वैशाख अमावस्या, कलियुग वर्ष ५११६
शासनतंत्रके शुद्धिकरण हेतु राजनीतिक पक्षोंके ‘सिद्धांतविहीन युती, धैर्यका (संयमका) अभाव एवं धोखा देनेकी मानसिकता’ इन दोषोंका निर्मूलन आवश्यक – जगद्गुरु शंकराचार्य
रतनपूर (छत्तीसगड) : पुरी पीठके अंतर्गत रतनपुर, छत्तीसगढके ‘साधना एवं राष्ट्ररक्षा’ विषयपर आयोजित राष्ट्रीय शिविरमें संध्या समय राष्ट्ररक्षा संदर्भके ‘शासनतंत्र एवं व्यासपीठोंका शुद्धिकरण एवं सामंजस्यका स्वरूप’ विषयपर बोलते समय पुरी पीठके जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वतीजीने कहा, ‘‘वर्तमान समयके शासनतंत्रको प्रजातंत्र कहा जाता है; परंतु जहां प्रजा ही शेष नही है, वह प्रजातंत्र कैसे संभव है ? यदि इसे लोकतंत्र कहें, तो धर्मग्रंथके अनुसार ‘आलोक’ अर्थात प्रकाश है, इसके अनुसार ‘लोक’ का अर्थ अंधःकार होता है । अर्थात यह अंधःकारयुक्त शासनतंत्र बन गया है । इसका शुद्धिकरण करना आवश्यक है । इसके लिए राजनीतिक पक्षके ‘सिद्धांतविहीन युती, धैर्यका अभाव एवं धोखा देनेकी मानसिकता’ इन दोषोंका निर्मूलन आवश्यक है । तत्पश्चात व्यासपीठ अर्थात धर्मपीठका शुद्धिकरण करना पडेगा ।’’
लोग देवर्षि नारदके महत्त्वको नहीं जानते; परंतु प्रत्येक समय जब जब राजतंत्र विकृत हुआ, तब तब क्रांतिके लिए देवर्षि नारदने अपनी भूमिका निभाई है । नारद विविध अवतारोंके माध्यमसे यह कार्य कर रहे है । हिरण्यकश्यपूका विकृत राजतंत्र डुबोने हेतु नारदजीने उसके पुत्र प्रल्हादको उसके विरोधमें खडा किया । उसीप्रकार आद्य शंकराचार्य, चाणक्य एवं समर्थ रामदासके राजतंत्रके शुद्धिकरणका कार्य देखनेपर नारदजीका कार्य ध्यानमें आएगा । भविष्यमें भी राजतंत्रके शुद्धिकरणका कार्य नारदके बिना पूरा होना असंभव है । वेन राजाके समयमें राजतंत्रके शुद्धिकरणकी आवश्यकता थी । वसिष्ठ ऋषि तथा महर्षि व्यासमुनिकी कालावधिमें राजतंत्रके ही शुद्धिकरण की आवश्यकता थी ।
महर्षि व्यासजीके समयमें ८८ सहस्र ऋषि नैमिषारण्यमें वेदविद्यादानका कार्य कर रहे थे । इसलिए व्यासपीठके शुद्धिकरणकी आवश्यकता नहीं थी । आगे बौद्धकी कालावधिमें युधिषि्ठरके वंशके सुधनवा राजाने ही बौद्ध धर्म स्वीकारा । इसलिए मठोंका भी बौद्धकरण आरंभ हुआ । उस समय शासनतंत्र एवं व्यासपीठ दोनोंके ही शुद्धिकरणकी आवश्यकता उत्पन्न हुई । उस समय सुधनवा राजाकी रानी ‘अब वेदोंकी रक्षा कौन करेगा,’ ऐसा आक्रोश कर रही थी, तो आद्य शंकराचार्यजीने सुधनवा राजाको वैदिक सम्राट घोषित कर शासनतंत्रका शुद्धिकरण किया एवं तत्पश्चात धर्मपीठके शुद्धिकरण हेतु ४ मठ स्थापित किए । राजतंत्रका शुद्धिकरण करते समय संबुद्ध व्यक्तिकी आवश्यकता होती है, उदा. वेन राजके कोषसे नया राजा बनाया, उसीप्रकार रावणके पश्चात उसके भाई बिभीषणको राज्यपद दिया एवं दुर्योधनके पश्चात युधिष्ठीर राजा बना ।
आज विकासके नामपर चलनेवाले आधुनिक युगमें धैर्यका विलोप हो रहा है । जिस समय यांत्रिक युगका आरंभ होता है, उस समय दिव्य पुरुष एवं दिव्य वस्तुओंका लोप अथवा विकृतीकरण होने लगता है, उदा. सोमयज्ञकी सोम वनस्पती अब नष्ट हो गई है । धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष एवं समय ये पांच अत्यंत महत्त्वपूर्ण तत्व हैं । यांत्रिक युगमें समयका अनादर आरंभ होता है । समयका अनादर महामृत्यु माना गया है । युगके अनुसार उस उस समयके अनुसार आवश्यक परिवर्तके लिए प्रयास किया जाता है । अब कारखानोंमें ३ पारीमें कार्य चलता है । रात्रीकी निद्रासे वंचित कर कार्य करवाकर उत्पाद बढानेका अतिमानवी प्रयास किया जा रहा है । इसलिए यदि धर्म एवं अध्यात्मके अनुकूल जीवन चाहते हो, तो महायंत्रोंसे (यांत्रिकयुगसे) दूर रहना ही पडेगा ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात