औरंगजेबप्रेमी साहित्यिक सदानंद मोरे एवं नेमाडे द्वारा महाराष्ट्र की भूमि से विद्रोह !
मुंबई : हिन्दू जनजागृति समिति के प्रसिद्धिपत्रक में कहा गया है कि इतिहास में क्रूरता के लिए परिचित औरंगजेब के प्रति महाराष्ट्र के साहित्यिक सदानंद मोरे एवं भालचंद्र नेमाडे को बडा प्रेम आ रहा है तथा राज्य के औरंगाबाद जिले का नाम संभाजीनगर करने हेतु उन्होंने विरोध दर्शाया है । मोरे ने औरंगजेब के बंधु दाराशुकोह को धर्मनिरपेक्षता का प्रमाणपत्र अर्पण कर उसका नाम औरंगाबाद को देने का सुझाव दिया है, तो नेमाडे द्वारा प्रथम वहां जलपूर्ति करने के लिए कहा गया है । वास्तव में छत्रपति शिवाजी महाराज के पश्चात जिले को मराठा साम्राज्य के लिए बलिदान करनेवाले छत्रपति संभाजीराजे का नाम दिया जाना एक सम्मान ही है । उनके बलिदान के कारण ही आज नेमाडे एवं मोरे टीके हुए हैं, अन्यथा वे भी कहीं के तो उद्दीन अथवा खान होकर नमाजी बन गए होते ।
समिति के प्रसिद्धिपत्रक में आगे कहा गया है कि,
१. विदेशी आक्रमक मुघल राजाओं द्वारा बलपूर्वक धाराशिव का उस्मानाबाद, नासिक का गुलशनाबाद, प्रयाग का अलाहाबाद तथा भाग्यनगर का हैदराबाद इस प्रकार हिन्दुुस्थान के नगरों का नामकरण कर आक्रमणकारियों की छवि को बनाए रखने का प्रयास किया गया है ।
२.भारत की स्वतंत्रताप्राप्ति के पश्चात कुछ मात्रा में इस छवि को नष्ट करने का प्रयास किया गया; परंतु राजनीतिज्ञों की वोटबैंक के कारण वह पूरी तरह कार्यान्वित नहीं किया गया ।
३.वर्तमान सरकार के कृत्योंका समर्थन करने के स्थान पर ये साहित्यिक मुघल साम्राज्य के चापलूस बन कर उसका विरोध कर रहे हैं एवं महाराष्ट्र के इतिहास की प्रतारणा कर रहे हैं । इस विषय में उनका विरोध होना ही चाहिए !
४.साथ ही उन्हें यह भी बताना चाहिए कि बार-बार तोडफोड की चेतावनी देनेवाले एवं छत्रपति संभाजी महाराज के नाम पर चलनेवाले संगठन अब मौन पकड कर क्यों बैठे हैं ?
५.आक्रमणकारियों की दास्यता में स्वयं को धन्य माननेवाले मोरे को अब उर्दू साहित्य सम्मेलन का अध्यक्षपद स्वीकारने में कोई आपत्ति नहीं । अजमेर को जन्में मुघल का नाम महाराष्ट्र के जिले को देकर वे क्या प्राप्त करना चाहते हैं ?
६. एक बार इस नामपरिवर्तन के लिए कट्टरपंथी औवेसी का विरोध समझ में आ सकता है; परंतु मोरे उनके सुर में सुर मिला रहे हैं, यह दुर्भाग्यपूर्ण है ।
७. आज मराठवाडा में पानी का प्रश्न उपस्थित करनेवाले नेमाडे को क्या ज्ञानपीठ स्वीकारने से पूर्व महाराष्ट्र के किसानों की आत्महत्याएं नहीं दिखाई दी थीं ? उस समय उन्होंने पुरस्कार अस्वीकार करते हुए शासन को इस विषय में क्यों नहीं जताया ?
८. विश्व में इस्लामी राज्य लाकर भविष्य में भारत का खोरासान प्रांत ऐसा नामकरण के साथ भारत का मानचित्र प्रसारित करनेवाली इस्लामिक स्टेट (आइ.एस.आइ.एस.को) को इस प्रकार परामर्श देने में किसी को कोई आपत्ति नहीं है !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात