चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी, कलियुग वर्ष ५११६
आरक्षण देनेका भूत एक बार बोतलसे बाहर निकाला, तो वह हवा लगते ही . . . ???
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आंध्रप्रदेशके तत्कालीन कांग्रेस प्रशासनने आगे-पीछे कोई भी विचार किए बिना केवल मतोंकी चापलूसी हेतु मुसलमानोंको आरक्षण देनेकी योजना बनायी थी । साप्ताहिक `विवेक’ने वर्ष २००७ में कांग्रेसकी इस आत्मघाती नीतिपर प्रकाश डालनेवाला लेख २० वर्ष पूर्व प्रसिद्ध किया था । हमारे पाठकों हेतु वह लेख हम यहां पुन: प्रसिद्ध कर रहे हैं ।
आंध्रप्रदेशमें कांग्रेसद्वारा मुसलमानोंको ८० प्रतिशत आरक्षण देनेका षडयंत्र !
प्रधानमंत्रीने इस देशकी साधनसंपत्तिपर प्रथम अधिकार मुसलमानोंका है, ऐसी प्रकट घोषणा की । अलग-अलग राज्यप्रशासन भी इसी नीतिका अनुकरण कर रहे हैं । उसमें आंध्रप्रदेश स्थित कांग्रेस प्रशासनने लगभग ८० प्रतिशत मुसलमानोंको पिछडे वर्गका ठहराकर उन्हें आरक्षण देनेका षडयंत्र रचा !
आरक्षणके चिंतन हेतु समिति स्थापित !
पिछडेवर्गके मुसलमानोंको आरक्षणका लाभ उठानेमें सुविधा हो, इस हेतु पारंपारिक व्यवसायके आधारपर मुसलमानोंमें अंतर्भूत पिछडेवर्गीय ढूंढकर उनका ब्यौरा सिद्ध करना निश्चित किया । यह ब्यौरा सिद्ध करने हेतु प्रशासनने सामाजिक रचनाके विशेष चिंतक पी.एस. कृष्णन नामक निवृत्त सनदी अधिकारीकी नियुक्ति की ।
केवल १५ सहस्र मुसलमान आरक्षण हेतु पात्र होते हुए लाखों मुसलमानोंको आरक्षण देने चला देशद्रोही कांग्रेस प्रशासन !
जिन्हें आरक्षण दे सकते हैं, ऐसे पिछडेवर्ग मुसलमानोंके दो ही गुट प्रशासनके हाथ लगे । उनमेंसे एक था दुधेकुला (पिंजारी) तथा दूसरा था मेहतर (स्वच्छता कामगार) । आंध्रप्रदेश स्थित मुसलमानोंकी लोकसंख्या ९.२ प्रतिशत, अर्थात लगभग १ कोटि है । प्रशासनके हाथ लगे इन २ समाजगुटोंकी लोकसंख्या इकट्ठा की, तो १५,००० से ऊपर जाना कठिन था । अर्थात सागरमें पोस्तेके दानेसमान था । ऐसा होनेपर अल्पसंख्यकोंके मतोंमें बढोतरी नहीं हो सकती, प्रशासनको भी इसकी स्पष्ट कल्पना थी । अत: उन्होंने ८० प्रतिशत मुसलमान समाजको सम्मिलित करनेका बहुत प्रयास किया ।
मुसलमानोंका बढता दबाव !
आश्वासनपूर्ति न होनेसे मुसलमान समाजका असंतोष बढ रहा था । उसीमें जमाते इस्लामी संगठनने `द मूवमेंट फॉर पीस एंड जस्टिस’ नाम धारण कर भाग्यनगरमें ५०,००० मुसलमानोंकी महारैली आयोजित कर मुसलमानोंको १२ प्रतिशत आरक्षण देनेकी मांग की । चुनाव सिरपर है । आश्वासनपूर्ति न कर मतोंकी भीख मांगने हेतु मुसलमान समाजके सामने पुन: कैसे जाएं ?, यह चिंता कांग्रेस नेताओंको सता रही है । (यह डर कांग्रेसवालोंको आज भी लगता है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
आरक्षण नीतिपर मुसलमानोंद्वारा ही आपत्ति !
