चैत्र शुक्ल पक्ष दशमी, कलियुग वर्ष ५११५
कश्मीरमें मुसलमान बहुसंख्यक एवं हिंदु अल्पसंख्यक हैं । वहांके मुसलमानोंकी जनसंख्या ९७ प्रतिशत एवं कश्मीरकी घाटीमें हिंदु एवं सिक्खोंकी एकत्रित जनसंख्या केवल २.५ प्रतिशत है । वहां बौद्धोंकी संख्या भी अत्यल्प ही है । आतंकवादके कारण वहांके ३.५ लाख कश्मीरी पंडितोंको विस्थापित होना पडा है । वे पंडित आज भी कठिनाइयोंका जीवन व्यतीत कर रहे हैं । इस प्रज्वलित समस्यापर साप्ताहिक चित्रलेखाने प्रकाश डाला है, जिसका सार हमारे वाचकोंके लिए दे रहे हैं ।
वर्ष १९८९ में कश्मीरकी घाटीमें वास्तविक रूपमें दहशतको आरंभ हुआ । आतंकवादी कार्यवाहियां तथा उनकी ओरसे मिलनेकी धमकियां आदिके कारण –
१. वर्ष १९८९ में ही ३.५ लाख कश्मीरी पंडितोंने प्राणाेंके भयसे कश्मीर छोडा ।
२. न्यूनतम ५ लाख स्थानीय कश्मीरी पंडितोंको अपने पूर्वजोंकी भूमि एवं खेतीका त्याग करना पडा ।
३. अनेक लोग जम्मू छोडकर देशके अन्य क्षेत्रोंमें जाकर बसे जबकि कुछ जम्मू अथवा अन्यत्रके विस्थापितोंने छावनीयोंमें आश्रय लिया । वे वहां अनेक वर्षोंसे रह रहे हैं ।
४. अनेक लोगोंने बंद पडे पुराने विद्यालयोंमें आश्रय लिया है जबकि कुछ लोग नदियोंके तटपर तंबूमें रहने लगे हैं ।
राज्यसरकारद्वारा कश्मीरी पंडितोंको वापस आनेका बनावटी आवाहन !
राज्यसरकार विस्थापित कश्मीरी पंडितोंको पुनः अपने घर वापस आनेका आवाहन तो अवश्य करती है; परंतु सुरक्षाका उत्तरदायित्व नहीं लेती ! विस्थापित कश्मीरी पंडितोंके मूल घर अन्योंके नियंत्रणमें हैं । यहां वापस आनेपर उनके सामने अधिकारके घरके साथ जीवन निर्वाहकी भी बडी समस्या है । ऐसे समय किसी भी सरकारने उनके लिए सुरक्षित नगर बसानेका प्रयास नहीं किया । एेसेमें कश्मीरी नागरिक कैसे लौट सकते हैं ? वर्तमान समयमें कश्मीरकी घाटीमें केवल ८०८ कश्मीरी पंडित प्राण हथेलीमें लेकर रहते हैं । वे भी कब कश्मीर छोडकर जाएंगे, इसकी कोई निश्चिती नहीं है ।
विघटनवादियोंके संपर्कमें रहनेवाले कश्मीरके देशद्रोही नेता !
कश्मीरमें आज कुछ नेता ऐसे भी हैं कि जिन्हें केंद्रसरकारद्वारा सुरक्षापूर्ति की गई है; परंतु सत्तासे दूर रहनेपर विवश होनेके कारण उन्होंने विघटनवादी गुटद्वारा पुनः एक बार कश्मीरका वातावरण संतप्त करना आरंभ किया है । उन्हें पाकिस्तानसे समर्थन भी मिलता है । ये नेता एवं उनके दल कश्मीरमें अशांति बढा रहे हैं ।
कश्मीरकी अशांतिके लिए राजनेता ही कारणभूत !
वास्तवमें कश्मीरकी अशांतिके लिए वहांके राजनेता ही कारणभूत हैं; क्योंकि
१. नए सत्ताधीश अपनी पद्धतिसे नए नियम चलाना आरंभ करते हैं ।
२. वे कभी विघटनवादियोंसे एवं कभी पाकिस्तानके आतंकवादी गुटोंसे विचार-विमर्श करते हैं ।
३. कश्मीर घाटीकी परिस्थितिमें थोडासा भी सुधार हो जाए, तो वे तत्काल सीमापर नियुक्त सुरक्षा दल एवं सेनामें कटौती करनेकी घोषणा करते हैं ।
राजनीतिक नेताओंकी इस अपरिपक्वताके खेलके कारण कश्मीरकी घाटी स्थायी रूपसे अशांत रही है । यही अशांति भारतके लिए धोखादायी सिद्ध हुई है ।
(संदर्भ : साप्ताहिक चित्रलेखा, ६.९.२०१०)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात