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हिंदु राष्ट्रकी स्थापना हेतु संतोेंके संगठनकी आवश्यकता एवं उसके लिए किए जानेवाले प्रयत्न : पू. स

सारणी


पू. सुनील चिंचोलकर, अध्यक्ष, समर्थ व्यासपीठ, पुणे.

पू. सुनील चिंचोलकर, अध्यक्ष, समर्थ व्यासपीठ, पुणे.

पू. सुनील चिंचोलकर

वक्ता : पू. सुनील चिंचोलकर, अध्यक्ष, समर्थ व्यासपीठ, पुणे.

आगामी हिंदु राष्ट्रकी ध्वनि सबसे पहले जिन्हें सुनाई दी, वे राष्ट्रसंत प.पू. डॉ. जयंत बाळाजी आठवले महोदय, इस सभागृहको शोभायमान करनेवाले अविस्मरणीय संतगण, मंचको सुशोभित करनेवाले आदरणीय विद्वतजन तथा देश, देव और धर्मके लिए अपना जीवन न्योच्छावर करने यहां एकत्रित हुर्ईं मेरी बहनो, माताओ और भाईयो, गत ३६ वर्षोंसे विविध आध्यात्मिक कार्योंमें मेरा सहभाग रहा है ।

 

१. सनातनके साधकोेंने राजनीतिक कार्य करते हुए अपनी अंतर्मुखता नहीं खोई

        मैंने अनेक आध्यात्मिक संगठन देखे हैं; परंतु गत ५ दिनोंसे यहां जो संस्मरणीय वातावरण निर्मित हुआ है, इसके लिए हम सनातन संस्थाके प्रति कृतज्ञ हैं । यहां सनातन संस्थाके जो साधक दिखाई देते हैं । चाहे वे पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी हों, डॉ. दुर्गेश सामंतजी हों, रमेश शिंदेजी हों अथवा विनयजी पानवळकरजी हों । ये साधक देशहितका कार्य कर रहे हैं, उनका राजनीतिक कार्यमें भी सहभाग है; परंतु इन लोगोंने अपनी अंतर्मुखता नहीं छोडी ।

 

२. अध्यात्मनिष्ठा, अंतर्मुखता एवं समाजनिष्ठ बहिर्मुखताका

सुवर्णसंगम रहनेवाले सनातन संस्थाके सैैंकडोें साधक प.पू. डॉक्टरजी सिद्ध करना !

        इन कार्यकर्ताओंमें अध्यात्मनिष्ठा, अंतर्मुखता और समाजनिष्ठ बहिर्मुखताका स्वर्णसंगम दिखाई देता है । अन्यथा कई बार ऐसा दिखाई देता है कि साधक इस राष्ट्रकार्यके मायाजालमें ऐसा फंस जाता है कि, अपनी अंतर्मुखता खो देता है । अपनी साधकवृत्तिको निरंतर बनाए रखनेवाले सैंकडो साधक प.पू. डॉक्टरजीने सिद्ध किए हैं ।

 

३. छत्रपति शिवाजी महाराजके क्षात्रतेजका स्मरण करानेवाली कथा

३ अ. गोवाके पुर्तगाली गवर्नरद्वारा गोवामें रहनेके

इच्छुक लोगोेंको ईसाई बनना पडेगा, ऐसा अध्यादेश जारी करना

        जब भी मैं गोवामें आता हूं, मुझे छ. शिवाजी महाराजके जीवनकी घटनाओंका स्मरण होता है । जब शिवाजी महाराज गोवामें आए थे, तब एक पुर्तगाली अधिकारी गोवाका मुख्य गवर्नर था । यहां आते ही शिवाजी महाराजको यह ज्ञात हुआ कि इस पुर्तगाली गवर्नरने एक अध्यादेश जारी किया है । इस अध्यादेशके अनुसार जो लोग गोवामें रहनेके इच्छुक हैैं, उन्हें ईसाई बनना पडेगा । ईसाई बननेपर ही वे गोवामें भूमि खरीद सकेंगे, अपना व्यवसाय कर सकेंगे । जो लोग ईसाई नहीं बनेंगे, वे न तो गोवामें भूमि खरीद पाएंगे और न ही व्यवसाय कर पाएंगे ।

