वैशाख शुक्ल पक्ष ४, कलियुग वर्ष ५११६
श्री महालक्ष्मी मंदिर, कोल्हापूर
पश्िचम महाराष्ट्र देवस्थान समितिको प्रतिवर्ष कोल्हापुरके श्री महालक्ष्मी मंदिरसे १५ करोड एवं ज्योतिबा मंदिरसे १ करोड रुपए मिलते हैं; परंतु इस राशिका उपयोग श्रद्धालुओंकी सुख-सुविधाओंके लिए नहीं किया जाता । वर्तमान समयमें समितिके पास ५७ करोड रुपए पडे हैं । श्रद्धालुओंके समझमें नहीं आया है कि पैसे संग्रहित करनेमें समितिको क्या स्वारस्य है । समितिके इस बेढंगे कामके कारण श्रद्धालुओंको अकारण कष्ट सहन करने पड रहे है । इससे जनताको ऐसा संदेह उत्पन्न हो रहा है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि यह देवस्थान समिति श्रद्धालुओंको सुख-सुविधाएं देनेके स्थानपर समितिके अधिकारी एवं कर्मचारियोंके स्वार्थके लिए स्थापित की गई हो ?
१. पश्िचम महाराष्ट्र समितिका सचिवपद २ वर्षोंसे रिक्त ही है !
पश्िचम महाराष्ट्र देवस्थान समितिकी नियुक्ति मुख्यमंत्रीद्वारा की गई है । इस समितिमें ७ सदस्य लेना आवश्यक होते हुए मुख्यमंत्रीने केवल ४ सदस्योंकी नियुक्ति की है । जिलाधिकारी श्री. राजाराम माने इस समितिके अध्यक्ष हैं । समितिके तत्कालीन सचिव सूर्यवंशीने त्यागपत्र देनेके पश्चात सचिवपदपर अन्य अधिकारीकी त्वरित नियुक्ति करना आवश्यक था; परंतु सरकारने वैसा नहीं किया । अब प्रभारीके रूपमें निवासी उपजिलाधिकारी संजय पवारको यह कार्य देखना पड रहा है । समितिके कार्यालयके कर्मचारी ही बताते हैं कि दोनों पदोंका दायित्व रहनेके कारण पवारपर कामका प्रत्यक्ष रूपसे तनाव है । अनेक बार मांग करनेपर भी यह पद रिक्त क्यों रखा गया है, इस रहस्यको अबतक कोई नहीं खोल सका ।
२. देवस्थान समितिको ३ सहस्र ६७ मंदिरोंसे करोडो रुपयोंकी आय !
पश्िचम महाराष्ट्र देवस्थान समितिके पास कोल्हापुर, सांगली एवं सिंधुदुर्ग जिलेके कुल मिलाकर ३ सहस्र ६७ मंदिर हैं, जिनका वार्षिक लेन-देन १६ करोड रुपयोंतक है । श्री महालक्ष्मी एवं श्री जोतिबा मंदिरकी आयमेंसे ५० लक्ष रुपयोंकी राशि समितिके कार्यालयके कर्मचारियोंके वेतनपर व्यय होती है । चैत्र यात्राकी कालावधिमें श्रद्धालुओंको अनेक सुविधाओकी पूर्ति करना पडती है, जिनपर साधारण २० लक्ष रुपए व्यय होते हैं । शेष ३० लाख रुपए पूरे वर्षमें मंदिरमें सुविधाओंकी पूर्ति करने हेतु व्यय करने पडते हैं । यह राशि अपूर्ण होनेके कारण श्रद्धालुओंको संकीर्ण रस्ते, स्वच्छतागृह, पानी, कूडा तथा वाहनतल जैसे समस्याओंका सामना करना पड रहा है ।
३. दानपेटीकी राशिपर देवस्थान समितिका अधिकार !
समितिके अधिकारियोंका कहना है कि मंदिरके गर्भगृहमें श्रद्धालुओंद्वारा अर्पण की गई राशि एवं अन्य वस्तुओंपर पुजारीका अधिकार होता है, जबकि मंदिरकी दानपेटीपर समितिका । दानपेटियां रखनेकी बातको लेकर श्रीपूजक एवं देवस्थान समितिके कर्मचारियोंमें अनेक बार हंगामा हुआ है । देवस्थान समितिने श्रीपूजकोंकी मांगोंको कोई मूल्य न देते हुए मंदिरमें अधिक मात्रामें दानपेटियां रखी हैं ।
४. दानपेटीकी राशि सीधे अधिकोषकी तिजोरीमें !
श्री महालक्ष्मी, ज्योतिबा एवं बिनाखंबेका गणेश मंदिर (कोल्हापुर) ऐसे अनेक मंदिरोंमें समितिद्वारा दानपेटियां बिठाई गई हैं । इन पेटियोंकी राशि श्रद्धालुओंको सुविधाएं देनेके स्थानपर अधिकोषमें रखी जाती है । समितिका मत है कि यह राशि प्रयुक्त करनेकी अनुमति नहीं है । समिति ऐसी योजना कार्यान्वित करती है कि किसी भी मंदिरका निर्माणकार्य आरंभ करें एवं ५० सहस्र से १ लाख रुपयोंकी सहायता प्राप्त करें । ऐसी स्थितिमें उन मंदिरोंको सुविधा देनेमें समिति क्यों संकोच करती है ?
५. स्वच्छतागृह तथा पानी जैसे अनेक सुविधाओंसे श्रद्धालु वंचित !
श्री महालक्ष्मी मंदिर अत्यधिक उत्पन्न देनेवाला मंदिर है । तब भी श्रद्धालुओंको सुविधाएं देनेमें समितिको स्वारस्य नहीं है । धूपका आघात सहन करते हुए ही श्रद्धालुओंको दर्शन करने पडते हैं । जूते रखनेके लिए भी पैसे देने पडते हैं । पीनेका पानी एवं सुरक्षाका प्रश्न स्थायी रूपसे है ही । समितिके पास पडे ५७ करोड रुपयोंका अधिक ब्याज मिलनेकी ओर समितिका झुकाव है ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात