चुनाव २०१४ : राष्ट्रीय सूत्र गंवा बैठा चुनाव

वैशाख कृष्ण पक्ष एकादशी, कलियुग वर्ष ५११६

. . . इन्हीं नेताओंके कारण आज, लोकराज्य अक्षम सिद्ध कुचकामी हुआ है !


२४ अप्रैलको महाराष्ट्रमें तीसरे चरणमें मतदान होने जा रहा है । २२ अप्रैलको संध्या समय ५ बजे राज्यके लोकसभा चुनावके प्रचारकी युध्दसदृश हलचल समाप्त हुई । इस समयके प्रचारके सूत्रोंको देखनेपर ध्यानमें आता है कि इस चुनावके प्रचारमें राष्ट्रीय स्तरके सूत्र कहीं भी दिखाई नहीं दिए । केवल भाजपाके प्रधानमंत्री पदके उमेदवार श्री.नरेंद्र मोदीकी लहरके आसपास लडा गया चुनाव ऐसी इस चुनावकी पहचान रहनेवाली है ।

ज्येष्ठ व्यक्तियोंके बालिश वक्तव्य !

राज्यके प्रचारके संदर्भमें राउंड (घेरोंको ) देखा जाय, तो स्थानीय नेताओंने तीव्र प्रचार किया है । तब भी इनमें शिवसेनाके पक्षप्रमुख श्री. उध्दव ठाकरेकी प्रचारसभाओंको मिलनेवाला बढता प्रतिसाद इस चुनावकी विशेषता रही है; परंतु श्री. उद्धव ठाकरे एवं मनसेके अध्यक्ष श्री. राज ठाकरेमें हुआ वैचारिक युद्ध प्रचारके प्रथम चरणमें कलिका सूत्र सिद्ध हुआ । इसमें विकासके कोई सूत्र न रहनेवाले भ्रष्टाचारसे कलंकित दोनों कांग्रेसियोंको थोडीसी भीड एकत्रित करनेमें सफलता मिली । ऐसा कहना अनुचित नहीं होगा कि इस चुनावमें राज्यके सबसे वरिष्ठ नेताओंने भी सबसे निम्न स्तरके वक्तव्य दिए । चाहे शरद पवारका दुबार मतदानका सूत्र हो अथवा सुशीलकुमार शिंदेद्वारा श्री. मोदीकी दादा कोंडकेकी अपेक्षा बडा गपोडिया ऐसी की गई संभावना हो, इन दिग्गज कहलानेवाले एवं पिछले १० वर्षोंसे केंद्रमें मंत्रीपदका उपभोग लेनेवाले नेताओंके सूत्रोंकी दरिद्रता देखनेको मिली ।

पवार जहां जहां गए, वहां उन्होंने विकासके सूत्रोंके स्थानपर राज एवं उध्दवमें झगडे लगानेका ही अधिक प्रयास किया एवं कभी श्री. मोदीके संदर्भमें हेराफेरीके वक्तव्य देकर संभ्रमावस्था उत्पन्न की । वर्तमान समयमें अजित पवारने मतदाताओंको धमकी देनेका प्रकरण गया है । तब भी इस सूत्रके कारण लोग उनसे कितने भयभीत है, वह इस चुनावमें स्पष्ट हो गया है ।

राजनीतिक पक्षोंकी घसीट !

इस चुनावमें अपराधी मानसिकतावाले उम्मीदवारोंकी मात्रा ३० प्रतिशत इतनी अधिक थी । और तो और हत्याका आरोप लगे राष्ट्रवादी कांग्रेसके उम्मीदवार पद्मसिंह पाटिलने पुनः एक बार ज्येष्ठ समाजसेवक श्री. अण्णा हजारेको सार्वजनिक रूपसे धमकी दी । कोकणमें कांग्रसके नारायण राणेके विरुद्ध राष्ट्रवादी कांग्रेसके विधायक दीपक केसरकरका विद्रोह समाप्त करनेमें दोनों कांग्रेसको असफलता मिली । इस विद्रोहका परिणाम नासिक एवं अन्यत्र भी देखनेको मिलता है । पुणेमें मंत्री पतंगराव कदमके पुत्र विश्‍वजीत कदमके कार्यकर्ताओंको पैसोंका वितरण करते समय पकडा गया । पूरे राज्यमें कांग्रेसके अनेक कार्यकर्ताओंको करोडों रुपयोंकी यातायात करते हुए पकडा गया । अतः वर्तमान समयमें ऐसा कांग्रेसवाले संपूर्ण रूपसे अनाप-शनाप बकते हुए दिखाई दे रहे हैं । उसीप्रकार पेड न्यूज एवं आचारसंहिता भंगके सैकडों उदाहरण दिखाई दिए जिससे इस लोकराज्यसे जनताका विश्‍वास उठ जानेका समय आगया । महायुतीमें मनसेके प्रवेशको लेकर विवाद उत्पन्न हो गया था । भाजपके वरिष्ठ व्यक्तियोंने समय रहते ही उसे मिटाकर महायुतीको संभाला; परंतु तत्पश्चात महायुतीको अत्यंत सकारात्मक वातावरण मिला । भविष्यमें ठाकरे बंधुओंने भविष्यमें कुछ भी होनेकी संभावना बताते हुए मराठी व्यक्तिके मनमें भावनाओंके पूर्णत्व प्राप्त होनेकी आशाको पल्लवित किया है ।

राजनेताओंके भाषणबाजीमें हीनता !

इस पूरे गडबडमें केवल श्री. नरेंद्र मोदीजीका भाषण राष्ट्रीय प्रश्‍नोंका सर्वंकष परामर्श लेनेवाला सिद्ध हुआ । श्री. उध्दव ठाकरेने भी राज्यकी स्थितिके आधापर देशकी स्थितिका विचार कर हिंदुत्वकी ज्वाला प्रज्वलित रखी; परंतु अन्य नेता राष्ट्रीय प्रश्‍नोंके पास भी जाते हुए नहीं दिखाई दिए । श्री. राज ठाकरेने उद्यान, गडकिलोंकी रक्षा एवं मराठीके अभिजात भाषाका सूत्र प्रस्तुत किया; परंतु सीमित रूपमें ! शरद पवारने अपने भाषणके माध्यमसे व्यक्तिगत शेरेबाजी करते हुए खेतीके संदर्भमें उनका जो दृष्टिकोण खेतीके विषयमें रखा वह, केंद्रसरकारकी खेतीके विषयमें मिली असफलताको नजरअंदाज नहीं कर सका । मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहानने श्री. मोदीपर प्रहार करनेके लिए उन्हें जातीयवादी संबोधकर अत्यंत हीन स्तरपर जाकर उनकी आलोचना की; परंतु उनके वक्तव्योंको केंद्रसे कोई समर्थन नहीं मिला । संपूर्ण भाषणोंमें राहुल गांधी अत्यधिक पीछे हैं, ऐसा स्पष्ट हुआ । लातुरमें उनकी कांग्रेसकी कार्यकर्ती कल्पना गिरीके संदर्भमें सूत्र प्रस्तुत करना अपेक्षित था; मात्र राहुलने इन सूत्रोंकी ओर मुंह मोडा एवं तत्पश्चात जनताने उनकी ओर मुंह मोडा ।

हिंदु राष्ट्रकी आवश्यकता !

कुल मिलाकर राष्ट्रकी सुरक्षाव्यवस्था, विदेशनीति, अर्थव्यवस्था, राज्यव्यवस्था तथा समाजव्यवस्थाके विषयमें विचारमंथन एवं नई नीतियोंकी दृष्टिसे जो रचना होना अपेक्षित थी, वह नहीं हुई । उपरोक्त भाषणोंकी पद्धतिसे वर्तमान समयका लोकराज्य किय दिशामें अग्रेसर हो रहा है इसका सर्वसाधारण जनता विचार करें । आज देशके समक्ष उपस्थित असंख्य समस्याओंको देखा जाय, तो उनपर हल ढुंढनेमें लोकराज्य सक्षम नहीं है यह सिद्ध हुआ है, इन्हीं नेताओंके कारण !

इस स्थितिमें परिवर्तन लाने हेतु हिंदु राष्ट्र अनिवार्य है !

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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