क्या बांग्लादेशी घुसपैठका प्रश्न हल करनेकी राजनीतिक इच्छाशक्ति सरकारके पास है ?

वैशाख कृष्ण पक्ष ५, कलियुग वर्ष ५११६

सत्ताप्राप्तिके लिए आंख बंद कर मनचाहे मार्गका अवलंब करनेवाले लोगोंको पांवके नीचेके जलते अंगारे निश्चित रूपसे दिखाई देंगे, ऐसा  है ?


     भारत एवं बांग्लादेशकी अंतरराष्ट्रीय सीमापर घेरा बनानेके संदर्भमें बांग्लादेशका दृष्टिकोण अत्यधिक विरोधी है । बांग्लादेशके विदेशी सचिव हिमायतुद्दामने इस दृष्टिकोणका निरंतर पुनरुच्चार करते हुए स्पष्ट रूपसे कहा है कि बांग्लादेशमें आतंकवादियोंको प्रशिक्षण देनेवाले केंद्र भी अस्तित्वमें नहीं है । परंतु देशके सत्ताधारी भारत-बांग्लादेश संबंध न बिघडने हेतु दुर्बलताकी नीतिको अपना रहे है । इसलिए इन लोगोंको ‘देशकी सुरक्षितता एवं अखंडताकी कहांतक चिंता आहे ?, इस विषयमें प्रश्नचिन्ह उत्पन्न हो गया है । 

असममें कुल मिलाकर १२० विधानसभा चुनावक्षेत्रोंमें  ५६ चुनावक्षेत्रके परिणाम बांग्लादेशी घुसपैठिये निश्चित करेंगे ! 

पश्चिम बंगालमें अपनी मतपेटी मजबूत करने हेतु ‘माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पक्ष’ इस घुसपैठको नियंत्रित करनेके स्थानपर प्रोत्साहित ही कर रहा है । असममें घुसपैठके इस पापके लिए कांग्रेस ही उत्तरदायी है । अगले वर्ष होनेवाले विधानसभा चुनावोंपर ध्यान केंद्रित करते हुए असमके कांग्रेसी मुख्यमंत्री तरुण गोगोई घुसपैठियोंको रूष्ट करनेके लिए सिद्ध नहीं है । चाहे उसके लिए राष्ट्रीय सुरक्षाका मूल्य क्यों न चूकाना पडे, उन्हें पसंद है । अनुमान है कि देशके लगभग दो करोड घुसपैठियोंमें अकेले असममें साठ लाख घुसपैठिये हैं । असामके कुल मिलाकर १२० विधानसभा चुनाव क्षेत्रोंमें ५६ चुनावक्षेत्रोंके परिणाम निश्चित करने हेतु संख्याबलके आधारपर ये घुसपैठिये पर्याप्त हैं । अतः केंद्रके सोनिया शासनके आधारसे गोगोई सरकारने घुसपैठियोंको हकालनेकी कार्यवाहीको पूर्णविराम दे रखा है 

घुसपैठकी समस्याके संदर्भमें राजनेताओंकी अत्यधिक नरमाईकी नीति विनाशक !

चाहे तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री ‘शिवराज पाटिल’ हो अथवा गृह राज्यमंत्री ‘सत्यप्रकाश’ जयस्वाल हो, ‘नाम बडा परंतु लक्षण झूठा’के आधारपर आचरण कर घुसपैठियोंकी समस्याको नियंत्रित करनेके संदर्भमें अनावश्यक नरमाईकी नीतिका अवलंब कर रहे थे । इस समस्याका ‘मानवीय’ दृष्टिकोणसे विचार करना चाहिए, यह उनकी क्रियाशून्यताका उदाहरण है । वास्तवमें उनको भारत-बांग्लादेशकी सीमाको ही नष्ट करना चाहिए । शासकीय तंत्र, संशोधक एवं अभ्यासकोंने निरंतर प्रयास कर विशेष परिश्रम लेकर इस घुसपैठके विषयमें जो विवरण संग्रहित किया है, उसकी सत्यताके विषयमें प्रत्यक्ष देशके संसदमें ही आशंकाएं उपस्थित की जा रही हैं । अतः जब बांग्लादेशसे भारतमें घुसपैठ होनेका भारतका दावा बांग्लादेश अस्वीकार करता है, तो किस मुंहसे उसे फटकारेंगे ?

असमसे सटे बांग्लादेशकी ७२ कि.मी. सीमारेखाको अबतक घेरा नहीं ! 

जिस समय लेफ्टनंट जनरल एस.के. सिन्हा असमके राज्यपाल पदपर थे, उस समय उन्होंने घुसपैठके विषयमें विस्तृत अहवाल सिद्ध किया था । तदुपरांत राज्यपाल बने अजय सिंहने भी स्वीकार किया था कि प्रतिदिन लगभग ६ सहस्र बांग्लादेशी अवैधानिक रूपसे घुसपैठ कर रहे हैं । लगभग ३ सहस्र घुसपैठियोंको प्रतिवर्ष भारतसे हकाल देनेके विषयमें केंद्रीय गृह मंत्रालयद्वारा निश्चित की गई योजना ‘चलानेके लिए अयोग्य’, ऐसा सिक्का मारकर अप्रैल माहमें (मासमें) अंतिम की गई ।

सीमावर्ती क्षेत्रमें बांग्लादेशी तस्कर, आतंकी एवं अपराधियोंका ही अघोषित राज्य स्थापित हो गया है । इस कार्यमें उन्हें भ्रष्ट पुलिस अधिकारी, रिश्वतखोर सीमा सुरक्षा बल एवं उनके भारतके हस्तक इन सबकी सहायता मिलती है ।परिणामतः बांगलादेशकी सीमारेखा भारतीय भूप्रदेशके अंदर अनेक किलोमीटरतक पहुंच गई है । असमसे सटी बांग्लादेशकी सीमारेखा २७२ कि.मी. लंबी है । इस सीमापर अब भी घेरा / बाढ लगाना शेष है । 

घुसपैठियोंने उजागरीसे गांजाकी खेती कर उसके अवैध विक्रयसे प्राप्त धनसे माओवादियोंको विस्फोटक एवं शस्त्रोंकी पूर्ति करना

भारतके शत्रुओंको खुला जंगल मिल गया है । असमके ‘बाराक’ घाटी एवं पश्चिम बंगालके सीमावर्ती जिलेमें धार्मिक मित्रताको  भडकानेवाले दृश्यश्राव्य साहित्य घुसपैठिये अपने साथ लेकर आ रहे हैं । इसलिए इस क्षेत्रमें ‘इस्लामी मूलतत्त्ववाद’ बढता जा रहा है । वहांके ‘सुफी पंथके शिष्यों एवं मानवतावादी लोगोंका सामाजिक एवं आर्थिक बहिष्कार करनेका (फतवा) आदेश मुर्शिदाबाद जिलेके मुल्लामौलवियोंने निकाला है । साथ ही नाडिया एवं मालदा जिलेके पंचायतोंपर घुसपैठियोंने वर्चस्व स्थापित किया है । इसके लिए उनको स्थानीय माक्र्सवादी एवं माफिया गुंडोंकी मनचाही सहायता मिल रही है । अपने जानकी निश्चिती न होनेके कारण हिंदु यहांसे स्थलांतर कर रहे हैं एवं गिरे मूल्यमें उनकी भूमि क्रय कर घुसपैठिये वहां उजागरीसे गांजेकी खेती कर रहे हैं । गांजाका चोरीसे विक्रय कर असम, उत्तर बंगाल तथा नेपालके मूलतत्त्ववादी एवं माओवादी विद्रोहियोंको विस्फोटक एवं शस्त्रोंकी पूर्ति की जाती है।  

कांग्रेसद्वारा अल्पसंख्यकोंको कष्ट न देनेकी धमकी !

ये अनुचित घटनाएं शासनद्वारा अक्षम्य रूपसे दुर्लक्षित हैं । असमके कुछ जिलोमें इसके विरुद्ध प्रतिक्रियाएं उभर रही हैं । दिब्रुगडके संगठन ‘चिरांग चापोरी युवा मोर्चा’ ने घुसपैठियोंपर आर्थिक निर्बंध क्रियान्वित किए हैं । इन लोगोंको नौकरी एवं कोई कामधंदे न मिले, ऐसा उनका दृष्टिकोण है । अतः यहांके घुसपैठियोंने उनका मोर्चा धुबडी, गोलपारा, कोकराजार, मोरीगाव तथा नौगाव ऐसे पांच जिलोंकी ओर मोडा है । यहां उनका ही बोलबाला होनेके कारण जनसंख्याका धार्मिक समतोल पूरी तरह बिगड गया है । 

