उडीसा राज्यमें हिंदु संस्कृतिकी अद्भुत विरासत : श्री बिमलेश्वरका झुकनेवाला मंदिर !

चैत्र शुक्लपक्ष ३, कलियुग वर्ष ५११६


उडीसा राज्यमें ऐतिहासिक संबलपुर नगर हीराकुंड धरन एवं संबलपुरी साडियोंके लिए विश्वविख्यात है । इस नगरसे २३ कि.मी. दूरीरपर श्री बिमलेश्वरका मंदिर ‘झुकनेवाला मंदिर’के रूपमें प्रसिद्ध है । इटली देशमें स्थित ‘पिसाका झुलता मनोरा’ देखने हेतु लाखों रुपए व्यय कर अनेक भारतीय वहां जाते हैं; परंतु अपने ही देशका यह आश्चर्य प्रसिद्धिसे अत्यंत दूर है । इसके लिए सेक्युलर (निरपेक्ष) सरकारकी हिंदु धर्मसे शत्रुता एवं भारतीयोंके मनमें स्व-संस्कृतिके संदर्भमें अनास्था कारणभूत है । 

श्री भुवनेश्वर एवं श्री कपिलेश्वर मंदिर

श्री भुवनेश्वर एवं श्री कपिलेश्वर मंदिर

संबलपुरतक यात्रा !

हाल-हीमें हिंदू जनजागृति समितिद्वारा उडीसामें राज्यस्तरीय हिंदु अधिवेशन आयोजित किया गया था । इस अधिवेशनमें संबलपुरसे श्री. शरद शर्मा एवं श्री. देबाशीष नाईक उपस्थित थे । उन्हें समितिका कार्य इतना अच्छा लगा कि उन्होंने संबलपुरमें एक व्याख्यान आयोजित करनेकीr इच्छा व्यक्त की । इसके अनुसार १५ मार्चको व्याख्यानके लिए हम संबलपुरमें सवेरे ५.३० बजे पहुंचे । वहां पहुंचनेपर उन्होंने कहा, ‘आपको यहांका एक अद्भुत आश्चर्य दिखाना है । आप त्वरित सिद्ध हो जाएं’ । हमने सब सिद्धता की एवं सवेरे ७.३० बजे हमें साथमें लेकर वे उनके चौपहिये वाहनसे निकले । वहांसे २३ कि.मी. दूरीपर हुमा गांवमें हम एक मंदिरके प्रांगणमें पहुंचे । वहां उन्होंने पूर्वसे ही स्थानीय कार्यकर्ताओंको बताकर हमारे स्वागतकी सिद्धता कर रखी थी । उन्होंने अत्यधिक प्रेम एवं आस्थाके साथ हमारा स्वागत किया ।

श्री बिमलेश्वरका झुकनेवाला मंदिर

श्री बिमलेश्वरका मंदिर

श्री बिमलेश्वरका मंदिर

बाहरसे सदाके मंदिर प्रांगणके समान दिखनेवाली वास्तुमें हमने प्रवेश करनेपर हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उस प्रांगणके श्री बिमलेश्वरके मुख्य मंदिरके साथ अन्य सभी छोटे मंदिर, दीपमाला तथा मंदिरकी सुरक्षा दीवार सबकुछ विशिष्ट कोणमें झुके हुए दिखाई दिए ! इस विषयमें पूछनेपर उन्होंने कहा कि यही इस मंदिरकी विशेषता है । मंंदिरका निर्माणकार्य संपूर्ण रुपसे पथरीला होते हुए भी वह अपनेआप झुक रहा है । 

महानदीमें दैवी मछलियां 

महानदीमें दैवी मछलियां

महानदीमें दैवी मछलियां

उन्हें मंदिरका इतिहास पूछनेपर उन्होंने कहा, ‘हम प्रथम मंदिरकी पिछली ओर जाकर एक और आश्चर्य देखेंगे, पश्चात इतिहास बताते हैं ।’ इसके अनुसार मंदिरकी पिछली ओर ३०० मीटर दूरीपर एक बडा तट एवं नामके समान ही रहनेवाली महानदीका प्रवाह दिखाई दिया । तटसे उतरकर नदीके पात्रके समीप जानेपर ताम्र एवं तमाकूके रंगकी अलग ही प्रकारकी दैवी प्रतीत होनेवाली मछलियां भारी संख्यामें वहां दिखाई दी । उन्होंने कहा कि इन मछलियोंको भगवानकी मछलियोंके नामसे जाना जाता है तथा कोई भी उन्हें पकडने अथवा मारनेका प्रयास नहीं करता ।

बरसातकी कालावधिमें जिस समय नदीका प्रवाह बडा होता है, उस समय ये मछलियां प्रवाहके साथ न जाकर पानीके नीचेसे मंदिरतक एक गुफा है, उसमें जाकर रहती हैं तथा कार्तिक माह समाप्त होनेके पश्चात वे पुनः दिखाई देती हैं । इन मछलियोंको प्रसादके रूपमें लड्डू खिलाए जाते हैं । आपने पानीमें हाथ डालकर उसमें लड्डू रखा, तो मछलियां आकर आपके हाथसे लड्डू लेकर जाती हैं !

मंदिरका प्राचीन इतिहास

हम तटसे पुनः मंदिरकी ओर जाने लगे । वहां मंदिरका इतिहास प्रसिद्ध करनेवाले एक शिक्षक श्री. क्षीरूद्र प्रधान मंदिरका इतिहास बताने लगे । श्री बिमलेश्वरका वर्तमान समयका मंदिर संबलपुरके चौहान वंशके ५ वें राजे बलियारसिंह देवने वर्ष १६७० में बांधा । एक गोमाता समूहसे बाहर आकर महानदीका पात्र तैरते हुए पार कर एक विशेष स्थानपर दुधसे अभिषेक किया करती थी । एक चरवाहेके ध्यानमें आनेपर उसने उस स्थानका पता लगाया तो वहां श्री बिमलेश्वरका दर्शन हुआ । वह नियमित रूपसे वहां पूजन अर्चन करने लगा । एक रात्री उसे ऐसा दृष्टान्त हुआ कि वहांका राजा बलराम देव उसके दर्शनके लिए आया है । तदुपरांत यह वार्ता वहांके राजा बलराम देवको समझी, तो उसने पूरे राजघरानेके साथ वहां आकर दर्शन एवं पूजा की । राजाको नदीके किनारेका निसर्ग-परिसर बहुत अच्छा लगा । इसलिए उसने वहां एक छोटासा मंदिर बांधा । आगे इसी वंशके बलियारसिंह देव नामक राजाने आजका मंदिर बांधा ।

कुछ इतिहासकारोंके मतके अनुसार राजा अनंगभीम देवने मुख्य पथरीले मंदिरका निर्माणकार्य किया । मंदिरका निर्माणकार्य पूरा होनेको आया, तो एकाएक मंदिर वायव्य दिशामें झुक गया । सभीको इस बातका बहुत आश्चर्य प्रतीत हुआ । राजाने निर्माणकार्य पुनः करनेका विचार किया, तो उसे श्री बिमलेश्वरने स्वप्नमें दृष्टांत देकर सूचित किया, ‘मैं इस झुके मंदिरमें ही रहना चाहता हूं ।’ अतः यह मंदिर आज भी वैसी ही झुकी स्थितिमें खडा है ।

श्री बिमलेश्वरका पाताललिंग

श्री बिमलेश्वर पाताल लिंग

श्री बिमलेश्वर पाताल लिंग

श्री बिमलेश्वरका शिवलिंग पाताललिंगके रूपमें जाना जाता है । इस शिवलिंगको उपरकी ओर पिंड नहीं है, बलि्क मध्यभागमें बडी रिक्ती है । इस रिक्तीमें ५ फूटपर पानी है, जो पूरा वर्ष इसी स्थितिमें रहता है । नदीका पात्र पिंडसे न्यूनतम २०-२५ फूट नीचे है; परंतु इस पानीके स्तरका यहांपर कोई परिणाम नहीं होता । मंदिरके पुजारी शिवलिंगकी रिक्तीमेंका पानी निकालकर प्रसादके रूपमें प्राशन करनेके लिए देते हैं ।

बुद्धिवादियाेंको अनुत्तरित करनेवाला मंदिर

इस मंदिरके संदर्भमें एक इतिहासकार स्व. शिवप्रसाद दासने अपना मत प्रस्तुत करते हुए कहा कि महानदीके प्रचंड प्रवाहके परिणामके कारण यह मंदिर झुक गया है । कुछ कालावधिके पश्चात उन्होंने कहा कि वहांकी मिट्टी सदोष होनेसे मंदिर झुक गया है; परंतु इस संदर्भमें थोडासा विचार किया, तो इस दावेकी निरर्थकता ध्यानमें आएगी ।

१. यदि सदोष मिट्टीके कारण मंदिरका निर्माणकार्य झुक गया होगा, तो मंदिरके समीपके अन्य निर्माण कार्य एवं घर भी झुके हुए रहना चाहिए थे ।

२. महानदीके प्रवाहके कारण यदि यह किनारेपरका मंदिर झुक गया होगा, तो नदीके किनारेपर स्थित अन्य अन्य मंदिर भी  झुकी स्थितिमें रहने चाहिए थे ।

इस विषयमें प्रा. पंडाका कहना है कि मंदिरके शिल्पकाराेंने गुरुत्वाकर्षणका भार हलका कर मंदिरका भार न्यून करने हेतु ऐसी रचना की होगी अथवा कुछ सदोष पद्धतिके निर्माणकार्यके कारण ही मंदिर झुक गया होगा; परंतु यह कहते समय ही वे इस बातको स्वीकार करते हैं कि उडीसाके शिल्पकलाका यह अद्भुत नमूना आजके आधुनिक विज्ञानके तंत्रज्ञोंके लिए एक चुनौती ही है ।

ईश्वरद्वारा दिए गए इस अवसरसे सीखने मिला कि वास्तवमें बुद्धि अथवा तर्कसे यह समझ लेना कठिन है । इसके लिए यदि श्री बिमलेश्वरपर श्रद्धा है, तो उससे ही सिखनेको मिलेगा । 

– श्री. रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिंदू जनजागृति समिति

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