३ आ. एक माहमें लगभग २०० हिंदू परिवारोेंद्वारा ईसाई पंथ स्वीकारना 

        उस समय कुछ हिंदू ऐसे थे जिनके लिए धर्मसे अधिक भूमि अथवा पैसा महत्त्वपूर्ण था, पैसोंके लालचमें उन्होंने हिंदु धर्मका त्याग कर ईसाई पंथ स्वीकार लिया । एक माहमें लगभग २०० परिवारोंने ईसाई पंथ स्वीकारा । इन लोगोंको बाप्तिस्मा देनेके लिए गवर्नरने चार पाद्रियोंको नियुक्त किया था ।

३ इ. शिवाजी महाराजको वृत्तांत ज्ञात होनेपर

चार पाद्रियोेंको अपने सामने उपस्थित रहनेकी आज्ञा देना

        गोवामें प्रवेश करते ही शिवाजी महाराजको यह सब ज्ञात हुआ । शिवाजी महाराजने उन चार पाद्रियोंको अपने सम्मुख लानेके लिए कहा । ऐसे कामोंमें महाराजके लोग बहुत कुशल थे । उन्होंने उन चार पाद्रियोंको शिवाजी महाराजके सम्मुख उपस्थित किया ।

३ ई. हिंदु धर्म अपनानेसे मना करनेपर

शिवाजी महाराजद्वारा तलवारसे ४ पाद्रियोेंकी गर्दन उडाना

        महाराजने उन पाद्रियोंको आदेश दिया, आप हिंदु धर्म अपनाओ, आप ईसाई नहीं रह सकते । तो उन पाद्रियोंने हिंदु बननेसे मना कर दिया । महाराजने पुन: कहा, मैं बहुत व्यस्त व्यक्ति हूं, मेरे पास समय नहीं है । शीघ्र निर्णय लो । इसपर पाद्रियोंने कहा, हम हिंदु धर्म नहीं अपनाएंगे । तब शिवाजी महाराजने अपनी तलवारसे उन चारों पाद्रियोंकी गर्दन उडा दी ।

३ उ. शिवाजी महाराजद्वारा सोनेकी थालमें चार

पाद्रियोेंके सिर रख, उन्हें वस्त्रसे ढंककर गवर्नरके पास भिजवाना

        महाराजने एक सोनेकी थालमें उन चारोंके सिर रखे, उनपर ऊपरसे एक अच्छा वस्त्र ढंक दिया और अपने वकीलको वह थाल सौंपकर आदेश दिया, तुम गवर्नरसे मिलकर हमारा यह उपहार उनतक पहुंचाओ ।

३ ऊ. पाद्रियोेंके कटे सिर देखकर भयभीत गवर्नरको शिवाजी

महाराजके क्रोधके विषयमें ज्ञात होनेपर, अध्यादेश वापस लेनेका वचन देना

        शिवाजी महाराजकी ओरसे उनका वकील आया है यह सुनते ही गवर्नरने उन्हें मिलनेके लिए बुलाया । उन्होंने भीतर जाकर वह थाल गवर्नरके सम्मुख रख दिया । जैसे ही उससे वस्त्र हटाया गया, उसमें रखे पाद्रियोंके कटे सिर देखकर गवर्नर भयभीत हो गए । उन्होंने पूछा, क्या शिवाजी महाराज क्रोधित हैैं ? तो वकीलने कहा, आपने जो अध्यादेश जारी किया है, उससे महाराजजी बहुत क्रोधित हैं । इसपर गवर्नरने कहा, हम अपना अध्यादेश वापस लेते हैं, महाराजसे कहिए वे क्रोधित न हों ।

३ ए. हिंदु समाज सहिष्णु तो है ही; साथ ही असहिष्णु भी है !

        हिंदु राष्ट्र क्या है ? हिंदु राष्ट्रका अर्थ है जैसेको तैसा ! हम हिंदु सहिष्णु अवश्य हैं; परंतु हम असहिष्णु अधिक हैं । हम सब सह सकते हैं; परंतु हम सबको नष्ट भी कर सकते हैं । छत्रपति शिवाजी महाराजने हमें यह सिखाया है ।

३ ऐ. औरंगजेबने कर्नाटकके सागर नामक गांवमें भगवान शिवका मंदिर

नष्ट कर वहां मस्जिद बनानेकी बात सुनकर शिवाजी महाराजका तत्काल मस्जिद गिराना

        गोवासे शिवाजी महाराज कर्नाटक गए । वहांके शिवमोग्गा जनपथपर सागर नामक एक छोटासा गांव है, वहां महाराज पहुंचे । उन्हें ज्ञात हुआ कि वहां शिवजीका एक मंदिर था, जिसको औरंगजेबने नष्ट कर वहांपर एक मस्जिद बनवाई है । शिवाजी महाराजने तुरंत उस मस्जिदको गिराकर वहां पुन: शिवजीका मंदिर बनवाया । इस प्रकारसे शिवाजी महाराजने मंदिरोेंके स्थानपर बनी ७-८ मस्जिदें गिरार्ईं । आज यदि शिवाजी महाराज होते, तो काशी, मथुरा, वृंदावन और अयोध्याकी सभी मस्जिदोंको गिराकर वहांपर भगवान विश्‍वनाथ, भगवान श्रीकृष्ण, प्रभु श्रीरामचंद्रके मंदिर बनवाते । जिस हिंदु राष्ट्रकी चर्चा हम गत पांच वर्षोंसे सुन रहे हैं, शिवाजी महाराजने उस हिंदु राष्ट्रका स्वरूप ही हमारे सम्मुख रख दिया है ।

 

४. साधु-संत एवं राजाओेंकी कार्यकक्षा

४ अ. लोगोेंकी वृत्तिमें परिवर्तन कर उन्हें मोक्षतक पहुंचाना साधु-संतोेंका कार्य !

        एक महत्त्वपूर्ण और मूलभूत प्रश्‍न यह है कि, ये जो साधु-संत हैैं, उनका राजनीतिक आंदोलनमें सहभागी होना उचित है अथवा अनुचित ? हमारे धर्मने चार प्रकारके पुरुषार्थोंका पुरस्कार किया है । वे हैं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । अब इनमेंसे धर्म और मोक्ष यह जो पुरुषार्थ है, इनके संबंधमें लोगोंको उपदेश देना, उनकी वृत्तिमें परिवर्तन करना और उन्हें मुक्तितक पहुंचाना यह साधु-संतोंकी कार्यकक्षामें आता है ।

४ आ. अर्थ और काम इन पुरुषार्र्थोेंको प्राप्त करते समय

नैतिक दृष्टिसे पतित मनुष्यको दंडित करना राजाका कर्तव्य !

        राजाकी कार्यकक्षा है अर्थ और काम । कहीं कोई भ्रष्टाचार अथवा अनैतिक मार्गसे तो धनार्जन नहीं कर रहा ? कोई महिलाओंपर अत्याचार तो नहीं कर रहा ? अर्थ और काम इन पुरुषार्थोेंको प्राप्त करते समय मनुष्य नैतिक दृष्टिसे पतित हो सकता है और उसे दंडित करना राजाका कर्तव्य है । साधु-संत केवल उपदेश देंगे कि परस्त्रीको मातासमान देखें अथवा नैतिक मार्गोंसे ही धन अर्जित करे; परंतु यदि कोई मनुष्य इन विषयोंमें चूके तो उसे दंडित करना राजाकी कार्यकक्षामें आता है । परंतु यदि राजा ही भ्रष्ट हो जाए तो ? यदि राजा ही अनैतिक बन जाए तो ?

 

५. भ्रष्टाचारी और अनैतिक शासक !

५ अ. वासनांध और विध्वंसक मुगल !

        जब इस देशमें मुगलोंका शासन था तब कितनी स्त्रियोंपर अत्याचार हुए, बलात्कार हुए, कितने मंदिरोंको तोडा गया, कितनी मूर्तियोंका भंजन किया गया, इसकी हम गणना भी नहीं कर सकते ।

५ आ. भ्रष्टाचार करनेकी स्पर्धामें भारतको निश्‍चितरूपसे स्वर्णपदक मिलेगा !

        आज भी हम देखते हैं कि शासक भ्रष्टाचारके उच्चतम शिखरपर पहुंच गए हैं । जब कोई खेल प्रतियोगिता होती है तो हम पत्रिकाओंमें पढते हैं कि भारतको एक भी स्वर्णपदक नहीं मिला; परंतु यदि भ्रष्टाचारकी प्रतियोगिता रखी गई, तो उसमें भारतको निश्‍चितरूपसे स्वर्णपदक मिलेगा । महिलाओंके विषयमें आज हम देखते हैं कि उनपर कितने अत्याचार हो रहे हैं, बलात्कारकी कितनी घटनाएं हो रही हैं !

५ इ.    विधानसभा सत्रमें चल-दूरभाषपर

अश्‍लील लघु-चलचित्र देखनेवाले भाजपाके मंत्री एवं विधायक !

        आपने सनातन प्रभातमें पढा होगा कि आज भाजपाका अधिवेशन हो रहा है । भाजपाका एक सांसद नौकामें एक युवतीका नृत्य देख रहा था । कर्नाटकमें भाजपाके मंत्री और विधायक विधानसभा सत्रके समय चल-दूरभाषपर अश्‍लील लघु-चलचित्र देख रहे थे ।

५ ई.     लुटेरे, भ्रष्टाचारी एवं अपराधियोेंसे भरी राष्ट्रवादी कांग्रेस !

        हमारे महाराष्ट्रमें राष्ट्रवादी कांग्रेस नामक एक राजनीतिक दल है । इस दलमें सभी लुटेरे, भ्रष्टाचारी और अपराधी भरे हुए हैं । उन्होंने अनेक लोगोंकी हत्याएं की हैं, अनेकोंने महिलाओंपर बलात्कार किए हैं । ऐसी स्थितिमें यदि इन समस्याओंपर यदि साधु-संत ध्यान न दें, तो और कौन ध्यान देगा ? राजाको उसके कर्तव्योंके पालनके लिए प्रेरित करना साधु-संतोंका कार्य है ।

 

६. प्राचीन कालमें अंतिम सत्ता धर्मके हाथोेंमें रहना

६ अ. राज्याभिषेकके समय संन्यासीका राजाके

मस्तकसे दंड लगाकर धर्म राजाको दंडित कर सकता है, ऐसा कहना

        प्राचीन कालमें जब राजाका राज्याभिषेक होता था, तब एक विधि करते थे । सिंहासनपर बैठते समय राजा कहता, अदण्ड्योऽहम् । अदण्ड्योऽहम् । अदण्ड्योऽहम् ।  अर्थात मुझे कोई भी दंड नहीं दे सकता । उस समय एक संन्यासी हाथमें एक स्वर्णका दंड लेकर वहां आते। उस दंडको तीन बार राजाके मस्तिष्कसे छुआकर वे कहते, धर्मदण्ड्योऽसि । धर्मदण्ड्योऽसि । धर्मदण्ड्योऽसि । अर्थ : धर्म तुम्हें दंडित कर सकता है । न राजा अंतिम सत्ता है, न प्रधानमंत्री और न ही राष्ट्रपति । अंतिम सत्ता तो नीतिमान लोगोंके हाथमें है ।

६ आ. प्राचीन कालमें ऋषि-मुनियोेंकी सत्ता अंतिम होनेके कारण

रावणके दृष्कृत्य रोकनेके लिए विश्‍वामित्र ऋषिद्वारा श्रीरामको भेजनेके लिए कहना

        प्राचीन कालमें ऋषियोंकी सत्ता अंतिम थी । तनिक रामायणका स्मरण कीजिए । राजा दशरथको ज्ञात था कि रावण उस समयका आतंकवादी था । रावणके चौदह सहस्र लोग और खर, दूषण, त्रिशिर इन तीन मंत्रियोंके साथ पंचवटीतक अर्थात वर्तमानके महाराष्ट्रतक पहुंचे थे । आज जहां कानपुर है वहां विश्‍वामित्रका सीताश्रम था । इस सीताश्रममें रावणके मामा मारिच और सुबाहू पहुंचे थे । विश्‍वामित्रको दशरथकी राजसभामें क्यों आना पडा ? रावणके सभी कृत्य दशरथको ज्ञात थे; परंतु वे उनकी अनदेखी कर रहे थे । इसलिए विश्‍वामित्रको राजसभामें आकर उनके कान पकडने पडे । विश्‍वामित्रको यह ज्ञात था कि रावणका नाम सुनते ही दशरथ भयभीत हो जाएंगे; परंतु श्री रामचंद्र भयभीत नहीं होंगे । इसलिए उन्होंने कहा, आप मेरे साथ न आओ, श्रीरामको भेजो । यदि हमें कुछ नवनिर्माण करना है, तो युवकोंको साथ लेना होगा ।

६ इ. दशरथद्वारा प्रभु श्रीरामचंद्रको भेजनेसे मना करनेपर विश्‍वामित्र ऋषिका वसिष्ठ ऋषिके पास जाना 

        जब दशरथने प्रभु रामचंद्रको विश्‍वामित्रके साथ भेजनेके लिए असहमति दर्शाई, तब विश्‍वामित्र उस समयके उच्चतम न्यायालय अर्थात वसिष्ठ मुनिके पास गए । जब वसिष्ठ मुनिने महाराज दशरथको राम और लक्ष्मणको विश्‍वामित्रके साथ भेजनेका आदेश दिया, तब दशरथको विवश होकर राम-लक्ष्मणको भेजना पडा । तो यहां किसकी सत्ता प्रमुख है ?

६ ई. राजा ऋषियोेंके अधीन होनेसे आदर्श राज्य बनना

        जो राजा ऋषियोेंके अधीन है, उसे हम रामराज्य कहते हैं । इसमें राम वसिष्ठ ऋषिसे एकनिष्ठ हैैं । भगवान श्रीकृष्ण मुनी व्यासजी और सांदीपनी ऋषिसे एकनिष्ठ हैं, शिवाजी महाराज समर्थ रामदास स्वामी और संत तुकाराम महाराजसे एकनिष्ठ थे ।

७. साधु-संतोेंके राजनीतिमें कार्यरत होनेकी आवश्यकता

७ अ. राजापर धर्मसत्ताका अंकुश आवश्यक और सर्वत्र

देशद्रोह बढ जानेके कारण साधु-संत कार्यरत होनेपर विवश

        जब हम धर्मकी बात करते हैं तो हमारी संकल्पना इस प्रकारकी है कि राजाकी सत्ता अंतिम न हो, राजापर धर्मसत्ताका अंकुश होना चाहिए । हम आज देखते हैं कि सभी स्थानोंपर भ्रष्टाचार,अप्रामाणिकता (बेईमानी), देशद्रोह बढ गया है । ऐसी स्थितिमें यदि इसके विरुद्ध साधु-संत कार्यरत नहीं होंगे तो और कौन होगा ?

७ आ. शासक देशघात कर रहे हैं, इसलिए साधु-संतोंका

राजनीतिमें सहभागी होकर राजाको दंडनीति सिखाना आवश्यक

        मुझे एक ऊर्दू शेरका स्मरण हो आता है । बस एक ही उल्लू काफी था बरबाद गुलिस्तां करनेको । हर शाखपे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा ? डॉ. इक्बाल कहते हैं, हिंदुस्थान गुलिस्तां है और हम उसकी बुलबुले हैं । आप लोग इसकी बुलबुले नहीं हैं, आप इसपर बैठे उल्लू हैं । हर शाखपे उल्लू बैठा है । एक टहनीपर मुलायमसिंह यादव बैठे हैं, एक टहनीपर लालूप्रसाद यादव बैठे हैं, एक टहनीपर अखिलेश यादव बैठे हैं, ममता बैनर्जी बैठी हैं, दिग्विजय सिंह बैठे हैं, सोनिया गांधी बैठी हैं । ये सब उल्लू इस देशका क्या करेंगे ? ऐसी स्थितिमें साधु-संतोंका यह कर्तव्य है कि वे राजनीतिमें उतरें और राजाको दंडनीति सिखाएं ।

७ इ. हिंदुस्थान संतोेंकी भूमि होनेके कारण वह कांग्रेसकी व्यक्तिगत संपत्ति न होना

        जब रामदेवबाबा जैसे साधुपुरुष, प.पू. डॉ. जयंत आठवले जैसे संत इस कार्यमें आते हैं तब ये कांग्रेसवाले पूछते हैं, मेरे अंगनेमें तुम्हारा क्या काम है ?  हम उनको यह बताना चाहते हैं कि यह हिंदुस्थान आपके पिताजीकी निजी संपत्ति नहीं है । यह श्रीरामकी भूमि है, यह श्रीकृष्णकी भूमि है, यह शिवाजीकी, चाणक्यकी, आर्यभट्टकी, संत ज्ञानेश्‍वरसे लेकर तुकाराम महाराजजी जैसे वारकरी संप्रदायके संतोंकी भूमि है । त्याग और बलिदानके आधारपर इस भूमिका निर्माण हुआ है ।

७ ई. संतोेंकी वाणी और तप एकत्र होनेपर सभीको हिंदु राष्ट्रकी आहट सुनाई देगी !

        इस भूमिमें यदि राजा इस प्रकारसे भ्रष्ट होता है, चरित्रहीन होता है, नीतिहीन होता है, तो सभी संतोंका एकत्रित होना बहुत आवश्यक है । मैं तो यह कहूंगा कि जब अगला अधिवेशन होगा तब उस अधिवेशनमें चारों शंकराचार्यजी, आसारामबापूजी, पू. मुरारीबापूजी, पू. अनिरुद्धबापू, श्री श्री श्री रविशंकरजी, पू. नरेंद्र महाराजजी, पू. सुधांशु महाराजजी, पू. रामदेवबाबा, आचार्य किशोरजी व्यास अर्थात गोविंददेव गिरिजी जैसे सभी संतोंको आना चाहिए । और जब चुनावोंकी घोषणा की जाएगी, तब चुनाव घोषित होते ही दो-तीन माहतक सभी संतोंको अपने-अपने नियोजित कार्यक्रमोंको स्थगित कर सभी स्थानोंपर प्रचारसभाएं लेकर उसमें ऐसा प्रचार करना चाहिए,कांग्रेस नामक पापको इस भूमिसे नष्ट करो । इन संतोंके लाखों अनुयायी हैं । यदि इन संतोंकी वाणी और इन संतोंका तप एकत्रित होकर एक संगठन बन जाए, तो हिंदु राष्ट्रकी आहट जो प.पू. जयंत आठवलेजीको सुनाई दी, वह आहट आपको और हम सभीको सुनाई देगी । इस हिंदु राष्ट्रके आगमनके लिए हम सब उत्सुक हैं ।
भगवान श्रीकृष्णके चरणोंमें यही प्रार्थना है कि हमारे जीवन-कालमें हमारी दृष्टिके सम्मुख हम सबको हिंदु राष्ट्र देखनेका अवसर प्राप्त हो । इतना कहकर मैं अपनी वाणीको विराम देता हूं ।

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