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आंदोलनके लिए अनुमति मांगनेवाले हिंदुनिष्ठोंसे विवाद कर उन्हें नोटिस देनेवाले पुलिसकर्मियोंक

वैशाख कृष्ण पक्ष पंचमी/षष्ठी, कलियुग वर्ष ५११६

प्रतिदिन दैनिक न पढनेवाले एवं दूरचित्रप्रणालपर समाचार न देखनेवाले पुलिसकर्मियोंको नौकरीसे हटाएं !


 एक नगरमें राष्ट्रीय हिंदु आंदोलनके अनुमतिके लिए १७ अप्रैलको पुलिस थानेमें निवेदन दिया गया । वहांके पुलिसकर्मियोंने महानगरपालिकाकी अनुमति लानेके लिए कहा । इसके लिए १८ अप्रैलको पुलिस निरीक्षकने समितिके कार्यकर्ताको आमंत्रित किया । उस समय वह कार्यकर्ता धर्माभिमानीके साथ वहां गए । इस अवसरपर उनमें जो संवाद हुआ, यहां दे रहे हैं ।

पुलिस निरीक्षक : श्री शंकराचार्य पहाडीको ‘तख्त ए सुलेमान’ नाम दिया गया । क्या इसका कोई प्रमाण है ? श्री शंकराचार्यजीकी ही पहाडी है, इसके लिए क्या आधार है ? (हजरतका बाल लापता होनेपर पुलिसकर्मियोंने मुसलमानोंसे ‘वह बाल हजरतका ही था, इस बातको क्या आधार है ?’, क्या ऐसा प्रश्‍न किया था ? ‘हिंदू सहिष्णू होनेके कारण ही पुलिस इस प्रकारसे अडाते हैं,’ यदि ऐसा हिंदुओंको प्रतीत हुआ,तो उसमें क्या चूक है ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )

कार्यकर्ता : पुरातत्व विभागद्वारा संकेतस्थलपर वह परिवर्तित नाम प्रसिद्ध किया गया है । आप देख सकते हो । हम १०० प्रतिशत  श्रद्धासे कह सकते हैं कि वह शंकराचार्य पहाडी है । हमारी  श्रद्धापर कोई आंच नहीं ला सकता ।

पुलिस निरीक्षक : नाममें इसप्रकार परिवर्तन होनेके संदर्भमें कहीं उल्लेख नहीं है । आप मार्गमें आंदोलन करेंगे, आपके आंदोलनमें आप ध्वनीक्षेपक लगाकर ‘नागरिको जागृत होइए, सोइए मत, पहाडीका नाम परिवर्तत किया जा रहा है,’’ ऐसा शोर करके बताएंगे, जिससे सांप्रदायिक दूरी उत्पन्न होगी, जो हम नहीं चाहते । (अनेक नगरों अथवा वास्तुओंको इस्लामी पद्धतिके नाम हैं । ऐसे नगर एवं वास्तुके पूर्वके नाम हिंदु संस्कृतिके अनुसार ही थे ।  मुसलमानोंने उन नामोंको परिवर्तित कर इस्लामी पद्धतिके नाम   दीए । यह आंदोलन नाम परिवर्तित करने हेतु नहीं, अपितु इस वास्तुका मूल नाम प्राप्त करा देनेके लिए है । इसमें जात्यंधताका प्रश्न कहां उपस्थित होता है ? मुसलमानोंने जो भी किया, योग्य  एवं हिंदुओंने कुछ भी किया तो वह जातीय टेढ उत्पन्न करनेवाला, ऐसी पुलिसकर्मियोंकी दोमुंही भूमिका इससे दिखाई देती है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात ) आप जिलाधिकारीको निवेदन दें । आपका काम हो जाएगा । इस प्रकार नाम परिवर्तन करनेसे पूर्व ही आप आंदोलन कैसे करते हो ? (मुसलमानोंके जात्यंधताके विषयमें सरकार तथा पुलिस भी कुछ नहीं बोलते । उलटे साधारण नागरिकोंका आंदोलनका अधिकार निकालने हेतु झूठ बहाने बनाते हैं ! ऐसे जात्यांध पुलिस निरीक्षक हटाने ही चाहिए ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )

कार्यकर्ता : नामांतर हो गया है; इसीलिए हम आंदोलन कर रहे हैं । यदि आपको कोई अडचन है, तो हम ध्वनीक्षेपकका उपयोग नहीं करेंगे । हमारे आंदोलनमें महिला एवं छोटे बच्चे रहेंगे । यदि आपकी अनुमति होगी, तो ही हम वैधानिक मार्गसे आंदोलन करेंगे । आज ‘गुड फ्रायडे’के निमित्त महानगरपालिकाको छूट्टी है । हम कानूनका पालन करते हैं । इसके अतिरिक्त आज ‘गुड फ्रायडे’ होनेके कारण महापालिकाको छुट्टी है । कल सवेरे १० बजे हम महानगरपालिकासे अनुमति लेंगे । जातीय टेढ उत्पन्न होने जैसा कुछ भी नहीं करेंगे । पूरा आंदोलन हम शांतिपूर्ण ढंगसे केवल २ घंटेंमें करेंगे, ऐसा मैं आपको वचन देता हूं, कृपया आप अनुमति दें ।

पुलिस निरीक्षक : जो बात अस्तित्वमें नहीं है, वहीं आप करते हो । आप जिलाधिकारीको निवेदन दें, उन्हें विषय ज्ञात होगा एवं मान लीजिए कि नामांतर हो ही गया, तो क्या होगा ? (वैचारिक रूपसे सुन्नत हुई पुलिस ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात ) 

कार्यकर्ता : यदि आपके घरकी नेमप्लेट किसीने बदल दी, तो घरमें प्रवेश करते समय आप निश्चित रुपसे विचार करेंगे अथवा नहीं ! काश्मीरी पंडीत कश्मीरके बाहर गए हैं । वहांके आस्थास्थानोंको हिंदुओंके नाम बदलकर इस्लामके नाम दिए गए, तो उन्हें वापस कश्मीर जानेमें दहशत होगी । धीरे धीरे यही बात अपने घरतक फैलेगी, क्या इसे रोकना नहीं चाहिए ?

यह सुनकर पुलिस अधिकारीने कार्यकर्ताको सूचनापत्र (नोटिस) दिया एवं कार्यकर्ताने वह सूचनापत्र लिया । (पुलिस अधिकारीको मुंहतोड उत्तर देनेवाले कार्यकर्ताओंका अभिनंदन ! वैधानिक मार्गसे आंदोलन करनेवाले हिंदुनिष्ठोंको सूचनापत्र (नोटिस) भेजनेवाले पुलिसकर्मी भारतके अथवा पाकिस्तानके ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)

धर्माभिमानी : समिति आंदोलन नहीं करेगी; परंतु हम हिंदुनिष्ठ  आंदोलन करेंगे । हमको बंदी बना सकते हैं । आजाद मैदानमें दंगा हुआ, उस समय क्या किया ? क्या वह दंगा आपको पसंद है ? ( पुलिसके समक्ष अपना कहना स्पष्ट रुपसे प्रस्तुत करनेवाले धर्माभिमानियोंका अभिनंदन ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )

पुलिस निरीक्षक : क्या आपने देखा है कि आजाद मैदानमें क्या हुआ ? वास्तव कहां है ?

कार्यकर्ता : उस समय मैं मुंबईमें था । रजा अकादमीके कार्यकर्ताओंने पुलिसके साथही नहीं, अपितु महिला पुलिस कर्मियोंके साथ भी मारपीट की । पुलिस अधिकारी कृष्णप्रकाश व्यासमंचपर थे । पुलिसके पास इसका चित्रीकरण है । सभीको ज्ञात है । हम हिंदु ऐसा कभी नहीं करते एवं भविष्यमें करेंगे भी नहीं  । वैधानिक मार्गसे ही आंदोलन करेंगे; परंतु पुलिस इस बातपर ध्यान ही नहीं देती ।

धर्माभिमानी : समितिने ज्योत प्रज्वलित की है । उनका कार्य हो गया । अब यह ज्योत आगे कैसी लेकर जाएं, हम इसका विचार कर रहे हैं ।

तत्पश्चात समितिके कार्यकताओंने पुलिसको पत्र दिया, जिसमें उन्होंने लिखा, मुझे कानूनन नोटिस देनेके कारण मैं आंदोलन नहीं करूंगा; मात्र अन्य संगठनोंद्वारा यदि आंदोलन किया गया, तो वह मेरा दायित्व नहीं रहेगा । अतः इस पत्रका मान्यतापत्रक देनेके लिए पुलिस निरीक्षक सिद्ध नहीं थे; मात्र कुछ समय पश्चात उन्होंने उसपर स्वाक्षरी की । (हिंदुओंको अपने पत्रकी साधारणसी रसीद भी देनेके लिए भयभीत; मात्र हिंदुओंको निस्संकोच रूपसे सूचनापत्र (नोटिस) देनेवाले ऐसे पुलिसकर्मियोंको ‘हिंदु राष्ट्र’में आजन्म कठोर साधना करनेका दंड दिया जाएगा ! इन दोमुंही पुलिसकर्मियोंपर कार्यवाही होनेहेतु हिंदुनिष्ठ अधिवक्ताओंसे परामर्श ले रहे हैं- संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )

धर्माभिमानी : हम धर्मके लिए बंदी बननेसे भयभीत नहीं होते । यदि हमें बंदी बनाना है, तो बनाएं, कल बहुत युवा आनेवाले हैं ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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