चैत्र कृष्ण पक्ष १२, कलियुग वर्ष ५११५
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जिनेवा- दुनिया में वायु प्रदूषण से प्रतिवर्ष मरने वाले ७० लाख लोगों में से आधे से अधिक की मौत रसोई के अंदर लकड़ी और कोयले से जलने वाले चूल्हे के धुएं से होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डव्ल्यूएचओ) की आज जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि आठ में से एक व्यक्ति की मौत वायु प्रदूषण के कारण होती है और यह दुनिया के लिए सबसे बड़ा पर्यावरणीय जोखिम बनकर उभरा है।
रिपोर्ट के मुताबिक एशिया के अधिकतर लोगों द्वारा रसोई में लकड़ी और कोयले के चूल्हे का इस्तेमाल करने की वजह से वर्ष २०१२ में ४३ लाख लोगों की मौत हुई थी, जबकि ३७ लाख लोग अन्य कारणों से होने वाले वायु प्रदूषण की वजह से मारे गए, जिनमें से ९० प्रतिशत लोग विकसित देशों के हैं। रिपोर्ट के अनुसार पिछले आंकड़ों की तुलना में इस बार वायु प्रदूषण से मृतकों की संख्या दोगुनी बढ़ गई है। प्रदूषण के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के प्रति लोगों को बेहतर सूचनाएं उपलब्ध कराकर इस वृद्धि को कम किया जा सकता है।
पिछले वर्ष डव्ल्यूएचओ ने वायु प्रदूषण को कैंसर के कारण के रूप में वर्गीकृत किया था। प्रदूषित वायु की वजह से फेफड़े के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। रिपोर्ट से इतर लंदन के किंग्स महाविद्यालय के पर्यावरणीय शोधसमूह के निदेशक फ्रैंक केली ने कहा "हम सभी सांस लेते हैं, इसलिए प्रदूषण के खतरों की अनदेखी करना मुश्किल है। प्रदूषित वायु में उपस्थित छोटे कणों फेफड़े में पहुंचने के कारण कैंसर के साथ ही चिड़चिड़ाहट और दिल का दौरा पड़ने लगता है।
डव्ल्यूएचओ की सहायक महानिदेशक फ्लैविया बुसत्रियो ने कहा है कि विकासशील देशों में वायु प्रदूषण का प्रभाव पुरूषों की तुलना में महिलाओं पर अधिक पड़ा हैं। आर्थिकरूप से कमजोर महिलाएं और बच्चे सबसे अधिक समय आवास के भीतर बिताते हैं। इस दौरान रसोई के धुएं में अधिक देर तक रहने के कारण सबसे अधिक नुकसान इन्हें ही उठाना पड़ता है।
केली ने कहा कि प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए विभिन्न देशों के सरकार को कानून निर्माण के साथ ही अधिक जनसंख्या घनत्व वाले बड़े शहरों में बिजली संयंत्रों को बंद करने और लोगों को ईंधन के सस्ते और बेहतर विकल्प उपलब्ध कराने होंगे। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक वायु प्रदूषण की तुलना में कुछ अन्य जोखिम का भी वैश्विक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
रिपोर्ट के अनुसार वायु को पूरी तरह से स्वच्छ बनाने के लिए संगठित प्रयास किये जाने पर बल दिया गया है। गरीब देशों की २९ लाख आबादी आज भी ईंधन के पारंपरिक स्रोतों का प्रयोग कर रही है। इनकी रक्षा के लिए इन्हें ईंधन के स्वच्छ विकल्प देने होंगे।
स्त्रोत : नव भारत