सारणी
- १. प्रसारमाध्यमों तथा बुद्धिजीविवियोंका विदेशी सत्ताके प्रभावमेें कार्य करना और अधर्म ही इन बुुद्धिजीवियोंका आधार होना
- २. भारतमें बुद्धिवाद और प्रसारमाध्यमोंपर छाया विदेशी प्रभाव नष्ट करना, एक धर्मयुद्ध; इस धर्मयुद्धमें उनके राष्ट्र और धर्मविरोधी सिद्धांत नष्ट करना आवश्यक
- ३. आजके छोटे-मोटे हिंदुत्ववादी प्रसारमाध्यमोंको पुनर्जीवित कर उनमें समन्वय निर्माण करना और विदेशी पूंजीपर प्रस्थापित प्रसारमाध्यमोंका प्रभाव नष्ट करना आवश्यक
- ४. आज चल रहे प्रसारमाध्यमोंको राष्ट्र एवं धर्मसंबंधी सूत्रोंका अंगीकार करने हेतु प्रयत्न करनेके लिए बाध्य करना और उनके माध्यमसे घर-घर पहुंचानेके लिए प्रयत्न कर उन्हें आधारशिला बनाना आवश्यक !
- ५. सुदर्शन समाचार वाहिनी अथवा सनातन वाहिनी राष्ट्रीय स्तरपर प्रभावी होना आवश्यक !
- ६. हिंदूविरोधी वार्ता अथवा हिंदुआेंके समाजप्रबोधनकी वार्ता समाचार-पत्रोंतक पहुंचाना महत्त्वपूर्ण होना; इसके लिए पत्रकार सम्मेलन एक प्रभावी माध्यम
- ७. वार्ता पहुंचानेके लिए राष्ट्रीय स्तरपर एक बडे इलेक्ट्रॉनिक प्रसारमाध्यमकी आवश्यकता
- ८. प्रसारके लिए हिंदुआेंका देश-विदेशके सभी जालस्थलोंसे तथा राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तरपर समन्वय होना आवश्यक
- ९. धर्माभिमानियों और हिंदुत्ववादियोंद्वारा कुछ समय अंतरजालका व्यक्तिगत उपयोग न कर, एक-दूसरेकी वार्ता जान लेनेका प्रयत्न और उसका प्रचार करनेसे अपनापन निर्माण होना और राष्ट्रपर छाया अनिष्ट प्रसारमाध्यमोंका प्रभाव दूर कर पाना
श्री. उपानंद ब्रह्मचारी |
वक्ता : श्री. उपानंद ब्रह्मचारी, संपादक, हिंदु एक्जिस्टन्स, कोलकाता
१. प्रसारमाध्यमों तथा बुद्धिजीविवियोंका विदेशी
सत्ताके प्रभावमेें कार्य करना और अधर्म ही इन बुुद्धिजीवियोंका आधार होना
बंगालमें हम बुद्धिमान लोगोंको बुद्धिजीवी कहते हैं । इन लोगोंकी बुद्धिके कारण जो त्रस्त होते हैं, वह लोग उनको दुर्बुद्धि जीव कहते हैं । वास्तवमें बुद्धिजीवी, बुद्धिजीवी नहीं हैं । देशको किस प्रकारसे फंसाया जाए, किस प्रकारसे देशकी प्रतिमा मलीन हो, ऐसे सभी विषयोंमें उनकी बुद्धि चलती है । उनकी बुद्धिका देशहितमें कोई उपयोग नहीं होता । जिन्हें हम प्रसारमाध्यम कहते हैं, चाहे वह इलेक्ट्रॉनिक प्रसारमाध्यम हों अथवा मुद्रित प्रसारमाध्यम हों अथवा कला, नाटक आदि, इन सबपर उनका एक प्रभाव होता है । वह प्रभाव बडा घातक सिद्ध होता है । जहां-जहां इन बुद्धिजीवियोंका प्रभाव होता है, उससे राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रको क्षति पहुंचती है । अधर्म ही इस बुद्धिवादका आधार होता है । विदेशी सत्ताके प्रभावमें कार्य करनेके कारण प्रसारमाध्यम और बुद्धिजीवियोंकी ऐसी स्थिति है ।
२. भारतमें बुद्धिवाद और प्रसारमाध्यमोंपर छाया विदेशी प्रभाव नष्ट करना,
एक धर्मयुद्ध; इस धर्मयुद्धमें उनके राष्ट्र और धर्मविरोधी सिद्धांत नष्ट करना आवश्यक
किसी विचारकने बताया है कि २० प्रसारमाध्यम क्रिश्चनोंकी आर्थिक सहायतासे चलती हैं । इन क्रिश्चनोंने भारतके संपूर्ण अधिकार, स्वामित्व एवं वर्चस्व छीननेके लिए इन प्रसारमाध्यमोंको अपना आधार बनाया है । उस आलोचकने २० प्रसारमाध्यम कहा है; परंतु वास्तवमें एन्.डी.टीवी और अन्योंको मिलाकर वह संख्या ४० से ५० तक है । भारतमें बुद्धिवाद और प्रसारमाध्यमोंपर जो विदेशी अंकुश है, उसे नष्ट करनेमें हमारे जो प्रयास होंगे वह भी एक प्रकारका धर्मयुद्ध ही है । इस धर्मयुद्धके अंतर्गत इन प्रसारमाध्यम और बुद्धिजीवियोंमें जो देशविरोधी, धर्मविरोधी तत्त्व हैं, उन्हें हटाना आवश्यक है । उनके एकछत्र राज्यको नष्ट करना आवश्यक है; परंतु जिसे हम मुख्य प्रवाही प्रसारमाध्यम कहते हैं, क्या वह वास्तवमें ऐसे हैं ?
३. आजके छोटे-मोटे हिंदुत्ववादी प्रसारमाध्यमोंको पुनर्जीवित कर उनमें समन्वय
निर्माण करना और विदेशी पूंजीपर प्रस्थापित प्रसारमाध्यमोंका प्रभाव नष्ट करना आवश्यक
हम इसका चिंतन करें, तो पाएंगे कि, जितनी हिंदुत्ववादी छोटी पत्रिकाएं, नियतकालिक, साप्ताहिक, मासिक हैं, उनकी शक्तिका हम यथोचित उपयोग नहीं करते, यही हमारी समस्या है । हिंदुत्ववादी प्रसारमाध्यम सक्षम हैं । स्वयंको मुख्य प्रवाही प्रसारमाध्यम कहलानेवाले धर्मनिरपेक्षतावादी प्रसारमाध्यमोंका विरोध करना और आज उपलब्ध हिंदुत्ववादी प्रसारमाध्यमोंको पुनर्जीवित कर उनमें समन्वय लाना आवश्यक है । विदेशी निवेशसे स्थापित प्रसारमाध्यमोंका प्रभाव नष्ट करना आवश्यक है ।
४. आज चल रहे प्रसारमाध्यमोंको राष्ट्र एवं धर्मसंबंधी
सूत्रोंका अंगीकार करने हेतु प्रयत्न करनेके लिए बाध्य करना और
उनके माध्यमसे घर-घर पहुंचानेके लिए प्रयत्न कर उन्हें आधारशिला बनाना आवश्यक !
हमें यह विचार करना चाहिए कि अभी चल रहे प्रसारमाध्यमोंका बहिष्कार किए बिना उनमें सुधार कर उन्हें राष्ट्रके अनुकूल कैसे बनाएं । एक आधारशिला बनकर वे राष्ट्रीय सूत्र, धर्मशिक्षा, राष्ट्रहित और धर्मजागृति इत्यादि सूत्रोंका अंगीकार करें, इस दृष्टिसे हमें प्रयत्न करने चाहिए । हम जिन माध्यमोंकी बात करते हैं, वे कितने लोगोंतक पहुंचते हैं ? मैं जिन इलेक्ट्रॉनिक माध्यमोंकी बात कर रहा हूं अथवा सामाजिक अंतर्जाल स्थानोंकी (सोशल नेटवर्किंग) बात कर रहा हूं, वे कितने लोगोंतक पहुंचते हैं ? केवल २० प्रतिशत लोग ही इनका उपयोग करते हैं; परंतु अन्योंका क्या ? इन प्रसारमाध्यमोंको घर-घर पहुंचानेके लिए हमें प्रयास करना चाहिए ।
५. सुदर्शन समाचार वाहिनी अथवा सनातन वाहिनी राष्ट्रीय स्तरपर प्रभावी होना आवश्यक !
हमें सामूहिकरूपसे संकीर्तन समूह, धर्मशिक्षा देनेवाला समूह, इन्हें धर्मशिक्षा देनेके साथ-साथ हिंदुआेंके साथ क्या हो रहा है इसका भी प्रचार करना चाहिए, ऐसा भी एक मत व्यक्त हुआ है । हमें अपना प्रसारमाध्यम स्थापित करना चाहिए, ऐसा भी मत व्यक्त हुआ है । हमें अपनी दूरदर्शन-वाहिनी आरंभ करनी चाहिए । सुदर्शन समाचार वाहिनी अथवा सनातन वाहिनी राष्ट्रीय स्तरपर प्रभावी हो, इसकी हम प्रतीक्षा कर रहे हैं । इसमें जो कार्यक्रमका सूत्रधार होता है, संवाददाता होता है, उन्हें प्रशिक्षण देनेके लिए देशके चारों भागोंमें तुरंत शिक्षा संस्थान बनाने होंगे, जिससे कि हम भारतवर्षमें एक राष्ट्रवादी प्रसारमाध्यम स्थापित कर सकें ।
६. हिंदूविरोधी वार्ता अथवा हिंदुआेंके समाजप्रबोधनकी वार्ता
समाचार-पत्रोंतक पहुंचाना महत्त्वपूर्ण होना; इसके लिए पत्रकार सम्मेलन एक प्रभावी माध्यम
यदि किसी छोटे गांवमें मुसलमान अथवा किसी ईसाईके साथ कोई छोटीसी घटना होती है, तो उसका समाचार राष्ट्रीय स्तरकी पत्रिकाआेंमें छपता है; परंतु यदि हिंदुआेंपर अत्याचार हो, तो उस विषयमें कहींपर भी पढने नहीं मिलेगा । अपने साथ हुई किसी छोटीसी घटनाको भी वे लोग प्रसारमाध्यमोंसे संपर्क कर प्रकाशित करवा लेते हैं । इस संदर्भमें पत्रकार सम्मेलन एक शक्तिशाली माध्यम है, जिससे हिंदुआेंके विरुद्ध जो हो रहा है अथवा हिंदू जो समाजप्रबोधन कर रहे हैं, उसकी भी वार्ता समाचार-पत्रोंतक पहुंचनी चाहिए । जो कुछ होता है उस विषयमें हम संपादकको लिखकर भेजते हैं; परंतु वे उस वार्ताको उचितरूपसे प्रकाशित नहीं करते ।
७. वार्ता पहुंचानेके लिए राष्ट्रीय स्तरपर एक बडे इलेक्ट्रॉनिक प्रसारमाध्यमकी आवश्यकता
यहां मेरा सुझाव यह है कि हम ऐसी सर्व घटनाएं एक ही स्थानपर भेजें । एक समन्वय समिति होगी, जो उसपर निर्णय लेकर वह सभी माध्यमोंको भेजेगी । हमारा एक ऐसा आधार होना चाहिए जिससे हमारी संवेदना, हमारी मांगें, किसी क्षेत्रमें यदि मानवाधिकारोंका उल्लंघन हुआ हो अथवा सूचनाके अधिकारके अंतर्गत यदि हमने कोई आवेदन किया और प्रशासकीय अधिकारीने यदि उसपर कार्यवाही नहीं की अथवा हिंदुआेंपर जो अन्याय हो रहा है उसके विरुद्ध हम लिख रहे हैं; परंतु वह प्रकाशित नहीं हो रहा हो, तो वहां हम इस सबकी परिवाद (शिकायत) कर सकें । इन विचारोंपर यहां एक मत व्यक्त हुआ कि राष्ट्रीय स्तरपर एक बडे इलेक्ट्रॉनिक प्रसारमाध्यमकी आवश्यकता है ।
८. प्रसारके लिए हिंदुआेंका देश-विदेशके सभी
जालस्थलोंसे तथा राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तरपर समन्वय होना आवश्यक
देशमें इतने हिंदू-संगठन हैं; परंतु उनका राष्ट्रीय स्तरपर कोई मुद्रित अथवा इलेक्ट्रॉनिक प्रसारमाध्यम नहीं है । इस अभावकी पूर्ति करनेके लिए सुदर्शन वाहिनी अथवा सनातन प्रभात हैं, ऐसे सभीको एकत्रित कर राष्ट्रीय स्तरपर एक दैनिक और एक समाचार वाहिनी स्थापित करनेकी बहुत आवश्यकता है । इसके साथ देशभरमें अथवा विदेशमें जो हिंदू-संगठन करते हैं, उनके भी छोटे-छोटे जालस्थल हैं, उनका भी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तरपर समन्वय होना आवश्यक है ।
मैं एक निवेदन करना चाहूंगा कि जो सामाजिक अंतर्जाल हैं, जो व्यक्तिगत ब्लॉग हैं, उनके माध्यमसे अधिक प्रचार होना चाहिए । जो लोग प्रतिदिन ४-५ घंटोंतक इंटरनेटका प्रयोग करते हैं, वे नियमितरूपसे अपनी इ-मेल जांचते हैं ।
९. धर्माभिमानियों और हिंदुत्ववादियोंद्वारा कुछ समय अंतरजालका
व्यक्तिगत उपयोग न कर, एक-दूसरेकी वार्ता जान लेनेका प्रयत्न और उसका प्रचार
करनेसे अपनापन निर्माण होना और राष्ट्रपर छाया अनिष्ट प्रसारमाध्यमोंका प्रभाव दूर कर पाना
मैं निवेदन करता हूं कि आप अपना इ-मेल पता यहांके स्वागतकक्षपर दीजिए, जिससे आपको सनातन प्रभातसे अथवा हिंदु समन्वय समितिके इ-मेलसंबंधी विभागसे आज हिंदुआेंके विषयमें जो कुछ हो रहा है उसकी जानकारी मिले । आप इस जानकारीको आपके मित्रोंको और परिचितोंको भेजें और आपके इंटरनेटका १ घंटा व्यक्तिगत उपयोग बंद कर अन्य हिंदु धर्माभिमानियों, हिंदुत्ववादियोंके प्रयासोंके विषयमें जान लें और उसका प्रचार करना है । इससे परस्पर निकटता बढेगी और राष्ट्रपर दुर्बुद्धिवादियोंका अथवा धर्मनिरपेक्षतावादी प्रसारमाध्यमोंका जो दुष्प्रभाव है उसे हम दूर कर सकते हैं । नमस्कार !