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बाबरी विध्वंस ने मुझे वामपंथी से आतंकी बना दिया : सादिक शेख

नई दिल्ली – आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन के सह-संस्थापक सादिक इसरार शेख ने पुलिस को बताया था कि उसने अपने चार साथियों के साथ मिलकर मुंबई लोकल ट्रेनों में ११ जुलाई, २००६ को सिलसिलेवार विस्फोटों को अंजाम दिया था।

पूछताछ के विडियो में शेख ने यह भी बताया कि उसने आतंक का रास्ता क्यों अख्तियार किया। १९७५ में पैदा हुए सादिक के माता-पिता आजमगढ़ में किसान थे और उनके पास सिर्फ पांच बीघा जमीन थी। जिंदगी बदलने का सपना पाले शेख के माता-पिता मुंबई में चेंबूर की झुग्गी में रहने लगे। शेख के जन्म के दो साल पहले झोपडी को चीता कैंप में विस्थापित कर दिया गया।

२००९ में हुई पूछताछ में शेख ने बताया, ‘१९९२ में बाबरी मस्जिद कांड से पहले मेरा झुकाव वामपंथ की तरफ था। उससे भी पहले मैं राष्ट्रवादी था, क्योंकि मुंबई के जिस इलाके में मैं रहता था, वह डिफेंस सर्विस एरिया था। बाबरी मस्जिद गिराए जाने और दंगों के बाद मेरी मानसिकता बदल गई और मैं धर्म की ओर झुक गया। परेशान होने की वजह से मैंने सिमी जॉइन कर ली।’ शेख के मुताबिक वह १९९६ से १९९९ तक सिमी में था, जिसे २००१ में पहली बार प्रतिबंधित किया गया था। वह इस संगठन से इसलिए प्रभावित हुआ, क्योंकि वह खुद ‘बेहद आक्रामक’ था।

शेख बताता है, ‘घर और घर से बाहर मेरे झगड़े होते थे, जिससे मेरे माता-पिता परेशान होते थे। मुझे लगा कि मुझे अच्छे लोगों की संगत में रहना चाहिए। सिमी में रहने के दौरान बाबरी विध्वंस के बाद मेरे अंदर का दर्द बढ़ गया। मैंने सिमी में कुछ लोगों को देखा, जिन्हें देखकर मुझे लगा कि वो अच्छे लोग हैं- शफीक, सलीम। ये दोनों चीता कैंप से थे। मैंने पाया कि वे धार्मिक, पढ़े-लिखे हैं और नौकरी करते हैं। मैं भी जमात में शामिल हो सकता था, लेकिन वो पूरे ‘मुल्ला’ बन चुके थे। उन्हें दुनिया की कोई चिंता नहीं थी।’

सादिक के मुताबिक, वह सिमी से इसलिए जुडा था ताकि वह धार्मिक बना रहे और बेहतर बन जाए। हाई स्कूल में फेल होने के बाद उसने डोंगरी के एक इंस्टिट्यूट से रेफ्रिजरेशन, एयर कंडिशनिंग का एक कोर्स किया था और २००० में उसे गोदरेज में रेफ्रिजरेशन तकनीशियन का काम मिल गया था। २००१ में गोदरेज प्लांट के मोहाली में शिफ्ट होने के बाद सादिक बेरोजगार हो गया। उन दिनों उसके परिवार से मिलने हैदराबाद से कुछ रिश्तेदार आए, जिनमें मौलवी का बेटा मुजाहिद सलीम आजमी भी था। दोनों ने साथ बैठकर ‘भारत में मुस्लिमों के उत्पीड़न’ पर गुस्सा बांटा और सोचा कि जिहाद ही इससे निपटने का तरीका है।

माना जाता है कि मुजाहिद सलीम ने शेख को आसिफ रजा खान से मिलवाया था। आसिफ उन दिनों संगठन खड़ा करने की कोशिश कर रहा था जो बाद के वर्षों में इंडियन मुजाहिदीन बना। सादिक ने पुलिस को बताया कि फरवरी, २००१ में वह हथियारों और फर्जी यात्रा दस्तावेजों के साथ ढाका से कराची आया। उसके मुताबिक उसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के मुजफ्फराबाद में लश्कर-ए-तैयबा के कैंप में ट्रेनिंग दी गई। साथ ही, बहवालपुर के कैंप में कुछ अडवांस कोर्स भी कराए गए। सादिक के बयान के मुताबिक २००२ में वह अपनी पहली आतंकी कार्रवाई- कोलकाता में अमेरिकी वाणिज्य दूतावास पर हमले में शामिल हुआ। यह हमला पुलिस के साथ मुठभेड़ में आसिफ रजा खान की मौत का बदला लेने के लिए किया गया था।

इसी साल के बाद में आसिफ के भाई आमिर रजा खान ने कथित तौर पर सादिक को दुबई में नौकरी का प्रस्ताव दिया। २००४ में वह वापस भारत आने के बाद उसने संगठन खड़ा करने पर काम शुरू किया, जो इंडियन मुजाहिदीन बना। सितंबर, २००४ में इस संगठन ने कथित तौर पर वाराणसी में धमाके करते हुए अपना ‘अभियान’ शुरू किया। इसके बाद श्रमजीवी एक्सप्रेस और दिल्ली में सिलसिलेवार बम धमाके जैसे हमले किए गए।

सादिक के गवाह वाले विडियो टेप के मुताबिक मुंबई हमले के बाद से उसका दिल बदल गया। इसके बाद उसने आतंकी नेटवर्क भी छोड़ दिया। उसे मुंबई हमले के लगभग दो साल बाद 2008 में मुंबई में गिरफ्तार कर लिया गया था।

 

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