चैत्र कृष्ण पक्ष १४, कलियुग वर्ष ५११५
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लंदन : आसमान में जब पूरा चांद दिखता है, तो सारी रात उसे निहारने का मन करता है। वैसे यदि कोई चांद को नहीं देखना चाहे, तो भी वह आम दिनों की तुलना में गहरी नींद में नहीं सो पाता। पूर्णमासी को लोगों को सपने भी अजीबो-गरीब आते हैं। यह कहना है ब्रिटेन के शोधकर्ता मनोवैज्ञानिक रिचर्ड वाइजमैन का, जिन्होंने एक हजार लोगों पर अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष दिया।
उन्होंने कहा कि कोई अपने आप को सुपर हीरे जैसे बैटमैन, सुपरमैन की तरह समझता है और अपराध से लड़ता है। तो कोई देखता है कि वह पैदल चल रहा है, पूरे दिन ऑफिस मे है या टाइपिंग ही कर रहा है। पिछले साल स्विट्जरलैंड के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के आधार पर बताया था कि पूर्णमासी के दिन लोगों को सोने में अधिक समय लगता है और वे आम दिनों की अपेक्षा २० मिनट कम सोते हैं। इतना ही नहीं इस दौरान वे कम गहरी नींद में सो पाते हैं।
मेलाटोनिन तो वजह नहीं
प्रोफेसर वाइजमैन का कहना है कि इस दौरान नींद लाने वाले हार्मोन मेलाटोनिन का उत्पादन भी बदल जाता है। उनका मानना है कि शायद इसी वजह से नींद आने में खलल पड़ता है।
एक थ्योरी यह भी
एक अजीब सिद्धांत यह है कि हमारा विकास चंद्रमा की लय के अनुसार हुआ है। इसके अनुसार, पूर्णमासी की रात को शिकारियों से बचने के लिए लोग अधिक सतर्क होकर सोते हैं, जो चंद्रमा की अधिक रोशनी का लाभ उठा सकते हैं। हमारे पूर्वज भी पूर्णमासी की रात में डरते थे, इसलिए हमें आज भी अधिक रोशनी में सोने में मुश्किल का सामना करना पड़ता हैं।
सोफे पर सोएं
हालांकि, प्रोफेसर वाइजमैन इस विकास के सिद्धांत वाली बात से सहमत नहीं हैं। मगर, वह यह मानते हैं कि पूर्णमासी की रात को लोगों की नींद प्रभावित होती है। वह सुझाव देते हैं कि जिन लोगों की नींद पूर्णमासी की रात को प्रभावित होती है, उन्हें सोफे पर सोना चाहिए। प्रोफेसर वाइजमैन ने नाइट स्कूल नाम की किताब में अपने निष्कर्ष लिखे हैं।
स्त्रोत : नईदुनिया