सनातन हिन्दू धर्म ने संसार को अनेक क्षेत्रों में विज्ञान और तकनीक का अमूल्य ज्ञान प्रदान किया है । यह हिन्दू धर्म की महानता एवं श्रेष्ठता है । परंतु यहां सोचनेवाली बात यह है कि, गत ६८ वर्षों से कांग्रेस ने इस ज्ञान को प्रोत्साहन क्यों नहीं दिया ? हिन्दुओ, कांग्रेस से इसका उत्तर मांगोे ! – सम्पादक, हिन्दूजागृति
नई देहली : केंद्र की मोदी सरकार ऐतिहासिक अनुसंधानोंपर खासा जोर दे रही है। इसी क्रम में भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर) ने दो नई परियोजनाओंपर काम करने का फैसला किया है। इन दो प्रॉजेक्ट्स में एक वैदिक काल से १८वीं सदी तक देश की वैज्ञानिक उपलब्धियोंका आकलन करने का है।
इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक, नौ महीने पहले मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से पुनर्गठित काउंसिल की २३ सिंतबर को बैठक हुई। इसी बैठक में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के देश के पर्यावरण विज्ञान के इतिहास का आकलन करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। इस प्रॉजेक्ट के तहत आईसीएचआर इतिहासकारोंसे प्राचीन साहित्यों, जैसे वेद, पुराण, धर्मशास्त्र, अर्थ शास्त्र, वेदांग ज्योतिष, रस शास्त्र और वास्तु शास्त्र आदि, का अध्ययन करवाएगा ताकि ज्योतिष शास्त्र, रसायन शास्त्र, ब्रह्मांड विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, आर्युवेद, वास्तु शास्त्र, सौंदर्य शास्त्र और सैन्य तकनीक समेत तकनीकी और विज्ञान से जुड़े कई अन्य क्षेत्रों में देश की उपलब्धियोंका आकलन किया जा सके।
आईसीएचआर के चेयरमैन वाइ सुदर्शन राव ने ई-मेल से पूछे गए सवालोंपर इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘सर मॉनियर विलियम्स जैसे अनेकों प्रारंभिक विद्वान विज्ञान और कला के विभिन्न क्षेत्रोंके विकास में प्राचीन भारत की प्रगति को देखकर हैरान थे। भारतीय विज्ञान का विकास उपनिवेश की स्थापना तक होता रहा। पाली साहित्य- बुद्ध और जैन दोनों – और बाद में पारसी साहित्य तथा स्थानीय भाषाओंके साहित्य में भी हमें अद्भुत प्रगति देखने को मिली है।’
प्राचीन काल में देश के सायेंटिफिक टेंपरामेंट की व्याख्या के लिए जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महाभारत और रामायण के उदाहरणोंका इस्तेमाल करने लगे तब से विज्ञान और तकनीक में भारत की उपलब्धियोंपर प्रकाश डाला जाने लगा है। राव ने कहा कि वह इस बात को लेकर बिल्कुल निश्चिंत हैं कि नए प्रस्तावोंसे कोई हंगामा नहीं मचेगा। उन्होंने कहा, ‘मैं बीते दिनोंकी ऑब्जेक्टिव हिस्ट्री की बात कर रहा हूं। मुझे नहीं लगता कि आईसीएचआर के इन प्रयासोंको लेकर किसी भी इतिहासकार को किसी प्रकार की कोई परेशानी होगी। हालांकि, मैं इन प्रॉजेक्ट्स के रिफाइनमेंट या इंप्रूवमेंट के लिए आए हर सुझाव का स्वागत करूंगा।’ बहरहाल, काउंसिल के दूसरे प्रॉजेक्ट के तहत देश में पर्यवारण के प्रति चेतना के इतिहास का आकलन किया जाएगा, क्यों कि वैदिक युग से ही हमारे प्राचीन साहित्यों में इस के प्रचूर मात्रा में सबूत मिलते हैं।
स्त्रोत : नवभारत टाइम्स