१. मुसलमान समाज एवं जातिके आधारपर विभक्त हैं तथा उनमेंसे कुछ जातिगुटोंको हम आरक्षण दे सकते हैं, ऐसा प्रशासनको लगता है; किंतु प्रशासनका यह केवल भ्रम है । उत्तरप्रदेश तथा बिहार जैसे उत्तरके राज्यों जैसे दक्षिणमें, विशेषत: आंध्रप्रदेश स्थित मुसलमान समाजमें जातिरचना अस्तित्वमें ही नहीं है । अत: प्रशासनद्वारा केवल कुछ जातिगुटोंको आरक्षण देनेकी भूमिका समाजमें फूट डालनेका षडयंत्र है, ऐसा मुसलमान समझते हैं । अत: सभी प्रमुख मुसलमान संगठनोंने प्रशासनकी आरक्षण नीतिपर आपत्ति उठायी है ।
२. मजलिस-इत्तेहादुल मुसलमीन संगठनने तो, ऐसी नीति जरा भी स्वीकार नहीं की जाएगी, ऐसा दम भरा है । इस संगठनके घमंडके कारण हैं उनके ४ विधायक तथा १ सांसद ।
३. तामीर-ए-मिल्लत संगठनके प्रमुख मौलाना अब्दुल रहीम कुरेशीने तो कांग्रेसको इसके गंभीर परिणाम भुगतने पडेंगे, ऐसी चेतावनी भी दी है ।
४. इन संगठनोंने संगठित होकर ‘संयुक्त मुस्लिम कृति समिति’ स्थापित की । इस समितिने राज्य पिछडेवर्ग आयोगके सामने, आयोग उनका काम उचित पद्धतिसे करे, हमारे समाजमें जातिनुसार विभाजन न होनेके कारण मुसलमानोंके शैक्षणिक तथा आर्थिक पिछडेपनके विषयमें तंत्रशुद्ध पद्धतिसे आकडेवारी एवं विस्तारपूर्वक जानकारी इकट्ठा कर सभीको आरक्षण देनेके संदर्भमें न्यायालयको मनाए, ऐसी भूमिका प्रस्तुत की । उस हेतु कृति समितिने धार्मिक तथा भाषिक अल्पसंख्यकोंके षयसंदर्भमें नियुक्त न्या. रंगनाथ मिश्रा आयोगके मुसलमानोंको १० प्रतिशत आरक्षण देनेकी संस्तुति की (सिफारिश की) ओर ध्यान आकर्षित किया, साथ ही सच्चर आयोगद्वारा की गई (संस्तुतियोंकी) सिफारिशोंकी ओर भी ध्यान दे, ऐसा भी समितिका कहना था ।
वचनपूर्तिकी असफलताके कारण कांग्रेसके समक्ष समस्या !
मुसलमानोंको शैक्षणिक संस्था तथा नौकरीमें ५ प्रतिशत आरक्षण देनेका वचन देकर कांग्रेसने आंध्रप्रदेशमें सत्ता संपादित की थी; किंतु वचनपूर्ति करनेमें वे २ बार असफल रहे । यह वचन, तथा तेलंगना तथा सीमांध्र इन दो नए राज्योंके चुनावके समय दिए आश्वासन कैसे पूरा करे ? कांग्रेस इस समस्यामें फंसी है ।
आरक्षणमें विभाजनका बीज !
आरक्षण ही अपनी प्रगतिकी मुख्य नींव है, समाजके साथ प्रशासनकीभी ऐसी दृढ धारणा हो गई है । अत: देशभरमें आरक्षणकी समस्याने गंभीर रूप धारण कर लिया है । जातिपर आधारित आरक्षण देकर समाजकी कितनी उन्नति हुई ?, यह अलग चिंतनका विषय है; किंतु इस घटनामें सर्वपक्षीय प्रशासन काफी कुछ भुगत रहा है । इससे सामाजिक संघर्ष उत्पन्न हो रहा है । धार्मिक आधारपर आरक्षण देनेका भूत एक बार बोतलसे बाहर निकाला, तो वह प्रशासनके सिरपर सवार हुए बिना रहेगा नहीं । मुसलमानोंको आरक्षण देनेका प्रश्न केवल आंध्रप्रदेशतक ही मर्यादित नहीं, उसे हवा लगते ही आंधीकी तरह वह पूरे देशमें फैलेगा तथा देशको पुन: एक नए विभाजनकी ओर धकेल देगा, इसमें बिलकुल भी अतिशयोक्ति न लगे ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात