समाजसेवा करनेसे इतनी संपत्ति जमा होती है ? एक चुनाव जितनेके लिए सहस्रों करोड रुपये काला धन व्यय करनेवाले राजनीतिज्ञ क्या समाजसेवक होनेके योग्य हैं ? इसका भी मतदान करनेसे पूर्व हमें विचार करना चाहिए ।
६. समाजकी विविध मानसिकताके लोगोंके गुट एवं उनकी मतदानके संदर्भमें मानसिकता ।
वर्तमान समयमें समाजमें ४ प्रकारकी मानसिकताके लोगोंके गुट हैं |
६ अ. स्वार्थी, देशद्रोही एवं विचारशून्य लोगोको राष्ट्रसे कुछ लेन-देन नहीं रहना : प्रथम गुट देशद्रोही एवं विचारशून्य लोगोंका है तथा इस गुटके लोग केवल स्वार्थ ही देखते हैं । राष्ट्रका अर्थ क्या है ? राष्ट्रसे मेरा क्या संबंध है, यही देखते हैं । क्या राजनीतिज्ञ राष्ट्रके लिए कुछ कर रहे हैं ? इस गुटके लोग राष्ट्रकी स्थितिके संदर्भमें कोई विचार नहीं करते ।
६ आ. चुनावके निमित्त सुविधाएं हथियानेकी मानसिकता रहनेवाले लोगोंको आश्वासन देकर राजनीतिज्ञोंने मतपेटी मतबूत करना : दूसरा एक गुट बहुत चतुर लोगोंका है । हमें कौनसी सुविधाएं हैं ? उन्हें कैसे हथियाना चाहिए ? अधिकाधिक सुविधाएं अपनी झोलीमें कैसे डालें ?, इसका ही हिसाब करते हैं । चुनाव आते ही देशद्रोही एवं स्वार्थी राजनीतिज्ञ इस गुटके लोगोंकी मांग एवं उसकी पूर्तताका विचार कर उन्हें आश्वासन देते हैं एवं अपनी मतपेटी मजबूत करते हैं ।
६ इ. विविध प्रलोभनोंमें फंसनेवाले विचारशून्य लोग ! : विचारशून्य लोगोंका गुट धन एवं वस्र देनेवाले, मद्य पिलानेवाले एवं मीठी मीठी बातें कर आश्वासन देनेवाले राजनीतिज्ञोंको मतदान करते हैं ।
६ ई. विद्यावान एवं सज्जन लोगोंका मतदानके संदर्भमें उदासीन रहना एवं उनके भरे राजस्वसे राजनीतिज्ञोंने अन्य गुटके लोगोंकी झोली भरना : विद्यावान एवं सज्जन गुटके लोग ऐसा विचार करते हैं कि कोई भी आए हमें इससे क्या ? वे अपनी नौकरी, व्यवसाय, घर एवं संसारतक ही विचार कर मतदानके दिन छुट्टी मिलनेपर मौज करते हैं । वे मतदानके लिए जाते ही नहीं । परंतु कर अनिवार्य रूपसे भरते हैं । अब ऐसे मतदारोंका जागृत होना आवश्यक हो गया है; क्योंकि उनद्वारा दिए करसे राजनीतिज्ञ अधिकाधिक मात्रामें धन उपरोल्लिखित एक गुटकी झोलीमें डालते हैं |
७. चूनावको व्यवसाय बनानेवाले राजनीतिज्ञोंने भ्रष्टाचारके मार्गसे धन अपने डालना एवं भ्रष्ट राजनीतिज्ञ तथा उन्हें मतदान करनेवाले लोगोंके कारण देशकी अवनति होना
थोडासा धन राजनीतिज्ञ भेडके समूहसमान गुटको बांटते हैं एवं शेष पूरा धन भ्रष्टाचारके मार्गसे उनके परचेमें जाता है । सज्जनोंको मिलती है केवल भाव एवं करमें वृदि्ध । तब भी वे मौन रहते हैं । इसलिए वर्तमान समयके राजनीतिज्ञोंका यह चुनावरुपी व्यवसाय आरामसे चल रहा है । उनद्वारा कितना भी भ्रष्टाचार किया गया, तो उन्हें पूछनेवाला कोई नहीं, क्योंकि कर भरनेवाले विचारक एवं सज्जन इस संदर्भमें कभी विचार नहीं करते । राजनीतिज्ञोंके कारण उन्हें मतदान करनेवाले चतुर एवं मूढ लोगोंके कारण अपने देशकी अवनती हो रही है ।
८. सज्जनों, भ्रष्ट राजनीतिज्ञोंके घेरेसे देशको बचाएं !
लालचके बलि चढकर एवं बातोंमें आकर मत देनेवाले निर्धन लोगोंके विकासकार्यके लिए उदा. शिक्षाव्यवस्था, आरोग्यव्यवस्था तथा पिनेके पानीकी व्यवस्थाके लिए सरकारद्वारा सम्मत करोडों रुपए इन राजनीतिज्ञोंके परचेमें जाते हैं; इसीलिए अब विद्यावंत एवं सज्जनोंको चाहिए कि वे इस देशको बचाए ।
९. मतदानके विषयमें उदासीनता त्यागकर उचित उम्मीदवारको पहचानें एवं इस वर्षके चुनावमें अनिवार्य रूपसे मतदान करें !
हमने आजतक जो चूक की है, भविष्यमें वैसी चूक न कर जागृत नागरिक होना चाहिए । मुझे उसका क्या ?, इस मानसिकताको त्यागकर यदि अपना अस्तित्व संजोए रखना है, तो अपना अमूल्य मत व्यर्थ न जाने दे । हम सभीको संगठित होकर भविष्यके चुनावमें मतकी याचनाके लिए आनेवाले राजनीतिज्ञका ध्येय एवं नीति क्या है ? वे देश एवं धर्मके लिए क्या करेंगे ? यह सब पता करनेपर अनिवार्य रूपसे मतदान करना चाहिए ।
– श्री. श्रीनिवास शेट्टीगार, नेरूल, नई मुंबई.
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात