श्रावण कृ ५, कलियुग वर्ष ५११४
पुणेकी कटारिया पाठशालाकी अध्यापिकाका आधुनिकताके नामपर हिंदुद्वेष !
पुणे, ६ जुलाई (संवाददाता) – मुकुंदनगरके कटारिया नामक अंग्रेजी माध्यमकी पाठशालामें धर्मशास्त्रके अनुसार प्रतिदिन कुमकुम लगाकर आनेवाली एक छात्राको वर्ग समाप्त होनेपर अध्यापिकाने कक्षासे बाहर बुलाया पाठशालामें कुमकुम लगाकर तथा चूडियां पहनकर आनेके लिए डांटकर मना किया । ( धर्मपालन करनेवाली छात्राको प्रोत्साहित करनेके स्थानपर उसे हतोत्साहित करनेवाली अध्यापिका विद्यार्थियोंपर क्या सुसंस्कार करेगी ? – संपादक ) अभिभावकोंद्वारा अध्यापिकाके इस विरोधपर आपत्ति उठाई गई । (धर्माचरण हेतु कठोर भूमिका निभानेवाले अभिभावकोंका अभिनंदन ! इस प्रकारके अभिभावक सर्वत्र होंगे, तो हिंदुओंको धर्माचरणके लिए प्रतिबंधित करनेका साहस कोई नहीं कर सकता ! – संपादक)
इस संदर्भमें छात्रा के अभिभावक अध्यापिकासे मिलने गए, तो उस अध्यापिकाने कहा कि,‘आपकी लडकी पुरानी प्रथाओंका अनुकरण करती (आऊटडेटेड) है । इस युगमें ऐसी लडकी मैंने पहली बार देखी है । अन्य लडकियोंमें वह शोभा ( सूट ) नहीं देती । वह पाठशालामें इस प्रकार ही आएगी, तो अन्य लडकियां भी उसके इस आचरणसे ग्रस्त हो जाएंगी ।’ ( ग्रस्त होनेके लिए धर्मपालन करना क्या रोग है, यदि है, तो वह एक उपचार है । अन्य लडकियोंने भी उस छात्राका आदर्श सामने रखकर धर्मपालन करना आरंभ किया, तो समष्टि साधना ही साध्य होगी । यदि अयोग्य है, तो संसारके रीतिरिवाजोंके अनुसार सभीको आचरण करना चाहिए, ऐसा दृष्टिकोण रखनेवाली अध्यापिकाके मतमें धर्मप्रसार करनेवाले स्वामी विवेकानंद भी ‘कालबाह्य’( आऊटडेटेड ) ही सिद्ध होंगे – संपादक) पाठशालाकी प्रधानाध्यापिका ने भी छात्राको कुमकुम नहीं अपितु बिंदी लगानेकी सलाह दी ( कहीं भी हिंदुओंको धर्मशिक्षा न देनेका यह दुष्परिणाम है ! – संपादक )
अध्यापिकाके इस वक्तव्यपर, ‘कुमकुम लगाकर आना धर्माचरणका भाग है, इसलिए वह धर्मपालन ही करेगी’, अभिभावकोंद्वारा ऐसी फटकार लगानेपर अध्यापिकाने अपनी हठ छोड दी ।
स्त्रोत – दैनिक सनातन प्रभात