नेपाल की ९० प्रतिशत से अधिक जनता हिन्दू है, तो अब हिन्दुआेंने संगठित होकर इस निर्णय का विरोध करना चाहिए – सम्पादक, हिन्दूजागृति
काठमांडू – संविधान सभा ने नेपाल को दोबारा हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग को सोमवार को हुए मतदान के बाद खारिज कर दिया। इस फैसले का विरोध कर रहे लोगों की पुलिस के साथ झड़प भी हो गई। बवाल में कई लोगों के घायल होने की भी खबर है।
राजशाही के दौरान नेपाल कई सदियों तक हिंदू राष्ट्र रहा, लेकिन २००६ में राजशाही खत्म होने के बाद से धर्म निरपेक्ष राष्ट्र बन गया। नए संविधान पर रविवार से शुरू हए मतदान में एक तिहाई से भी ज्यादा सदस्यों ने नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र बनाने के विरोध में मतदान किया।
संविधान सभा में यह प्रस्ताव नेपाल की राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ने पेश किया था। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया था और चाहती थी कि नेपाल फिर से हिंदू राष्ट्र बन जाए। हालांकि, प्रस्ताव के पास होने के लिए इसे दो तिहाई सदस्यों के समर्थन की जरूरत थी लेकिन हुआ ठीक उलट और प्रस्ताव रद्द कर दिया गया।
हिंदू बहुल इलाकों में ज्यादातर आबादी के बीच नेपाल के राजा हिंदू देवता विष्णु के अवतार माने जाते थे। सोमवार को आए संविधान सभा के फैसले के बाद सैकड़ों हिंदू समर्थक विरोध पर उतर आए। इस दौरान, असेंबली हॉल के बाहर पुलिस ने उन्हें रोकने के लिए वॉटर कैनन चलाए और लाठीचार्ज भी कर दिया।
बता दें कि नेपाल में नए संविधान को लागू करने का मामला आखिरी दौर में पहुंच गया है। प्रस्तावित संविधान के संशोधित प्रारूप के एक-एक अनुच्छेद और धारा पर विचार-विमर्श पूरा हो चुका है। तीन सबसे बड़ी पार्टियों के नेताओं ने इन पर संविधान सभा में अपनी बात रखी है।
आज का नेपाली भूभाग अठारहवीं सदी में गोरखा राजा पृथ्वी नारायण शाह द्वारा संगठित नेपाल राज्य का अंशमात्र है। अंग्रेज़ों के साथ हुई संधियों में नेपाल को उस समय (१८१४) के दो तिहाई नेपाली क्षेत्र ब्रिटिश इंडिया को देने पड़े जो आज भी भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड तथा पश्चिम बंगाल के अंश हैं।
स्त्रोत : महानगर टाइम्स