वैशाख शुक्ल पक्ष चतुर्थी, कलियुग वर्ष ५११६
हिंदुओंके धर्मगुरु मतोंके लिए आदेश नहीं देते, अपितु धर्म एवं राष्ट्रके रक्षणार्थ राजनेताओंको मार्गदर्शन करते हैं ! – जगद्गुरु शंकराचार्य पीठोंका संयुक्त निवेदन
|
पत्रकार परिषदके माध्यमसे पुर्वाम्नाय एवं पश्चिमाम्नाय जगद्गुरु शंकराचार्य पीठोंका संयुक्त निवेदन !
वाराणसी (उत्तर प्रदेश) : सनातन धर्मके धर्मगुरु राजनीतिमें हस्तक्षेप नहीं करते, अपितु धर्म एवं राष्ट्रके रक्षणार्थ राजनेताओंको मार्गदर्शन करते हैं । भारतमें लोकतंत्र है । प्रत्येक व्यक्तिको अपना मत निश्चित करनेका अधिकार है । इस्लाम एवं ईसाई पंथोंके धर्मगुरु आदेश निकालकर अपने शिष्योंको जिस प्रकार सूचित करते है, वैसा प्रकार सनातन धर्ममें नहीं है । अतः वार्ता संपूर्ण रूपसे झूठ है कि पश्चिमम्नाय शारदा एवं उत्तराम्नाय ज्योतिष पीठके शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंदसरस्वतीजी नरेंद्र मोदीके विरोधमें प्रचार करेंगे । सनातन धर्मके १०० करोड लोग सभी पक्षोंमें हैं । अतः शंकराचार्यजी अन्यधर्मियोंके धर्मगुरु समान ऐसे विचार प्रसारित नहीं कर सकते, ऐसा स्पष्टीकरण पुर्वाम्नाय एवं पश्चिमाम्नाय जगद्गुरु शंकराचार्य पीठके प्रतिनिधियोंने संयुक्त तत्वावधानमें आयोजित पत्रकार परिषदमें दिया । २ मईको यह पत्रकार परिषद आयोजित की गई ।
इस अवसरपर काशी विद्वत परिषदके प्रतिनिधि एवं हिंदु जनजागृति समितिके राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे भी उपस्थित थे ।
१. शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीजीके उत्तराधिकारी अविमुक्तेश्वरानंदने कहा, ‘‘इस प्रकारसे धार्मिक मठोंको राजनीतिक अखाडोंमें लिप्त कर उनका राजनीतिक लाभ उठानेका षडयंत्र स्पष्ट होता है । शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीजी मोदीके विरोधमें प्रचार करेंगे, यह पत्रकारोंको किसने बताया, यह पत्रकार उजागर नहीं करते । उन्होंने पत्रकारोंको संदेश दिया कि उनको चाहिए कि वे उनके मत जबाबदारीसे व्यक्त करें ।’’
२. पुरी पीठके प्रतिनिधि श्री. अवनेश त्रिपाठीने कहा ‘‘क्या भारतमें कोई मैं भारतका प्रधानमंत्री हूं, ऐसा कहकर पत्रकार परिषद आयोजित करता है ?’’ यदि ऐसा होता है, तो कल कोई भी स्वयंको शंकराचार्य कहलवा सकता है एवं समाचारपत्रमें कोई निश्चिती न करते हुए ऐसे व्यक्तिको पुरी पीठके शंकराचार्यके रूपमें प्रसिदि्ध देते हैं । उडिसाके उच्च न्यायालयद्वारा ‘यदि अधोक्षजानंदजीने पुरी पीठके १००० मिटरके अहातेमें प्रवेश किया, तो उन्हें बंदी बनाया जाए’ ऐसा आदेश दिया गया है । अतः ऐसे झूठे व्यक्तिको शंकराचार्यजीके रूपमें प्रसिद्धी देकर एवं उनके नामपर धर्मविरोधी समाचार छापकर पीठका अवमान नहीं करना चाहिए । इस अवसरपर उन्होंने उच्च न्यायालयके आदेशकी प्रत पत्रकारोंको दी ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात