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कंदाहार हवाई जहाज अपहरण : भाजपाकी दिशाहीन सुरक्षानीतिका उदाहरण !

चैत्र शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, कलियुग वर्ष ५११६

अपहरणकर्ताओंने भारतीय हवाई जहाजका अपहरण कर लगभग १५० यात्रियोंको अगुवा किया । इन यात्रियोंको छुडानेके बदलेमें केंद्रप्रशासनने मौलाना मसूद अजहर, मुश्ताक अहमद जरगर तथा अहमद ओमर सय्यद शेख इन ३ कट्टर इस्लामी आतंकवादियोंको छोड दिया । इस घटनामें तत्कालीन भाजपा प्रशासनकी सुरक्षा नीति कितनी खोखली थी, यह बात दर्शानेवाला यह लेख !

 


दायित्वशून्य नौकरशाही !

हवाई (चाचोंने ) सायं ५ बजकर २२ मिनिटपर हवाई जहाज नियंत्रणमें लिया गया था । तत्पश्चात  नौकरशाहोंने ४० मिनिटतक प्रधानमंत्रीको अंधेरेमें रखा । प्रधानमंत्री हवाई जहाजसे पटनासे देहली जहाजसे आ रहे थे । प्रधानमंत्रीका हवाई जहाज सायं ६ बजे हवाई अड्डेपर उतरनेके पश्चात नौकरशाहोंने प्रधानमंत्रीको हवाई जहाज अपहरणका समाचार दिया । प्रशासन नौकरशाहोंका और कितना विश्वास करे ?

घटनाका दायित्व कौन संभालेगा, इसी बातका निश्चित न हो पाना ! 

हवाई चाचोंने अपहृत हवाई जहाज छोडनेके बदलेमें भारतसे ९०० कोटि रुपए तथा ३६ आतंकवादियोंको मुक्त करनेकी मांग की । इस मांगको तुरंत अस्वीकार करनेकी अपेक्षा प्रशासनने बातचीत आरंभ की ! 

इस सारी घटनामें …

१. देहलीका राज जैसे विदेशमंत्री जसवंतसिंहके हाथोंमें था, तो बातचीतके सूत्र जैसे प्रधानमंत्रीके सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्र, तथा नागरी उड्डयन सचिव रवींद्र गुप्ताके हाथोंमें थे । 

२. गृहमंत्री तथा सुरक्षामंत्रीको इस बातचीतसे जानबूझकर दूर रखा गया था । 

३. भूदल, वायुदल तथा नौदल इन तीनों दलोंके सेनाप्रमुखोंको विचारविमर्शमें बिलकुल ही स्थान नहीं था । 

४. ३ दिनोंके पश्चात भूदलके सरसेनापति वेदप्रकाश मलिक, वायुदलके सरसेनापति टिपणीस तथा नौदलके सरसेनापति सुशील कुमार, ये तीनों स्वयं प्रधानमंत्रीके घर गए । उसके पश्चात  उन्हें चर्चामें स्थान प्राप्त होने लगा/सम्मिलित किया जाने लगा । 

आरंभसे ही नरम नीति !

हवाई जहाजका अपहरण होनेके दूसरे ही दिनसे ऐसे संकेत प्राप्त होने लगे थे कि केंद्रप्रशासन अपहरणकर्ताओंके साथ बातचीत करेगा । शासन तथा प्रशासन बारबार यही कह रहे थे कि हवाई जहाजसे यात्रियोंको छुडाना ही प्रशासनका सबसे महत्त्वपूर्ण तथा प्रथम दायित्व है । इससे, भाजपा प्रशासन अपहरणकर्ताओंको पाठ पढानेकी मन:स्थितिमें नहीं, यह बात उसी समय स्पष्ट हो गई थी । 

…तो आतंकवादियोंको छोडनेकी शृंखला ही आरंभ होगी !

क्या १५० यात्रियोंके जीवनका मूल्य इतना है ? क्या उस हेतु १,५०० सैनिकोंके जीवन संकटमें डालनेवाले आतंकवादियोंको छोड दें ? आज १५० यात्रियोंको अगवा करनेवाले हवाई चाचोंकी शरणमें जाकर ३ भयंकर एवं खूंखार आतंकवादियोंको छोड देनेवाला भाजपा प्रशासन कल जम्मू शहरको अगवा करनेवाले चाचोंके सामने घुटने टेककर जम्मू-काश्मीरके कारागृहके द्वार पूरे खोलकर सभीके सभी आतंकवादियोंको नहीं छोडेगा, इसका क्या भरोसा ? 

कागदी शेरोंकी शरणागति !

अंतमें नागरिकोंके जीवनका क्या अर्थ है ? क्या कारगिलकी रणभूमिपर वीरगति प्राप्त करनेवाले युवा सैनिकोंके जीवनसे हवाई जहाजके १५० यात्रियोंके प्राण अधिक मूल्यवान हैं ? जम्मू काश्मीरके युद्धमें पूर्व १० वर्षोंमें २० सहस्र जानें गइं , क्या उनके जीवनका कोई मूल्य नहीं था ? जिस समय सारे देशवासी कह रहे थे कि हवाई चाचोंके सामने घुटने मत टेंकना, इस्लामी आतंकवादियोंको मत छोडना; बस उसी समय भाजपा प्रशासनने अपहरणकर्ताओंके सामने घुटने टेककर देशको हतोत्साहित कर दिया । भाजपाप्रणीत प्रशासन केवल कागदी शेर है । अपहरणकर्ताओंके सामने स्वीकार की गई शरणागति उसीका प्रमाण है । बडी डींग हांकनेवाले वाजपेयी प्रशासनने देशकी सुरक्षाके विषयमें हम कांग्रेस प्रशासनसे अलग नहीं, यही सिद्ध किया । 

भयकी ग्रंथियोंसे घिरा प्रशासन !

एक और घटना विचार करनेपर बाध्य करनेवाली है । अपहरणके नाटकके पश्चात पुणेमें आयोजित वार्ताकार परिषदमें तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयीजीने कहा कि हवाई जहाज अपहरण घटनाकी कालावधिमें देशकी जनताने धार्मिक एकता रखनेका जो प्रयास किया, वह स्पृहणीय है । इस वक्तव्यका क्या अर्थ हो सकता है ? अपहरणकी घटनामें प्रधानमंत्री धर्मका सूत्र क्यों लाए ? धार्मिक एकता लानेका प्रयास हुआ, इसका अर्थ इस घटनामें वे सब नष्ट होनेके बीज थे । हवाई चाचोंने जिहादी आतंकवादियोंको छोडनेके वचनपर ही अपहृत यात्रियोंको छोडा । प्रशासनके सामने जो संवेदनशील सूत्र था, वह यह कि हवाई जहाजके यात्रियोंकी हत्या हो जाती, तो देशमें जातीय दंगे हो जाते ! भयकी इस ग्रंथिसे त्रस्त प्रशासन हिंदुओं तथा देशको कहांतक न्याय दिला सकेगा ?

अपहरणकर्ताओंको समझाओ, इस मांग हेतु विश्वके सामने घुटने टेकनेवाला नपुंसक भाजपा प्रशासन ! 

२९.१२.१९९९ के टाईम्सके समाचारमें कहा था कि … 

१. अपहरणकर्ताओंपर प्रभाव डलने हेतु देवबंद, उत्तरप्रदेशके दार-उल-उलूम संगठनके मुल्ला मौलवीसे संपर्क किया जा चुका है । जमाते-उलेमा-इ-हिंद इस इस्लामी संगठनका प्रमुख मौलाना असद मदनी, दार-उल-उलूम संस्थाका प्रमुख है, तो पाक स्थित जमाते-उलेमा-इ-पाकिस्तान इस संस्थाका प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान है । इस रहमानने पाकमें मदरसोंका जाल बिछाया है तथा इसी मतदातासंघमें तालिबानियोंके लडाकू दलका अभ्यास पूरा हुआ है । इस रहमानसे असद मदनी बात करें, इस हेतु प्रयास आरंभ है । 

२. धार्मिक संधानके प्रयासों समेत सऊदी अरेबिया तथा युनाइटेड अरब अमिरातके साथ भी प्रशासन संधान रखे हुए है । यह कट्टर इस्लामी देश अपहरणका पेंच हल करनेमें सहायता करे, प्रशासन ऐसा प्रशासन कर रहा है ।

हिंदुओ, इस विषयमें भाजपाको फटकारें !

अपहरणकर्ताओं तथा उनका समर्थन करनेवालोंपर इस प्रकारके प्रयासोंद्वारा प्रभाव डाला जा सकेगा, प्रशासनको ऐसा क्यों लगता है, यह कह नहीं सकते । इस घटनामें भाजपा प्रशासनने किसकिसके सामने कैसे कैसे घुटने टेके , कट्टर इस्लामी संगठनोंके सामने कैसे गिडगिडाए, इसे स्पष्ट करनेवाला और कौनसा ब्यौरा चाहिए ? यह जो मानहानि हुई उस हेतु कौन कौन उत्तरदायी हैं, इस विषयमें हिंदुओंद्वारा भाजपाको फटकारना आवश्यक है । 

(संदर्भ : श्री. ब.ना. जोग, साप्ताहिक विवेक १६.१.२०००)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात 

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