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आजाद मैदान दंगा प्रकरणके विषयमें याचिका

चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी, कलियुग वर्ष ५११६

मुंबई उच्च न्यायालयद्वारा धर्मांधोंका समर्थन करने हेतु समय नष्ट करनेवाली कांग्रेस सरकारसे मुंहतोड प्रश्न !

 * क्या आप असहाय हो अथवा कहीं ऐसा तो नहीं कि आपको कार्यवाही करना ही नहीं है ?

मुंबई : ११ अगस्त २०१२ को मुंबईके आजाद मैदानपर बडा दंगा हुआ था, जिसमें पुलिस, महिला पुलिस तथा पत्रकारके साथ साधारण जनताके साथ भी मारपीट हुई थी । इस प्रकरणमें देशभक्त पत्रकार संगठनके सदस्योंकी ओरसे प्रविष्ट याचिकापर ३ अप्रैलको मुंबई उच्च न्यायालयके न्यायाधिश नरेश पाटिल एवं न्यायमूर्ति ठिपसेके समक्ष सुनवाई हुई । इस अवसरपर पिछले दिनांकको न्यायालयद्वारा सरकारसे मांग की गई जानकारी न्यायालयके समक्ष प्रस्तुत नहीं की गई । सरकारद्वारा कहा गया कि चुनावोंके कारण हम यह जानकारी नहीं दे सकते ।

इसपर उद्विग्न होकर न्यायालयने सरकारसे ‘’क्या इसलिए न्यायालयोंद्वारा कार्यको रोका जाए ? इस दंगेके पश्चात अब भी आपकी कार्यवाही समाप्त नहीं हुई । क्या आप असहाय हैं ? कहीं ऐसा तो नहीं कि आप  कार्यवाही करना ही नहीं चाहते ? ऐसा पूछते हुए सरकारको दो सप्ताहके अंदर जानकारी प्रस्तुत करनेके निर्देश दिए । (पिछले दिनांकको भी न्यायालयद्वारा राज्यसरकारको फटकारा गया था । इससे ध्यानमें आता है कि सरकार धर्मांध मुसलमानोंपर कार्यवाही न होनेहेतु यथासंभव सभी प्रयास कर रही है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )

याचिकाकर्ताओंकी ओरसे हिंदु विधिज्ञ परिषदके अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र  इचलकरंजीकरने न्यायालयके समक्ष अपनी बाजू प्रस्तुत करते हुए कहा कि सरकार रजा अकादमीसमान संगठनोंको इस कार्यवाहीसे अलग कर रही है । सरकारद्वारा निकाली गई हानिपूर्तिकी २ करोड  ७५ लाख रुपयोंकी राशि भी अयोग्य है, जिसमें ७६ पुलिसकर्मियों एवं पत्रकारोंके साथ की गई मारपीटके संदर्भमें हानिपूर्ति नहीं की गई। महिला पुलिसकर्मियोंका शीलभंग किया गया । इस संदर्भमें भी कोई पूर्ति नहीं की गई । सरकार समय निकालनेकी भूमिका अपनाकर दंगेखोरोंका समर्थन कर रही है । जिस समय दंगा होता है, उस समय दगेखोरोंको भडकानेवाले लोगोंका अन्वेषण कर उनपर कार्यवाही करनेमें  सुनियोजित रूपसे टालमटोल की जाती है ।  

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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