‘ऑल असम स्टुडंट्स युनियन’, ‘आसोम जातीयताबादी युबा छात्र परिषद’, ‘ताइ अहोम स्टुडंट्स युनियन’ एवं ‘मोटोक स्टुडंट्स युनियन’ने भी घुसपैठियोंके विरुद्ध भूमिका अपनाई । प्रारंभमें सभीको कांग्रेसका समर्थन था; परंतु इससे भाजपा एवं असम गण परिषदका जनाधार मजबूत होता देखकर उन्होंने सभी संगठनोंको ‘कष्ट देकर परेशान न करनेकी’ धमकी दी । त्वरित ‘ऑल असम मायनॉरिटी स्टुडंट्स युनियन’ सेक्युलर संगठन’ने केंद्रशासन एवं राज्यशासनसे असमके उपरके क्षेत्रके अल्पसंख्य मजदूर वर्गको परेशान करनेवाले जातीयवादी नेताओंपर कठोर कार्यवाही करनेकी निरंतर मांग की । कहीं ऐसा तो नहीं कि यहांके हिंदु ‘अल्पसंख्यक कहलानेवाले समाजका ही प्राबल्य बढते रहनेके कारण अपना मूल परिचय ही न गंवा बैठें ?’, ऐसे सार्थ भयसे भयभीत हो गए हो । इसके फलस्वरूप यहांका सामाजिक एवं राजनीतिक तनाव बढ गया है । यहांसे उठनेवाली चिनगारियां पूर्वांचलके अन्य क्षेत्रमें जिहादी आग भडकाए बिना नहीं रहेंगी ।

क्या राजनेताओंको पांवके नीचेके जलते अंगारे दिखाई देंगे ? 

दक्षिण बंगालके ग्रामीण क्षेत्रमें (पट्टेमें) बांग्लादेशियोंने हिंदुओंके देवी-देवताओंका अनादर करनेवाली दृश्यश्राव्य चक्रिकाओंका वितरण कर दंगे भडकानेका नेतृत्व किया है । सोनियाकी सरकारमें घुसपैठियोंके प्रश्नके विषयमें माकपा एवं कांग्रेसकी अच्छी तरह गाढी छननेके कारण / मिलीभगत होनेके कारण इस विषयको कोई गंभीरतासे नहीं लेता । मायरन विनर नामक अभ्यासकद्वारा लिखित विख्यात पुस्तक ‘ग्लोबल मायग्रेशन क्रायसिस’ में विश्वके  ४७ देशोंकी ‘अराष्ट्रीय’ जनसंख्याका प्रमाण दर्शानेवाली अंकवारी दी गई है । ऐसी सूचीमें हमें कहीं भी भारत दिखाई नहीं देता ऐसे स्थलांतरितोंका प्रमाण दर्शानेवाली अंकवारी अथवा विवरण भारत शासनने प्रकाशित ही नहीं किया है;, जिसका कारण एक ही है, ‘मुसलमान मतकोठी’ !

सीमा व्यवस्थापनके विषयमें केंद्र तथा राज्यके सुरक्षा एवं गुप्तचर तंत्रोंमें तालमेलका अभाव है । सीमा सुरक्षासे संबंधित बातोंपर कुशलतासे ध्यान देनेकी प्रभावी व्यवस्था एवं कार्यपद्धति नहीं है । घुसपैठके संदर्भमें भूमिका भी अंतर्विरोधके कारण ग्रसित हो गई है ।

लोकसंख्याका यह आक्रमण रोकने हेतु, अंतरराष्ट्रीय जनमत अपने समर्थनमें खडे करनेके लिए भारतको अर्थात विद्यमान सरकारको कूटनीतिक षडयंत्रकी बाजी लगानी पडेगी; परंतु क्या ऐसी सांत्वना एवं समर्थन मिलने हेतु आवश्यक कौशल्य अपने कूटनीतिज्ञोंके  पास है ? क्या यह प्रश्न उपस्थित कर उसपर पूरा समाधान प्राप्त करनेकी राजनीतिक इच्छाशक्ति सरकारके पास है ? सत्ताप्राप्तिके लिए आंख बंद कर मनचाहे मार्गका अवलंब करनेवाले लोगोंको पांवके नीचेके जलते अंगारे निश्चित रूपसे दिखाई देंगे, ऐसा नहीं है । 

(द स्टेटस्मन, कोलकाता, दि. २३-२४ जून २००५ के रॉचे भूतपूर्व अतिरिक्त सचिव श्री. बिभूति भूषण नंदीके लेखपर आधारित) 

(संदर्भ : विवेक, ७ अगस्त २००५)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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